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बुधवार, 31 अगस्त 2016

31 अगस्त का इतिहास और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।

आज का इतिहास

1881 - अमेरिका में पहली बार टेनिस चैंपियनशिप खेला गया।
1920- अमेरिकी शहर डेट्रायट में रेडियो पर पहली बार समाचार प्रसारित किया गया।
1956 - भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने राज्य पुनर्गठन विधेयक को मंजूरी दी।
1959 - अमेरिकी बेसबॉल खिलाड़ी सैंडी कुफैक्स ने एक नेशनल लीग रिकॉर्ड बनाया।
1962 - कैरेबियाई देश टोबैगो एवं त्रिनिदाद ब्रिटेन से स्वतंत्र हुए।
1964 - कैलिफोर्निया आधिकारिक रूप से अमेरिका का सबसे अधिक जनसंख्या वाला प्रांत बना।
1968 - भारत में टू-स्टेज राउंडिंग रॉकेट रोहिणी-एमएसवी 1 का सफल प्रक्षेपण किया गया।
1983 - भारत के उपग्रह इनसेट-1 बी को अमेरिका के अंतरिक्ष शटल चैलेंजर से प्रसारित किया गया।
1990 - पूर्वी और पश्चिमी जर्मनी ने राजनीतिक और कानूनी व्यवस्था के तालमेल के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर किए।
1991 - उज्बेकिस्तान और किर्गिस्तान ने सोवियत संघ से अपनी स्वतंत्रता की घोषणा की।
1993 - रूस ने लिथुआनिया से अपने आखिरी सैनिकों को वापस बुलाया।
1998 - उत्तरी कोरिया ने जापान पर बैलिस्टिक मिसाइल दागा।
2005 - इराक की राजधानी बगदाद में अल-एम्माह पुल के ध्वस्त होने से 1199 लोगों की मौत।


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर...


दद्दा ध्यानचंद हम तो बेशर्म हैं !!

अब सिंधुस्थान की माँग

दिल्ली और बारिश

क्या रूसी वैज्ञानिको ने एलियन सभ्यता के संकेत ग्रहण किये है ?

मोबाईल-मोबाईल

अजंता की गुफ़ाओं की सैर

राजेन्द्र अवस्थी को याद करते हुए कुछ प्रसंग

पीएम मोदी के कश्मीर मिशन का लक्ष्य

कितना कठिन है रोबो बच्चों का प्रशिक्षण

कृपया ड्रोन साथ लेकर आएं !

मरे घर के मरे लोगों की खबर भी होती है मरी मरी पढ़कर मत बहकाकर



आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे, तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।

मंगलवार, 30 अगस्त 2016

वीर कनाईलाल की शहादत और ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार मित्रो,
आज ३० अगस्त को गीतकार शैलेन्द्र, हिन्दी के साहित्यकार भगवती चरण वर्मा, राजनीतिज्ञ एवं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सरदार हुकुम सिंह और भारतीय स्वाधीनता संग्राम में अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर कनाईलाल दत्त का जन्मदिन है. किसके बारे में लिखा जाये का असमंजस दिमाग में एक क्षण को आया किन्तु उक्त सभी लोगों में वीर कनाईलाल सबसे अलग, सबसे ऊपर दिखाई दिए.
शैलेन्द्र ने होठों पर सच्चाई रहती है, मेरा जूता है जापानी, आज फिर जीने की तमन्ना है जैसे सुप्रसिद्ध गीत लिखे; भगवती चरण वर्मा ने चित्रलेखा, भूले बिसरे चित्र, सीधे सच्ची बातें, सबहि नचावत राम गुसाईं जैसी कृतियाँ दी और सरदार हुकुम सिंह 1962 से 1967 के बीच लोकसभा के तीसरे अध्यक्ष रहे साथ ही 1967 से 1972 तक राजस्थान के राज्यपाल भी रहे. इन विभूतियों को श्रद्धांजलि.
आइये अब जानते हैं वीर कनाईलाल दत्त के बारे में.
वीर कनाईलाल दत्त 
वीर बाँकुरे कनाईलाल दत्त का जन्म 30 अगस्त 1888 को बंगाल के हुगली ज़िले में चंद्रनगर में हुआ था. उनके पिता की नियुक्ति होने के कारण कनाईलाल पाँच वर्ष की उम्र में मुंबई आ गए. यहीं उनकी आरम्भिक शिक्षा-दीक्षा हुई. बाद में उन्होंने हुगली कॉलेज से स्नातक की परीक्षा उत्तीर्ण की किन्तु उनकी राजनीतिक गतिविधियों के चलते ब्रिटिश सरकार ने उनकी डिग्री रोक ली.
1905 के बंगाल विभाजन विरोधी आन्दोलन में कनाईलाल ने भाग लिया तथा आन्दोलन के नेता सुरेन्द्रनाथ बनर्जी के सम्पर्क में आये. 1908 के अप्रैल माह में खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने मुजफ्फरपुर में किंग्सफ़ोर्ड पर हमला किया. इस हमले के आरोपी के रूप में कनाईलाल दत्त, अरविन्द घोष और बारीन्द्र कुमार आदि को गिरफ्तार किया गया. उन्हीं के बीच का एक साथी नरेन गोस्वामी सरकारी मुखबिर बन गया. अन्य क्रान्तिकारियों ने इस मुखबिर से बदला लेने का विचार बनाया. इसके लिए कनाईलाल दत्त और सत्येन बोस ने उसको जेल के अंदर ही मारने का निश्चय किया. योजना बनाने के बाद इन दोनों ने होने वाली मुलाकात के समय गुप्त रूप से जेल में रिवाल्वर मँगवा लिया. योजनानुसार पहले सत्येन बोस बीमार होकर जेल के अस्पताल में भर्ती हुए उसके बाद कनाईलाल भी बीमार होकर वहीं भर्ती हुए. एक दिन सत्येन ने मुखबिर नरेन गोस्वामी के पास खुद को सरकारी गवाह बनने सम्बन्धी संदेश भिजवाया. नरेन ये सुनकर बहुत प्रसन्न हुआ और वह सत्येन से मिलने जेल के अस्पताल पहुँच गया. उसके वहाँ पहुँचते ही कनाईलाल और सत्येन बोस ने उसे अपनी गोलियों से वहीं ढेर कर दिया. दोनों क्रांतिकारियों पर मुकदमा चला और दोनों को मृत्युदंड मिला.
कनाईलाल को अपने फैसले के विरोध में अपील करने से प्रतिबंधित कर दिया गया था. ऐसा फैसला इसका द्योतक है कि अंग्रेजी सरकार उनसे किस कदर घबराती थी. 10 नवम्बर 1908 को कनाईलाल कलकत्ता में फाँसी दे दी गई. मात्र बीस वर्ष की आयु में ही शहीद हो जाने वाले कनाईलाल दत्त की शहादत को भारत में कभी भुलाया नहीं जा सकेगा. उनकी शहादत को श्रद्धापूर्वक नमन.

