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शनिवार, 15 सितंबर 2018

ध्यान की कला भी चोरी जैसी है

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

झेन कथा है, एक बहुत बड़ा चोर था। जब वह बूढ़ा हुआ तो उसके बेटे ने कहा कि अब मुझे भी अपनी कला सिखा दें। क्योंकि अब क्या भरोसा?

वह चोर इतना बड़ा चोर था कि कभी पकड़ा नहीं गया। और सारी दुनिया जानती थी कि वह चोर है। उसकी खबर सम्राट तक को थी। सम्राट ने उसे एक बार बुला कर सम्मानित भी किया था कि तू अदभुत आदमी है। दुनिया जानती है, हम भी जानते हैं, कि तू चोर है। तूने कभी इसे छिपाया भी नहीं, लेकिन तू कभी पकड़ाया भी नहीं। तेरी कला अदभुत है।

तो बूढ़े बाप ने कहा कि यह कला तू जानना चाहता है, तो सिखा दूंगा। कल रात तू मेरे साथ चल। वह कल अपने लड़के को ले कर गया। उसने सेंध लगायी। लड़का खड़ा देखता रहा। वह इस तरह सेंध लगा रहा है, इतनी तन्मयता से, कि कोई चित्रकार जैसे चित्र बनाता हो, कि कोई मूर्तिकार मूर्ति बनाता हो, कि कोई भक्त मंदिर में पूजा करता हो, ऐसी तन्मयता, ऐसा लीन। इससे कम में काम भी नहीं चलेगा। वह मास्टर थीफ था। वह कोई साधारण चोर नहीं था। सैकड़ों चोरों का गुरु था।

लड़का कंप रहा है खड़ा हुआ। रात ठंडी नहीं है, लेकिन कंपकंपी छूट रही है। उसकी रीढ़ में बार-बार घबड़ाहट पकड़ रही है। वह चारों तरफ चौंक-चौंक कर देखता है। लेकिन बाप अपने काम में लीन है। उसने एक बार भी आंख उठा कर यहां-वहां नहीं देखा। चोरी की सेंध तैयार हो गयी, बाप बेटे को ले कर अंदर गया। बेटे के तो हाथ-पैर कंप रहे हैं। जिंदगी में ऐसी घबड़ाहट उसने कभी नहीं जानी। और बाप ऐसे चल रहा है, जैसे अपना घर हो। वह बेटे को अंदर ले गया, उसने दरवाजे के ताले तोड़े। फिर एक बहुत बड़ी अलमारी में, वस्त्रों की अलमारी में, उसका ताला खोला और बेटे को कहा कि तू अंदर जा। बेटा अलमारी में अंदर गया। बहुमूल्य वस्त्र हैं, हीरे-जवाहरात जड़े वस्त्र हैं।

और जैसे ही वह अंदर गया, बाप ने ताला लगा कर चाबी अपने खीसे में डाली। लड़का अंदर! चाबी खीसे में डाली, बाहर गया, दीवाल के पास जा कर जोर से शोरगुल मचाया, चोर! चोर! और सेंध से निकल कर अपने घर चला गया। सारा घर जाग गया, पड़ोसी जाग गए। लड़के ने तो अपना सिर पीट लिया अंदर कि यह क्या सिखाना हुआ? मारे गए! कोई उपाय भी नहीं छोड़ गया बाप निकलने का। चाबी भी साथ ले गया। ताला भी लगा गया। घर भर में लोग घूम रहे हैं। सेंध लग गयी है और लोग देख रहे हैं, पैर के चिह्न हैं। नौकरानी उस जगह तक आयी जहां अलमारी में चोर बंद है।

उसे कुछ नहीं सूझ रहा, क्या करें। बुद्धि काम नहीं देती। बुद्धि तो वहीं काम देती है अगर जाना-माना हो, किया हुआ हो। बुद्धि तो हमेशा बासी है। ताजे से बुद्धि का कोई संबंध नहीं। यह घटना ऐसी है, इतनी नयी है, कि न तो कभी की, न कभी सुनी, न कभी पढ़ी, न कभी किसी चोर ने पहले कभी की है कि शास्त्रों में उल्लेख हो। कुछ सूझ नहीं रहा। बुद्धि बिलकुल बेकाम हो गयी। जहां बुद्धि बेकाम हो जाती है, वहां भीतर की अंतस-चेतना जागती है।
अचानक जैसे किसी ऊर्जा ने उसे पकड़ लिया। और उसने इस तरह आवाज की जैसे चूहा कपड़े को कुतरता हो। यह उसने कभी की भी नहीं थी जिंदगी में, वह खुद भी हैरान हुआ अपने पर। नौकरानी चाबियां खोज कर लायी, उसने दरवाजा खोला, और दीया ले कर उसने भीतर झांका कि चूहा है शायद!

