नमस्कार साथियो,
दिल्ली में एक सड़क का नाम बदलकर पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक कलाम साहब के
नाम पर रख दिया गया तो बहुतों ने खुशियाँ प्रदर्शित की तो कई जगहों से इसके विरोध
में भी स्वर उठे. समझ से परे रहा कि सरकार के इस फैसले पर ख़ुशी व्यक्त की जाये या
फिर खुद को धर्मनिरपेक्ष साबित करते हुए विरोधियों के सुर से सुर मिला लिया जाये? कितनी
बड़ी विडम्बना है कि औरंगजेब जैसे शासक के नाम पर आधारित सड़क का नाम बदलने पर भी इस देश में सियासत होने लगी है. अभी
इससे उबरकर कुछ और विचार कर पाते कि देश के उप-राष्ट्रपति जी ने मुस्लिमों के
हितार्थ सोचने की सलाह सरकार को दे डाली. राजनीतिज्ञों के द्वारा तो लम्बे समय से
मुस्लिम तुष्टिकरण की बातें सामने आती रही हैं किन्तु किसी संवैधानिक पद पर आसीन
किसी व्यक्ति के द्वारा ऐसी बातें करना आश्चर्य में डालता है. आश्चर्य इस कारण भी
होता है कि वे स्वयं उसी मजहब से हैं, जिस मजहब के प्रति लापरवाह होने का आरोप सा
वे सरकार पर लगाते हैं. जिस देश में तीसरा राष्ट्रपति ही मुस्लिम रहा हो, जिस देश
में एक मुसलमान पूर्व राष्ट्रपति के निधन पर सारा देश रोया हो, जिस देश में
मुसलमानों के मजहबी स्थानों पर जाने वाले हिन्दुओं की संख्या में कमी नहीं होती है
वहाँ इस तरह की बातें कहीं न कहीं राजनीति से प्रेरित लगती हैं. संभव है कि
किसी-किसी स्थान पर कतिपय स्थितियों के चलते मुसलमान अपने आपको राष्ट्र की, समाज
की मुख्यधारा से अलग समझने लगते हों किन्तु ये किसी भी रूप में सत्य नहीं है कि
देशवासियों ने मुसलमानों के साथ दुर्व्यवहार किया है. इतिहास गवाह है कि इस देश
में सर्वधर्म सदभाव की भावना सदैव से रही है. सभी धर्मों में आपस में प्रेम-स्नेह
देखने को मिलता रहा है. सभी धर्मों के पर्व-त्योहारों में सबकी सहभागिता देखने को
मिलती है. ऐसे में चंद लोगों द्वारा धर्मनिरपेक्षता-साम्प्रदायिकता का हवाला देकर माहौल
को बिगाड़ने की कोशिश का विरोध किया जाना चाहिए.
इन्हीं सबके बीच खबर आई है कि एक विद्यालय में राखी बांधकर आने वाले बच्चों
की राखियाँ उतरवा ली गईं, लड़कियों की हथेलियों में लगी मेंहदी को पत्थर से रगड़-रगड़
छुड़वाया गया. इस तरह की स्थितियाँ भी समाज में सौहार्द्र पैदा करने के स्थान पर
कटुता का वातावरण निर्मित करती हैं. हालात वाकई गंभीर हैं, कहीं न कहीं एक शांति
के पीछे, एक चुप्पी के पीछे बहुत बड़े धमाके की आशंका पल रही है, बहुत तीव्र
विस्फोट की आशंका दिख रही है. विरोध के छोटे-छोटे स्वरों के पीछे की भयावहता को
समझना होगा और आने वाले पल के साथ आने वाली आशंका की आहट को भी सुनना होगा. कहीं
कोई आने वाला पल प्रलयकारी न हो, समाज के लिए घातक न हो, इंसानियत के लिए कष्टकारी
न हो. आइये विचार करें कि समाज में यत्र-तत्र फैले चंद फिरकापरस्तों से कैसे निपटा
जाये.
विचार करिए, शायद आज की बुलेटिन इस विचार में कुछ सहयोगी बन सके. शेष अगले
गुरुवार, एक और नई बुलेटिन के साथ, एक और नए विचार के साथ. तब तक नमस्कार....!!
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4 टिप्पणियाँ:
एक नकाब कब से बदल रहा होता है कई नकाब
एक नकाब नकाब को नकाब बदलता देखता है :)
किस किस को कौन करे बेनकाब ?
बहुत सुंदर बुलेटिंन ।
a weird country : India!
यहाँ जो न हो जाये सो कम समझिएगा| विचारणीय बुलेटिन|
अगर वे धर्म के आधार पर विरोध कर रहे हैं तो क्यों भूल जाते हैं कि कलाम साहब भी उसी धर्म के हैं . अन्तर इतना है कि कलाम साहब देशभक्त और धार्मिक संकीर्णताओं से परे थे जबकि औरंगजेब तो ...इसके विपरीत ही था .तो नाम परिवर्तन का विरोध करने वाले क्या साबित कर रहे हैं .
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