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सोमवार, 29 अगस्त 2016

मेजर ध्यानचन्द और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
मेजर ध्यान चन्द ( Major Dhyan Chand ) ( जन्म - 29 अगस्त, 1905, इलाहाबाद, मृत्यु - 3 दिसंबर, 1979, नई दिल्ली ) एक भारतीय हॉकी खिलाड़ी थे, जिनकी गिनती श्रेष्ठतम कालजयी खिलाड़ियों में होती है। मानना होगा कि हॉकी के खेल में ध्यानचंद ने लोकप्रियता का जो कीर्त्तिमान स्थापित किया है उसके आसपास भी आज तक दुनिया का कोई खिलाड़ी नहीं पहुँच सका।

1922 में भारतीय सेना में शामिल हुए और 1926 में सेना की टीम के साथ न्यूज़ीलैंड के दौरे पर गए। 1928 और 1932 के ओलंपिक खेलों में खेलने के बाद 1936 में बर्लिन ओलम्पिक में ध्यानचंद ने भारतीय टीम का नेतृत्व किया और स्वयं छ्ह गोल दाग़कर फ़ाइनल में जर्मनी को पराजित किया। 1932 में भारत के विश्वविजयी दौरे में उन्होंने कुल 133 गोल किए। ध्यांनचंद ने अपना अंतिम अंतर्राष्ट्रीय मैच 1948 में खेला। अंतर्राष्ट्रीय मैचों में उन्होंने 400 से अधिक गोल किए।

ध्यानचंद ने तीन ओलिम्पिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया तथा तीनों बार देश को स्वर्ण पदक दिलाया। आँकड़ों से भी पता चलता है कि वह वास्तव में हॉकी के जादूगर थे। भारत ने 1932 में 37 मैच में 338 गोल किए, जिसमें 133 गोल ध्यानचंद ने किए थे। दूसरे विश्व युद्ध से पहले ध्यानचंद ने 1928 (एम्सटर्डम), 1932 (लॉस एंजिल्स) और 1936 (बर्लिन) में लगातार तीन ओलिंपिक में भारत को हॉकी में गोल्ड मेडल दिलाए। दूसरा विश्व युद्ध न हुआ होता तो वह छह ओलिंपिक में शिरकत करने वाले दुनिया के संभवत: पहले खिलाड़ी होते ही और इस बात में शक की क़तई गुंजाइश नहीं इन सभी ओलिंपिक का गोल्ड मेडल भी भारत के ही नाम होता।

