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गुरुवार, 17 सितंबर 2015

धार्मिक कट्टरता की तरफ बढ़ता समाज : ब्लॉग बुलेटिन



नमस्कार साथियो,
आप सभी को गणेश चतुर्थी पर्व की शुभकामनायें. वर्तमान में हमारे समाज का ताना-बाना कुछ इस तरह का हो गया है कि धार्मिक अनुष्ठानों-पर्वों-आयोजनों आदि पर शुभकामनाओं का आदान-प्रदान भी विवाद की विषयवस्तु बन जाता है. ऐसा किसी एक धर्म विशेष के प्रति न होकर कमोबेश सभी धर्मों के साथ हो रहा है. किसी भी धार्मिक दिवस के, पर्व के आने की आहट मात्र ही उन फिरकापरस्त तत्त्वों को सक्रिय कर देती है जो समाज में विघटन का, अलगाव का, हिंसा का, भय का, उन्माद का वातावरण बनाने की फिराक में लगे रहते हैं. इसमें सबसे बड़ी विडम्बना देखिये कि समाज का वो वर्ग जो अपने आपको बुद्धिजीवी कहता है, सोशल मीडिया का जमकर उपयोग करता है, खुद को किसी धार्मिक खाँचे से मुक्त बताता है, जो अपने आपको राजनैतिक रूप से भी निरपेक्षता का सबसे बड़ा संवाहक सिद्ध करता है वो भी कहीं न कहीं इन तत्त्वों की चपेट में आ जाता है. इसके बाद शुरू होता है अफवाहों का इधर से उधर प्रसारण, विभेदकारी विचारों का आदान-प्रदान और उसके बाद जन्म लेता उन्माद अलगाववादी ताकतों को सड़कों पर उतार भय, हिंसा के वातावरण का निर्माण करता है; समाज से स्नेह, प्रेम, सौहार्द्र, समन्वय की हत्या करता है. 

बहुत पीछे मुड़कर देखने की आवश्यकता नहीं है, हाल ही में कुछ प्रदेशों में सरकारों द्वारा धार्मिक आयोजन के अवसर पर मीट के प्रतिबन्ध जैसा कदम उठाया. इसके बाद क्या हुआ इसको कहने की, बताने की आवश्यकता नहीं है. जहाँ एक तरफ हम विश्व बंधुत्व की बात करते हैं; तकनीकी के चलते सम्पूर्ण विश्व को एक ग्राम के रूप में परिभाषित करते हैं; वसुधैव कुटुम्बकम पर गर्व करते हैं वहीं अपने पड़ोसी के धार्मिक आयोजन का मखौल उड़ाते हैं; अपने सहयोगी के धार्मिक विचारों की अवहेलना करते हैं; अपने परिचित के धार्मिक क्रियाकलापों में व्यवधान पैदा करते हैं. आखिर ये कैसी बंधुत्व की भावना है? आखिर ये कौन सा अपनापन है? आखिर ये किस तरह की धार्मिक सहिष्णुता है? आखिर ये किस तरह की धर्मनिरपेक्षता है? 

वास्तविकता ये है कि तकनीकी रूप से, वैज्ञानिक रूप से सक्षम होते जाने के कारण हम सबने अपने अन्दर एक तरह के अहं को जन्म दे दिया है. ‘सबसे उत्कृष्ट हम, हमारा धर्म, हमारे विचार, हमारे क्रियाकलाप’ आदि ने इंसान इंसान के बीच की दूरी को अदृश्य रूप से बढ़ा दिया है. सामने होते हुए भी हम सामने वाले व्यक्ति से बहुत-बहुत दूर होते जा रहे हैं; धार्मिक रूप से सहिष्णु बनने के बाद भी हम धार्मिक रूप से अत्यंत कट्टर होते जा रहे हैं. एक दूसरे का सम्मान करने के साथ-साथ उसका घनघोर अपमान करते जा रहे हैं. देखा जाये तो कहीं न कहीं हम तकनीकी समाज विकसित करते रहने के साथ-साथ मानवीयता भरा, इंसानियत भरा समाज मिटाते जा रहे हैं. 

आइये इस समाज के मिटने को रोकने का काम करें; समाज को विखंडित करने वालों को समाप्त करने का काम करें; दिलों के बीच बढ़ती दूरियों को मिटाकर स्नेह, प्रेम पैदा करने का काम करे. कामना करें कि आदिदेव श्री गणेश जी इसके लिए शक्ति प्रदान करें. 

तब तक आनंद उठायें आज की बुलेटिन का.... नमस्कार..!!

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4 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

धर्म नहीं रहेगा तो कुर्सी वालों को जमीन पर दरी बिछा कर बैठना पड़ेगा । सुंदर बुलेटिन ।

Guzarish ने कहा…

शुक्रिया ब्लॉग बुलेटिन

कविता रावत ने कहा…

सार्थक विचार मंथन के के साथ बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

कट्टरवाद किसी भी धर्म का हित नहीं कर सकता ... ख़ास कर भारत जैसे देश मे जहाँ विभिन्न धर्म और पंथ को मानने वाले रहते हैं |

सार्थक प्रस्तुति ... आभार बंधुवर |

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