नमस्कार साथियो,
आज 9 अगस्त का दिन भारतीय सन्दर्भों में कई-कई मायनों में याद रखने वाला है.
वर्तमान सन्दर्भों में और अतीत के सन्दर्भों में. सभी सन्दर्भों में इसके साथ अपनी
ही ऐतिहासिकता जुड़ी हुई है. इससे परिचित होने के लिए हम-आप वर्तमान से अतीत की ओर
चलेंगे.
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आज़ाद देश के सत्तर वर्षों
में आज पहली बार हुआ है कि देश का प्रधानमंत्री ‘आज़ाद’ भूमि पर पहुँचा. प्रधानमंत्री
नरेंद्र मोदी ने शहीद चंद्रशेखर आजाद की जन्मस्थली भाभरा (अलीराजपुर) से सत्तर
साल आजादी, याद करो कुर्बानी कार्यक्रम शुरु किया. मध्य प्रदेश
की मौजूदा भाजपा सरकार ने अमर शहीद के सम्मान में गाँव का नाम बदलकर चंद्रशेखर
आजाद नगर कर दिया था. इसके साथ ही जिस मकान में 23 जुलाई 1906 को आजाद का जन्म
हुआ था उसे स्मारक के रूप में विकसित कर आजाद स्मृति मंदिर नाम दिया
था.
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आर्म्ड फोर्सेस
स्पेशल पॉवर एक्ट (AFSPA-अफस्पा)
को हटाये जाने हेतु 02 नवम्बर 2000 से लगातार भूख हड़ताल कर रही इरोम शर्मिला
ने आज अपना अनशन समाप्त किया. उनको नाक की नली के सहारे भोजन दिया जाता रहा है. अनशन
समाप्ति के बाद उन्होंने विवाह करने और चुनाव लड़ने की भी बात कही. सोलह वर्षों में
सरकार ने AFSPA-अफस्पा में किसी संशोधन का मन नहीं बनाया. सवाल
उठता है कि आखिर इतने लम्बे संघर्ष के बाद हासिल क्या हुआ? कहीं
ऐसा तो नहीं कि सोलह वर्षों के अपने संघर्ष के बाद भी किसी तरह का परिणाम न आते देख
इरोम अन्दर से टूटने लगी हों? सरकारों की चुप्पी भी अनेक सवालों
को जन्म देती है. क्या शांतिपूर्ण चलने वाले अनशन का कोई महत्त्व नहीं? AFSPA-अफस्पा समाप्त करना तर्कसंगत न हो किन्तु सोलह वर्षों के संघर्ष को
सरकारों द्वारा नजरअंदाज करना क्या तर्कसंगत है?
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भारतीय इतिहास में 9
अगस्त को अगस्त क्रांति दिवस के रूप में जाना जाता है. द्वितीय विश्व युद्ध में
समर्थन लेने के बावज़ूद जब अंग्रेज़ भारत को स्वतंत्र करने को तैयार नहीं हुए तो राष्ट्रपिता
महात्मा गाँधी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के रूप में आज़ादी
की अंतिम जंग का ऐलान कर दिया. 4 जुलाई 1942 को एक प्रस्ताव पारित किया गया कि
अंग्रेजों के ख़िलाफ़ नागरिक अवज्ञा आंदोलन चलाया जाए. इसे लेकर पार्टी में मतभेद हो
गए. राजगोपालाचारी ने पार्टी छोड़ दी. नेहरू और अबुल कलाम आज़ाद शुरुआत में संशय में
रहे फिर गाँधी के आह्वान पर समर्थन में आये. अंग्रेज पहले से सतर्क थे. इसलिए गाँधीजी
को अगले दिन क़ैद कर लिया गया. लगभग सभी नेता गिरफ़्तार हुए लेकिन अरुणा आसफ अली गिरफ़्तार
नहीं की गई. उन्होंने तिरंगा फहराकर भारत छोड़ो आंदोलन का शंखनाद किया.
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9 अगस्त 1925 को क्रांतिकारियों
द्वारा हथियार खरीदने के लिये अंग्रेजों का खजाना लूट लेने की ऐतिहासिक घटना को
अंजाम दिया गया. भारतीय इतिहास में इसे काकोरी कांड के नाम से जाना
गया. इस ट्रेन डकैती में जर्मनी के बने चार माउज़र पिस्तौल काम में लाये गये थे. इन
पिस्तौलों की विशेषता यह थी कि इनमें बट के पीछे लकड़ी का बना एक और कुन्दा लगाकर रायफल
की तरह उपयोग किया जा सकता था. हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के केवल दस सदस्यों
ने इस पूरी घटना को अंजाम दिया था. शाहजहाँपुर में हुई बैठक में रामप्रसाद बिस्मिल
ने अंग्रेजी खजाना लूटने की योजना बनायी. योजनानुसार राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी
ने काकोरी रेलवे स्टेशन से छूटी आठ डाउन सहारनपुर-लखनऊ पैसेन्जर को चेन
खींच कर रोका. क्रान्तिकारी रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में अशफाक
उल्ला खाँ, चन्द्रशेखर आज़ाद तथा छह अन्य सहयोगियों ने ट्रेन पर धावा बोल सरकारी खजाना लूट लिया. अंग्रेजी
सरकार ने हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के कुल चालीस क्रान्तिकारियों पर सम्राट के
विरुद्ध सशस्त्र युद्ध छेड़ने, सरकारी खजाना लूटने तथा मुसाफिरों
की हत्या करने का मुकदमा चलाया. जिसमें राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी,
रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ तथा ठाकुर रोशन सिंह को फाँसी की सजा सुनायी गयी. सोलह अन्य
क्रान्तिकारियों को चार वर्ष से लेकर अधिकतम काला पानी तक का दण्ड दिया गया. दो व्यक्ति
अभियोजन पक्ष के मुखबिर बन गए. चन्द्रशेखर आज़ाद को पुलिस खोजती रही.
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अतीत के गौरवशाली
पलों को संजोये आधुनिक पलों की साक्षी बनती आज की बुलेटिन आपके सामने है.
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(सभी चित्र गूगल छवियों से साभार)
4 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया प्रस्तुति ।
रामप्रसाद बिस्मिल, चंद्रशेखर आज़ाद, राजेन्द्रनाथ लाहिडी, अशफाकउल्ला खान,रोशन सिंह सहित सभी क्रांतिकारियों को नमन। अब जाते हैं ब्लॉग सूत्रों पर।
अतीत के गौरवशाली पलों को संजोये आधुनिक पलों की साक्षी बनती आज की बुलेटिन प्रस्तुति के साथ सुन्दर सार्थक लिंक प्रस्तुति हेतु आभार!
abhar shamil karne ke liye ..
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