हिटलर और सर डॉन ब्रैडमैन भी थे प्रशंसक 

ध्यानचंद ने अपनी करिश्माई हॉकी से जर्मन तानाशाह हिटलर ही नहीं बल्कि महान क्रिकेटर डॉन ब्रैडमैन को भी अपना क़ायल बना दिया था। यह भी संयोग है कि खेल जगत की इन दोनों महान हस्तियों का जन्म दो दिन के अंदर पर पड़ता है। दुनिया ने 27 अगस्त को ब्रैडमैन की जन्मशती मनाई तो 29 अगस्त को वह ध्यानचंद को नमन करने के लिए तैयार है, जिसे भारत में खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है। ब्रैडमैन हाकी के जादूगर से उम्र में तीन साल छोटे थे। अपने-अपने फन में माहिर ये दोनों खेल हस्तियाँ केवल एक बार एक-दूसरे से मिले थे। वह 1935 की बात है जब भारतीय टीम आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के दौरे पर गई थी। तब भारतीय टीम एक मैच के लिए एडिलेड में था और ब्रैडमैन भी वहाँ मैच खेलने के लिए आए थे। ब्रैडमैन और ध्यानचंद दोनों तब एक-दूसरे से मिले थे। ब्रैडमैन ने तब हॉकी के जादूगर का खेल देखने के बाद कहा था कि वे इस तरह सेगोल करते हैं, जैसे क्रिकेट में रन बनते हैं। यही नहीं ब्रैडमैन को बाद में जब पता चला कि ध्यानचंद ने इस दौरे में 48 मैच में कुल 201 गोल दागे तो उनकी टिप्पणी थी, यह किसी हॉकी खिलाड़ी ने बनाए या बल्लेबाज ने। ध्यानचंद ने इसके एक साल बाद बर्लिन ओलिम्पिक में हिटलर को भी अपनी हॉकी का क़ायल बना दिया था। उस समय सिर्फ हिटलर ही नहीं, जर्मनी के हॉकी प्रेमियों के दिलोदिमाग पर भी एक ही नाम छाया था और वह था ध्यानचंद।

1956 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। उनके जन्मदिन को भारत का राष्ट्रीय खेल दिवस घोषित किया गया है। इसी दिन खेल में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं। भारतीय ओलम्पिक संघ ने ध्यानचंद को शताब्दी का खिलाड़ी घोषित किया था।

विश्व हॉकी जगत के शिखर पर जादूगर की तरह छाए रहने वाले मेजर ध्यानचंद का 3 दिसम्बर, 1979 को सुबह चार बजकर पच्चीस मिनट पर नई दिल्ली में देहांत हो गया। झाँसी में उनका अंतिम संस्कार किसी घाट पर न होकर उस मैदान पर किया गया, जहाँ वो हॉकी खेला करते थे। अपनी आत्मकथा 'गोल' में उन्होंने लिखा था, "आपको मालूम होना चाहिए कि मैं बहुत साधारण आदमी हूँ" वो साधारण आदमी नहीं थे लेकिन वो इस दुनिया से गए बिल्कुल साधारण आदमी की तरह।

मेजर ध्यानचन्द जी की 111वीं जन्म दिवस पर पूरा देश उनको याद करते हुए भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करता है। सादर।।


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर....


हिंदीभाषी होने का दर्द ~ अमित शर्मा

शमी...सूख गये, रह गये

वित्तीय वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक क्यों होता है?

एक सम्मानित साईकल चोर : The Bicycle Thief (1949)

धर्म और राजनीति - एक पुनर्परिभाषा

अद्भुत शिल्पकारी का अद्भुत नमूना कैलाश मंदिर गुफ़ा एलोरा

फसल

मेरे हिस्से की धूप

पत्तों का खाक होना

अपनों से मिला है न ज़माने से मिला है

मित्रता का भाव हो तुम


आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे, तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। जय हिन्द। जय भारत।।

शनिवार, 27 अगस्त 2016

ऋषिकेश मुखर्जी और मुकेश - ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।


ऋषिकेश मुखर्जी
मुकेश
आज हिंदी फिल्म जगत के दो महान कलाकारों की पुण्यतिथि है एक हैं महान फिल्म निर्माता- निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी और दूसरे हैं महान गायक मुकेश। हिंदी फिल्म जगत में इन दोनों ही महान शख्सियतों ने अपना अतुलनीय और सराहनीय योगदान दिया। ऋषिकेश मुखर्जी और मुकेश ने एक साथ केवल दो फिल्मों में काम किया है और वो फिल्म है अनाड़ी (1959) और आनंद(1971)। इन दोनों ही फिल्म के गाने उस दौर में काफी प्रसिद्ध हुए थे। अनाड़ी (1959) फिल्म का गीत "सब कुछ सीखा हमने" और आनंद(1971) फिल्म के दो गीत "मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने, सपने सुरीले सपने" तथा "कहीं दूर जब दिन ढल जाएँ"। अनाड़ी (1959) फिल्म के गीत "सब कुछ सीखा हमने" के लिए मुकेश जी को 1959 के सर्वश्रेष्ठ गायक का फ़िल्मफेयर पुरस्कार भी मिला था। जबकि ऋषिकेश मुखर्जी जी को फिल्म आनंद(1971) के लिए सर्वश्रेष्ट कहानी और बेस्ट एडिटिंग का फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिला था। इन दोनों ने ही हिंदी फिल्म जगत को असीम ऊँचाइयों तक पहुँचाया।




आज इनकी पुण्यतिथि पर पूरा हिंदी ब्लॉग जगत और हमारी ब्लॉग बुलेटिन टीम इन्हें नमन करती है और हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करती है।

सादर 


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर...