जैसे उसने दीया ले कर झांका, उसने दीए को फूंक मार कर बुझाया, धक्का दे कर भागा। सेंध से निकला। दस-बीस आदमी उसके पीछे हो लिए। बड़ा शोरगुल मच गया। सारा पड़ोस जग गया। वह जान छोड़ कर भागा। ऐसा वह कभी भागा नहीं था। उसे यह समझ में नहीं आया कि भागने वाला मैं हूं। जैसे कोई और ही भाग रहा है। एक कुएं के पास पहुंचा, एक चट्टान को उठा कर उसने कुएं में पटका। उसे यह भी पता नहीं कि यह मैं कर रहा हूं। जैसे कोई और करवा रहा है। चट्टान कुएं में गिरी, सारी भीड़ कुएं के पास इकट्ठी हो गयी। समझा कि चोर कुएं में कूद गया।

वह झाड़ के पीछे खड़े हो कर सुस्ताया। फिर घर गया। दरवाजे पर दस्तक दी। उसने कहा, आज इस बाप को ठीक करना ही पड़ेगा। यह सिखाना हुआ? अंदर गया। बाप कंबल ओढ़े आराम से सो रहा है। उसने कंबल खींचा और कहा कि क्या कर रहे हो? वह तो घुर्राटे ले रहा था। उसने जगाया। उसने कहा कि यह क्या है? मुझे मार डालना चाहते हैं? बाप ने कहा, तू आ गया, बाकी कहानी सुबह सुन लेंगे। मगर तू सीख गया। अब सिखाने की कोई जरूरत नहीं। बेटे ने कहा, कुछ तो कहो। कुछ तो पूछो मेरा हाल। क्योंकि मैं सो न पाऊंगा। तो बेटे ने सब हाल बताया कि ऐसा-ऐसा हुआ।

बाप ने कहा, बस! तुझे कला आ गयी। तुझे आ गयी कला, यह सिखायी नहीं जा सकती। लेकिन तू आखिर मेरा ही बेटा है। मेरा खून तेरे शरीर में दौड़ता है। बस, हो गया। तुझे राज मिल गया। क्योंकि चोर अगर बुद्धि से चले तो फंसेगा। वहां तो बुद्धि छोड़ देनी पड़ती है। क्योंकि हर घड़ी नयी है। हर बार नए लोगों की चोरी है। हर मकान नए ढंग का है। पुराना अनुभव कुछ काम नहीं आता। वहां तो बुद्धि से चले कि उपद्रव में पड़ जाओगे। वहां तो अंतस-चेतना से चलना पड़ता है।

झेन फकीर इस कहानी का उल्लेख करते हैं। वे कहते हैं, ध्यान की कला भी चोरी जैसी है। वहां इतना ही होश चाहिए। बुद्धि अलग हो जाए, सजगता हो जाए। जहां भय होगा, वहां सजगता हो सकती है। जहां खतरा होता है, वहां तुम जाग जाते हो। जहां खतरा होता है, वहां विचार अपने-आप बंद हो जाते हैं।

ओशो, एक ओंकार सतनाम(प्रवचन-20)

सादर आपका
शिवम् मिश्रा

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5 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सटीक कहानी मौजूदा हालातों पर लागू चोर मस्त है। सुन्दर बुलेटिन।

dr.sunil k. "Zafar " ने कहा…


बहुत शानदार कहानी हैं।
अंत की व्याख्या भी।आभार

विकास नैनवाल 'अंजान' ने कहा…

सुन्दर सुरुचिपूर्ण संकलन। मेरी पोस्ट को जगह देने के का शुक्रिया।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

आप सब का बहुत बहुत आभार।

नवीन श्रोत्रिय “उत्कर्ष” ने कहा…

उत्तम व शिक्षाप्रद सृजन

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