वक़्त भागता दिखाई देता है, लेकिन वक़्त के असंख्य पैरों में से कितने पाँव रुके होते हैं - गौर तो किया ही होगा
मेरे वक़्त के पाँव भी कहीं कहीं थम गए हैं, जिसमें है अम्मा की पुकार, अम्मा का ठुनकना, … अम्मा जैसी पत्नी,अम्मा जैसी छात्रा,अम्मा जैसी पंत की बेटी हो जाना, अम्मा जैसी अम्मा, सबकी ज़ुबान पर 20 वर्ष की उम्र से 'अम्मा' सम्बोधन बन जाना,अम्मा जैसी नानी-दादी … बिरले ही कोई हो सकता है।
भाई-बहनों से अधिक अम्मा से होती थी बहस
क्योंकि कमज़ोर की ढाल होती थी अम्मा
और हम सब उस ढाल को गिराने की पुरज़ोर कोशिश करते …
लेकिन क्या हम सचमुच गिराना चाहते थे ढाल ?
नहीं,
ढाल गिरते हमारी ज़िद टूट जाती
और मुस्कुराकर हम खुद ढाल बन जाते थे :)
"जाने दो" के मूलमंत्र की अनेकों पुड़िया अम्मा ने बनाई
हर सुबह घरेलु उपचार की तरह
उसे हमारी जिह्वा पर रख दिया
और लड़ते झगड़ते हम "जाने दो" का
कई माला जाप करते हैं
हमारे बच्चे भी इस जाप से अछूते नहीं !
सारा रोष हमारा आपस में है
"क्यूँ कहा"
"क्यूँ नहीं कहा ?"
आज उनकी यानी अम्मा की पुण्यतिथि है, अपनी अपनी जगह से सबने यादों के फूल चढ़ाये हैं, यहाँ हम भी वृद्धाश्रम गए, मालविका का भजन उनके लिए अश्रुपूरित आनन्द बना, फल,मिठाई हमने प्रसाद के तौर पर दिया। यूँ प्रतीत हो रहा था कि चारों ओर अम्मा खड़ी हैं …
आज उनसे संबंधित लिंक्सऔरउनकी भावनाओं से उन्हें तर्पण अर्पण करते हैं
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9 टिप्पणियाँ:
नमन!
विनम्र नमन...
नमन !
अम्मा को शत शत नमन
सादर नमन
सादर नमन
अम्मा को शत शत नमन |
सादर नमन!!
सादर नमन!!
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