सुनो, दाना मांझी सुनो..

दाना मांझी के नाम एक पत्र

मुर्गी, कबूतर और हैप्पी बर्थ-डे झूमा!!

आजादी का दिन 15 अगस्त कैसे तय हुआ?

प्लास्टिक को पहचानें उस पर दिए गए कोड से

पृथ्वी से मिलता जुलता नया ग्रह मिला

जंगल में भालुओं से भेंट

ये कहाँ आ गए हम ?

दाना मांझी के बहाने

ज़िंदगी कुछ नहीं कहा तूने

समाज की बहती हुई किसी धारा में क्यों नहीं बहता है बेकार की बातें फाल्तू में रोज यहाँ कहता है


आज की बुलेटिन में सिर्फ इतना ही। कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर  … अभिनन्दन।।

शुक्रवार, 26 अगस्त 2016

शब्दों का हेर फेर

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

विधानसभा का सत्र चल रहा था कि इतने में एक विधायक, जो अपने गुस्से और सनकीपन के लिए मशहूर थे, मध्य सत्र में ही बहुत ही गुस्से में जोर-जोर से चिल्लाने लगे, 
 
"इस सदन में बैठे आधे नेता डरपोक और भ्रष्टाचारी है!"

सदन में बैठे अन्य नेतागण जोर से चिल्लाने लगे कि या तो ये विधायक महोदय अपना बयान वापिस ले या फिर इन्हें बचे हुए सत्र से बर्खास्त कर बाहर भेज दिया जाये!

थोड़ी देर के लिए सदन में बिल्कुल सन्नाटा छा गया!

फिर वह विधायक बोले, 
 
"ठीक है, मैं अपने शब्द वापिस लेते हुए कहता हूँ कि इस सदन में बैठे आधे नेता न तो डरपोक है और न ही भ्रष्टाचारी है!"
 
सादर आपका

गुरुवार, 25 अगस्त 2016

युगपुरुष श्रीकृष्ण से सजी ब्लॉग बुलेटिन

नमस्कार साथियो,
आप सभी को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें




श्रीकृष्ण हिन्दू धर्म में विष्णु के अवतार माने जाते हैं. श्री कृष्ण का जन्म यदुवंशी क्षत्रिय कुल में राजा वृष्णि के वंश में भाद्रपद, कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था. श्रीकृष्ण साधारण व्यक्ति न होकर युगपुरुष थे. उनके व्यक्तित्व में भारत को एक प्रतिभा सम्पन्न राजनीतिवेत्ता ही नहीं वरन एक महान कर्मयोगी और दार्शनिक प्राप्त हुआ. श्रीकृष्ण ने सदैव कर्मव्यवस्था को सर्वोपरि माना. कुरुक्षेत्र में अर्जुन को कर्मज्ञान देते हुए उन्होंने गीता की रचना की जो आज भी सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है. उनका गीता-ज्ञान समस्त मानव-जाति एवं सभी देश-काल के लिए पथ-प्रदर्शक है. उनकी स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है. कई वैज्ञानिकों तथा पुराणों का मानना है कि हिन्दू कालगणना के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म लगभग 5000 वर्ष पूर्व हुआ था. भगवान श्रीकृष्ण को कान्हा, गोपाल, गिरधर, माधव, केशव, मधुसूदन, गिरधारी, रणछोड़, बंशीधर, नंदलाल, मुरलीधर आदि नामों से भी जाना जाता है.

उनके होंठों पर सजी बाँसुरी की प्रेमपरक धुनों और राक्षसों के संहार के लिए ऊँगली में घूमते सुदर्शन चक्र की आवश्यकता समाज को आज भी है. हमें ही बनना होगा अपना कृष्ण, ऐसी सोच के बीच प्रस्तुत है आज की बुलेटिन.

