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मंगलवार, 1 सितंबर 2015

वो कागज़ की कश्ती




कोई मुझको लौटा दो बचपन  .... 

एक बार फिर से मिल जाए तो कागज़ की नाव ध्यान से बनायेंगे 
पानी में डालकर हौले से बढ़ायेंगे 
.... 

( Something different today, on a lighter side though )
बचपना कौंधता है...
अचानक ही...
उम्र की स्लाइड से... 
मैं पीछे फिसलता हूँ...
मोंटेसरी की प्रार्थनाओं मे...
जा गिरता हूँ...
हाल्फ़ शर्ट की बाईं तरफ...
रुमाल पिन किए हुये...
'सिस्टर क्रिसपिन' हंस देती हैं...
मेरी तोतली 'छोर्री' पर...
'व्रूम' की आवाज़ निकालता हूँ...
हाथ से 'स्टीएरिंग' घूमाता हूँ...
दौड़ पड़ता हूँ, स्कूल तक...
लकड़ी की बेंच पर...
चुरमुर करते हुये...
पार करता हूँ 'अडोलोसेंस'
'बोर्ड्स' की चिंता पेशानी पर लिये...
नहीं दे पाता लाल गुलाब, 'नुज़्ज़त' को...
बेस्ट ऑफ लक कहते हुये, झेंप जाता हूँ...
मेरी प्रैक्टिकल की कॉपी, सोख लेती है,
उसी गुलाब की सूर्ख, दर्दीली पंखुरियाँ ...
मेरा कोई निशान नहीं छूटता उसकी नोटबूक मे...
बस वो मुझमे, कहीं 'दबी' रह जाती है...
पापा के सोंधे सपने...
मुझे उड़ा ले जाते हैं विदेश...
जहां हर 'डिग्री' के एंगल बनाती है...
मंसूबे कातती जवानी...
'करियर' और 'कॉरिडॉर' के बीच...
कॉलेज की लड़की, जिसे...
चूमना नहीं आता...
कुतरती है मुंह मेरा...
अचानक चौंक कर उठता हूँ...
और गिनती से वापस...
आ पहुंचता हूँ गणना मे...
नौकरी से 'बिज़नेस' तक...
चश्मे के काँच पर भाप सा जमता हूँ...
और पोंछ देता हूँ सारी हसरतें...
अधेड़ होती मजबूरीयों के लिये...
वो गाने, वो किताबें, वो मंसूबे, वो चाहतें...
वो लोग सारे जो बीत कर, मुझमे पैठे हैं...
कहते हैं... एक बार मुड़ कर, लौट आ 'बेरहम'...
कुछ तो पूरा कर जा, 'अधूरी' कसकती टीस मे... ... .... !! - SC -

वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी...

3 टिप्पणियाँ:

कविता रावत ने कहा…

बचपन सबको याद आता है लेकिन वह फिर नहीं लौटता..... . लौटता है बच्चों में ....
बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति। । आभार!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

काश वो दिन लौट पाते ... काश ...

Shanti Garg ने कहा…

सुन्दर व सार्थक रचना ..
मेरे ब्लॉग की नई पोस्ट पर आपका स्वागत है...

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