नमस्कार मित्रो,
आज ३० अगस्त को गीतकार शैलेन्द्र, हिन्दी के साहित्यकार भगवती
चरण वर्मा, राजनीतिज्ञ एवं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सरदार हुकुम सिंह और भारतीय
स्वाधीनता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर कनाईलाल दत्त का जन्मदिन
है. किसके बारे में लिखा जाये का असमंजस दिमाग में एक क्षण को आया किन्तु उक्त सभी
लोगों में वीर कनाईलाल सबसे अलग, सबसे ऊपर दिखाई दिए.
शैलेन्द्र ने होठों पर सच्चाई रहती है, मेरा जूता है जापानी, आज फिर जीने की तमन्ना है जैसे सुप्रसिद्ध गीत लिखे; भगवती चरण वर्मा ने चित्रलेखा,
भूले बिसरे चित्र, सीधे सच्ची बातें, सबहि नचावत राम गुसाईं जैसी कृतियाँ दी और सरदार
हुकुम सिंह 1962 से 1967 के बीच लोकसभा के तीसरे अध्यक्ष रहे साथ ही 1967
से 1972 तक राजस्थान के राज्यपाल भी रहे. इन विभूतियों को श्रद्धांजलि.
आइये अब जानते हैं वीर कनाईलाल दत्त के बारे में.
वीर कनाईलाल दत्त |
वीर बाँकुरे कनाईलाल दत्त का जन्म 30 अगस्त 1888 को बंगाल के हुगली ज़िले
में चंद्रनगर में हुआ था. उनके पिता की नियुक्ति होने के कारण कनाईलाल पाँच वर्ष की
उम्र में मुंबई आ गए. यहीं उनकी आरम्भिक शिक्षा-दीक्षा हुई. बाद में उन्होंने हुगली
कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की किन्तु उनकी राजनीतिक गतिविधियों के चलते ब्रिटिश
सरकार ने उनकी डिग्री रोक ली.
1905 के बंगाल विभाजन विरोधी आन्दोलन में
कनाईलाल ने भाग लिया तथा आन्दोलन के नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के सम्पर्क में आये.
1908 के
अप्रैल माह में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर में किंग्सफ़ोर्ड पर हमला
किया. इस हमले के आरोपी के रूप में कनाईलाल दत्त, अरविन्द घोष और बारीन्द्र कुमार आदि को गिरफ्तार
किया गया. उन्हीं के बीच का एक साथी नरेन गोस्वामी सरकारी मुखबिर बन गया. अन्य क्रान्तिकारियों
ने इस मुखबिर से बदला लेने का विचार बनाया. इसके लिए कनाईलाल दत्त और सत्येन बोस ने
उसको जेल के अंदर ही मारने का निश्चय किया. योजना बनाने के बाद इन दोनों ने होने
वाली मुलाकात के समय गुप्त रूप से जेल में रिवाल्वर मँगवा लिया. योजनानुसार पहले सत्येन
बोस बीमार होकर जेल के अस्पताल में भर्ती हुए उसके बाद कनाईलाल भी बीमार होकर
वहीं भर्ती हुए. एक दिन सत्येन ने मुखबिर नरेन गोस्वामी के पास खुद को सरकारी गवाह
बनने सम्बन्धी संदेश भिजवाया. नरेन ये सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ और वह सत्येन से मिलने
जेल के अस्पताल पहुँच गया. उसके वहाँ पहुँचते ही कनाईलाल और सत्येन बोस ने उसे अपनी
गोलियों से वहीं ढेर कर दिया. दोनों क्रांतिकारियों पर मुकदमा चला और दोनों को मृत्युदंड
मिला.
कनाईलाल को अपने फैसले के विरोध में अपील करने से प्रतिबंधित
कर दिया गया था. ऐसा फैसला इसका द्योतक है कि अंग्रेजी सरकार उनसे किस कदर घबराती
थी. 10 नवम्बर 1908 को कनाईलाल कलकत्ता में
फाँसी दे दी गई. मात्र बीस वर्ष की आयु में ही शहीद हो जाने वाले कनाईलाल दत्त की शहादत
को भारत में कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. उनकी शहादत को श्रद्धापूर्वक नमन.
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7 टिप्पणियाँ:
क्या बात है । आजकल बुलेटिन जल्दी उठने लगा है :) बहुत सुन्दर । बढ़िया प्रस्तुति राजा साहेब ।
शहीदों को समर्पित ब्लॉग बुलेटिन, शायद ऐसा एकमात्र ब्लॉग है, जिसने तमाम नामी और गुमनामी शहीदों को श्रद्धांजलि देंने का पुनीत कार्य किया है! नमनीय!!
वीर कनाईलाल दत्त के बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद |
ख्यालरखे.com
शहीदों को समर्पित ब्लॉग बुलेटिन, शायद ऐसा एकमात्र ब्लॉग है, जिसने तमाम नामी और गुमनामी शहीदों को श्रद्धांजलि देंने का पुनीत कार्य किया है! नमनीय!!
शुभ प्रभात..
आभार
सादर
शहीदों को समर्पित इस पोस्ट में मेरी प्रस्तुति को भी स्थान देने हेतु आभार...
बहुत सुन्दर सार्थक बुलेटिन प्रस्तुति .. सभी शहीदों को नमन!
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