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बुधवार, 24 अगस्त 2016

१०८ वीं जयंती पर अमर शहीद राजगुरु जी को नमन

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

सरदार भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव का नाम भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन में अत्यंत आदर के साथ लिया जाता है. इनमें से राजगुरु का जन्म 24 अगस्त, 1908 को पुणे (महाराष्ट्र) के खेड़ा गाँव में हुआ था. इनके पिता का नाम श्री हरि नारायण और माता का नाम पार्वती बाई था. पिता का निधन इनके बाल्यकाल में हो जाने के कारण इनका पालन-पोषण इनकी माता और बड़े भैया ने किया था. पिता की मृत्यु के समय राजगुरु की उम्र 6 वर्ष थी. इनका पूरा नाम शिवराम हरी राजगुरु था. इनकी माता भगवान शिव में बहुत आस्था रखती थी. इनके माता-पिता ने इन्हें भगवान शिव का आशीर्वाद मानते हुये, इनका नाम शिवराम रखा. ये बचपन से ही वीर, साहसी और मस्तमौला स्वभाव के थे.
अमर शहीद राजगुरु
जिस दौर में राजगुरु का जन्म हुआ उस समय अंग्रेजी शासन दमनकारी नीति अपनाये हुए था. इसी को लागू करते हुये अंग्रेजों ने 1919 में रोलेक्ट एक्ट लागू किया. इस एक्ट के विरोध में जलियाँवाला बाग में एक शान्तिसभा का आयोजन किया गया. लेकिन ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जनरल डायर ने बाग को चारों तरफ से घेर कर वहाँ उपस्थित सभी व्यक्तियों पर गोलियाँ चलवा दी. इस हत्याकांड में हजारों निर्दोष लोगों की जान चली गयी. इसकी पूरे देश में आलोचना हुई. इस हत्याकांड के समय राजगुरु मात्र 11 वर्ष के थे. इन्होंने अपने विद्यालय में शिक्षकों को इस घटना के बारे में बात करते सुना. ये अपने अध्यापकों से इस बारे में कोई बात न कर सके किन्तु इस घटना का इनके दिमाग पर गहरा प्रभाव पड़ा. इस घटना का जिक्र उन्होंने अपने गाँव के एक वृद्ध फौजी से किया. वृद्ध फौजी द्वारा बतायी गयी बातों से राजगुरु क्रोध में आ गए और खुद को देशभक्त के रुप में देखने लगे. उसी समय राजगुरु ने देश को आजाद कराने का संकल्प ले लिया.

आज अमर शहीद राजगुरु जी की १०८ वीं जयंती के अवसर पर ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब उनको शत शत नमन करते हैं |

सादर आपका

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बाबा मेरे बच्चे कैसे हैं .....

तीन लोक से मथुरा न्यारी यामें जन्में कृष्णमुरारी

जन्माष्टमी -हाईकू

प्रेरणा...!

और मैं तुम्हे जी लुंगी......!!!

**~मधुर तेरी तान~** --चोका

मैं तुमसे कम भी नहीं हूँ

हमारा कोलंबस सफर

राखी [कुण्डलिया]

एक क्रांतिकारी का ठाकुर जी प्रतिमा के आगे शस्त्र समर्पण

अमर शहीद राजगुरु जी की १०८ वीं जयंती 

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अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

मंगलवार, 23 अगस्त 2016

कजली का शौर्य और ब्लॉग बुलेटिन

विन्ध्य पर्वत श्रणियों के बीच बसे, नैसर्गिक सुन्दरता से निखरे बुन्देलखण्ड में संस्कृति, लोक-तत्त्व, शौर्य-ओज, आन-बान-शान की अद्भुत छटा के दर्शन होते ही रहते हैं. यहाँ की लोक-परम्परा में कजली का अपना ही विशेष महत्त्व है. महोबा के राजा परमाल के शासन में आल्हा-ऊदल के शौर्य-पराक्रम के साथ-साथ अन्य बुन्देली रण-बाँकुरों की विजय की स्मृतियों को संजोये रखने के लिए कजली मेले का आयोजन आठ सौ से अधिक वर्षों से निरंतर होता आ रहा है. सावन महीने की नौवीं से इसका अनुष्ठान शुरू होता है. घर-परिवार की महिलाएँ मिट्टी लाकर उसे छौले के दोने (पत्तों का बना पात्र) में भरकर उसमें गेंहू, जौ आदि को बो देती हैं. नित्य पानी-दूध चढ़ाकर उसका पूजन किया जाता है. इसके पीछे उन्नत कृषि, उन्नत उपज होने की कामना छिपी रहती है. सावन की पूर्णिमा को इन पात्रों (दोने) में बोये गए बीजों के नन्हें अंकुरण (कजली) को निकाल पात्रों को तालाब में विसर्जित किया जाता है. उन्नत उपज की कामना के लिए इन्हीं कजलियों का आदरपूर्वक आदान-प्रदान करके शुभकामनायें दी जाती हैं.

महोबा के राजा परमाल की पुत्री चंद्रावलि अपनी सहेलियों के साथ प्रतिवर्ष कीरत सागर तालाब में कजलियों को सिराने (विसर्जन करने) जाया करती थी. सन 1182 में दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान ने राजकुमारी के अपहरण की योजना बनाई और तय किया कि कजलियों के विसर्जन के समय ही आक्रमण करके उसका अपहरण कर लिया जाये. पृथ्वीराज चौहान जानते थे कि महोबा के पराक्रमी आल्हा और ऊदल की कमी में जीत आसान होगी. पृथ्वीराज चौहान के पुत्र सूरज सिंह और सेनापति चामुंडा राय ने महोबा को घेर लिया. रानी मल्हना ने आल्हा-ऊदल को महोबा की रक्षा करने के लिए तुरंत वापस आने का सन्देश भिजवाया. सूचना मिलते ही आल्हा-ऊदल अपने चचेरे भाई मलखान के साथ महोबा पहुँचे और पृथ्वीराज की सेना पर आक्रमण कर दिया. इस भीषण युद्ध में आल्हा-ऊदल के अद्भुत पराक्रम, वीर अभई के शौर्य के चलते पृथ्वीराज चौहान की सेना हार कर रणभूमि से भाग गई. इस युद्ध में राजा परमाल का पुत्र रंजीत सिंह तथा पृथ्वीराज चौहान का पुत्र सूरज सिंह वीरगति को प्राप्त हुए.

ऐतिहासिक विजय प्राप्त करने के बाद राजकुमारी चंद्रावलि और उसकी सहेलियों के साथ-साथ राजा परमाल की पत्नी रानी मल्हना ने महोबा की अन्य महिलाओं संग भुजरियों (कजली) का विसर्जन किया. इसी के बाद पूरे महोबा में रक्षाबंधन का पर्व धूमधाम से मनाया गया. तब से ऐसी परम्परा चली आ रही है कि बुन्देलखण्ड में रक्षाबंधन का पर्व भुजरियों का विसर्जन करने के बाद ही मनाया जाता है. आज भी इस क्षेत्र में बहिनें रक्षाबंधन पर्व के एक दिन बाद भाइयों की कलाई में राखी बाँधती हैं. यहाँ के लोग आल्हा-ऊदल के शौर्य-पराक्रम को नमन करते हुए बुन्देलखण्ड के वीर रण-बाँकुरों को याद करते हैं.

आइये अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर.

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सोमवार, 22 अगस्त 2016

दिखावे से छवि नहीं बनती


प्रेम करते हुए 
न राधा को सोचो, न मीरा को 
न पारो को 
... न कृष्ण को, 
न देवदास को 
किसी के जैसा होने का कोई अर्थ नहीं !
प्रेम है 
तो तुम्हारा 'अपना' होना ही महत्वपूर्ण है 

यदि तुम्हें पढ़ना नहीं आता 
तो ज़रूरी नहीं 
कि तुम मन्त्रों का उच्चारण करो 
तुम्हारे भीतर आस्था है 
तो 108 बार माला जपने की भी ज़रूरत नहीं 
क्षमता से अधिक कुछ भी करना 
ना ही सही पूजा है 
न सुकून  
तुम्हारी अपनी शान्ति महत्वपूर्ण है !

याद रखो,
दिखावे से छवि नहीं बनती 
बल्कि सबकुछ तितर बितर हो जाता है 

रविवार, 21 अगस्त 2016

सबसे तेज क्या?

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

एक बार कक्षा छठी में चार बालकों को परीक्षा मे समान अंक मिले, अब प्रश्न खडा हुआ कि किसे प्रथम रैंक दिया जाये। स्कूल प्रबन्धन ने तय किया कि प्राचार्य चारों से एक सवाल पूछेंगे, जो बच्चा उसका सबसे सटीक जवाब देगा उसे प्रथम घोषित किया जायेगा।

चारों बच्चे हाजिर हुए, प्राचार्य ने सवाल पूछा, "दुनिया में सबसे तेज क्या होता है?"

पहले बच्चे ने कहा, "मुझे लगता है 'विचार' सबसे तेज होता है, क्योंकि दिमाग में कोई भी विचार तेजी से आता है, इससे तेज कोई नहीं।"

प्राचार्य ने कहा, "ठीक है, बिलकुल सही जवाब है।"

दूसरे बच्चे ने कहा, "मुझे लगता है 'पलक झपकना' सबसे तेज होता है, हमें पता भी नहीं चलता और पलकें झपक जाती हैं और अक्सर कहा जाता है, 'पलक झपकते' कार्य हो गया।

प्राचार्य बोले, "बहुत खूब, बच्चे दिमाग लगा रहे हैं।"

तीसरे बच्चे ने कहा, "मैं समझता हूँ 'बिजली', क्योंकि मेरे यहाँ गैरेज, जो कि सौ फ़ुट दूर है, में जब बत्ती जलानी होती है, हम घर में एक बटन दबाते हैं, और तत्काल वहाँ रोशनी हो जाती है,तो मुझे लगता है 'बिजली' सबसे तेज होती है।"

अब बारी आई चौथे बच्चे की। सभी लोग ध्यान से सुन रहे थे, क्योंकि लगभग सभी तेज बातों का उल्लेख तीनो बच्चे पहले ही कर चुके थे।

चौथे बच्चे ने कहा, "सबसे तेज होते हैं 'दस्त'।

सभी चौंके, प्राचार्य ने कहा, "साबित करो कैसे?"

बच्चा बोला, "कल मुझे दस्त हो गए थे, रात के दो बजे की बात है, जब तक कि मैं कुछ 'विचार' कर पाता, या 'पलक झपकाता' या 'बिजली' का स्विच दबाता, दस्त अपना 'काम' कर चुका था।

कहने की जरूरत नहीं कि इस असाधारण सोच वाले बालक को ही प्रथम घोषित किया गया।
 
सादर आपका
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शनिवार, 20 अगस्त 2016

सिल्वर मेडल जीतने वाली गोल्डन गर्ल - पीवी सिंधू और ब्लॉग बुलेटिन

सभी ब्लॉगर मित्रों को मेरा सादर नमस्कार।
रियो ओलंपिक के महिला सिंगल्स बैडमिंटन मुकाबले में भारत की पीवी सिंधू को भले ही हार का सामना करना पड़ा। लेकिन इस हार के बाद भी सिंधू ने रियो ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। सिंधू ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतने वाली भारत की पहली महिला बैडमिंटन खिलाड़ी बनीं। इससे पहले भारत का कोई भी बैडमिंटन खिलाड़ी इस मुकाम तक नहीं पहुंच सका है. फाइनल मुकाबले में सिंधू को दुनिया की नंबर एक बैडमिंटन खिलाड़ी कैरोलीना मारिन से एक संघर्षपूर्ण मुकाबले में शिकस्त मिली।

सिंधू ने ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर रचा इतिहास

सवा सौ करोड़ देशवासियों की निगाहें रियो ओलंपिक के महिला सिंगल्स मुकाबले को देखने के लिए लगी थीं। पीवी सिंधू ओलंपिक के महिला सिंगल्स मुकाबले के फाइनल में पहुंच कर पहले ही इतिहास रच चुकीं थी। लेकिन देश को अपनी इस हौनहार बेटी से गोल्ड मेडल की उम्मीद थी। रियो ओलंपिक में सिंधू ने अपने से कई बड़ी ऊंची रैंकिंग वाली खिलाड़ी को शिकस्त देकर फाइनल में पहुंचीं थी। लेकिन इस बार उनके सामने दुनिया की नंबर एक स्पेनिश खिलाड़ी कैरोलीना मारिन थी। जिससे पार पाना आसान नहीं था. लेकिन सिंधू ने पहले ही गेम से जबरदस्त खेल दिखाया और 21-19 से पहला जीता लिया। हालांकि वो पहले पिछड़ रहीं थी। लेकिन शानदार स्ट्रोक्स की बदौत उन्होंने 1-0 की बढ़त बनाई।

कांटे की हुई टक्कर

दूसरे गेम में जब दोनों खिलाड़ी एक दूसरे सामने उतरी तो फिर से एक जबरदस्त मुकाबाल शुरू हुआ। कभी सिंधू के करारे स्ट्रोक्स देखने को मिले रहे थे तो कभी कैरोलीना का दमदार स्मैश। छोटी- मोटी गलतियों की वजह से स्पेनिश खिलाड़ी ने 14-7 से बढ़त बनाई। लेकिन एक बार फिर से सिंधू ने शानदार खेल दिखाया और इस बड़ी लीड को कम करने में कामयाबी हासिल की। लेकिन आखिर के दूसरे गेम में बाजी कैरोलीना ने ही मारी और 21-12 से दूसरा गेम जीतकर स्कोर को 1-1 की बराबरी पर ला दिया।

आखिरी गेम में रोमांचक मुकाबला हुआ

गोल्ड मेडल मैच के लिए तीसरा और निर्णायक गेम शुरू हुआ। एक बार फिर से दोनों ने जबरदस्त खेल दिखाना शुरू किया। दर्शकों का रोंमांच अपने चरम पर था. एक-एक प्वाइंट के लिए दोनों खिलाड़ी कड़ा संघर्ष कर रही थीं, फैन्स अपने-अपने खिलाड़ी को चियर कर रहे थे। कभी सिंधू के लिए तालियां बजती तो कभी कैरोलीना के लिए, दोनों ही खिलाड़ी इस महामुकाबले को जीतकर इतिहास रचना चहाती थी। एक फिर दूसरे गेम वाली कहानी हुई और आखिर में दुनिया की नंबर एक खिलाड़ी ने मारी और तीसरा मुकाबला 21-15 से जीतकर रियो ओलंपिक के बैडमिंटन सिगल्स मुकाबले की गोल्डन गर्ल का खिताब जीत लिया। भारत की पीवी सिंधू ने सिलवर मेडल जीतकर न सिर्फ इतिहास रचा जबकि वो भारतीय खेल इतिहास में हमेश के लिए अमर हो गईं। इससे पहले कोई भी भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी इस मुकाम को हासिल नहीं कर सका।


देश को नाज है अपनी इस बेटी पर जय हिन्द। जय भारत।।


अब चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर....


बोफोर्स का सच इसलिए है दफ़न

यह ताजा आत्मगौरव एक श्मशान-वैराग्य बनकर न रह जाए

सावधान! पीवी सिंधू

रियो ओलम्पिक में हमारी बेटियां

सुंदर है, दुलारी हैं, मधुबन हैं बेटियाँ

‘जय सिंधू, जय हिंदू’ कहने वालों को आप क्या कहेंगे

ह्विसिल ब्लोवर माने क्या?

कदम बढ़ते रहें तो ही जिंदगी चलती है

वाट्सएप- नियम, कानून और समाज

झर जाती हर दुःख की छाया

अच्छे लोग और उनके उनके लिये मिमियाते बकरे


आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे। तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।। जय हिन्द। जय भारत।।

शुक्रवार, 19 अगस्त 2016

चलिए देखा, पढ़ा जाए बुलेटिन



भागती हुई नानी
भागती हुई दादी
इन सबके बीच माँ
...
ज़िन्दगी का यह पृष्ठ भी क्या खूब है :)

और इस भागती नानी/दादी के पीछे शिवम भाई, "दीदी, बुलेटिन देख लीजिये" ... अच्छा, बहुत अच्छा लगता है इस हक़ और विश्वास के आगे :)
चलिए देखा, पढ़ा जाए बुलेटिन


प्रतिभा की दुनिया ...: भीतर बाहर की यात्राओं के सुर ...



बरसात के बाद धरती
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संभावनाओं से भरी है
बरसात के बाद की धरती
कितने सारे सुख रेंगते हुए भर रहे हैं रंग
इनमें वे रंग भी होंगे जो धुल गए बरसात में
वे सुख भी इनमें ही होगे जो बह गए आंख से- पिछली रात--।
इन सबके नाम नहीं जानता मैं
ना रंगों के- ना सुखों के
मुझे नहीं पता इनका घर कहां है और
इनको भी तो नहीं पता कुछ मेरे बारे में
जरा सा मिलूं तो टूटे अपरिचय---।
अब भी अनाड़ी और शरारती बच्‍चे की बनाई
आड़ी तिरछी धारियां पानी को साथ लेकर चल रही हैं
आंगन में
भले ही मैं इन धारियों की भाषा नहीं जानता
पर इतना जानता हूं कि मेरे ना समझने से
खत्‍म नहीं हो जाती कोई भाषा---।
भाषा हमेशा सुनी और पढ़ी नहीं जाती
छूकर कहा उस छोटे पौधे ने
यह स्‍पर्श याद रखना-- हरे रहना सदा
उसकी दुनिया में मेरा सुख हरा ही हो सकता था
उसने मुझे सुख की दुआ दी---।
हरियाये मन से झुककर उठाई जरा सी मिट्टी
छूकर कहा धरती से मेरे हाथों की गरमाहट और
हथेलियों के बीच पाली नमी सहेज लेना
बचा लेना इस क्षण को धाराधर बरसात में भी
धरती चुप रहकर देती है सहमति---।
हर सहमति एक संभावना है
संभावनाओं से भरी धरती की भाषा
झुककर छूने से समझ आाती है--।
( संभावनाओं में ि‍फसलन बहुत है, जरा संभल के मेरे आत्‍मीय---)

ईमेल एसएमएस की दुनिया में
डाकिये ने पकड़ाया लिफाफा
22 रुपए के स्टेम्प से सुसज्जित
भेजा गया था रजिस्टर्ड पोस्ट
पते के जगह, जैसे ही दिखी
वही पुरानी घिसी पिटी लिखावट
जग गए, एक दम से एहसास
सामने आ गए, सहेजे हुए दृश्य
वो झगड़ा, बकबक, मारपीट
सब साथ ही दिखा,
प्यार के छौंक से सना वो
मनभावन, अलबेला चेहरा
उसकी वो छोटी सी चोटी,
उसमे लगा काला क्लिप जो होती थी,
मेरे हाथों कभी
एक दम से आ गया सामने
उसकी फ्रॉक, उसका सैंडल
ढाई सौ ग्राम पाउडर से पूता चेहरा
खूबसूरत दिखने की ललक
एक सुरीली पंक्ति भी कानों में गूंजी
“भैया! खूबसूरत हूँ न मैं??”
हाँ! समझ गया था,
लिफाफा में था
मेरे नकचढ़ी बहना का भेजा हुआ
रेशमी धागे का बंधन
था साथ में, रोली व चन्दन
थी चिट्ठी.....
था जिसमे निवेदन
“भैया! भाभी से ही बँधवा लेना !
मिठाई भी मँगवा लेना !!”
हाँ! ये भी पता चल चुका था
आने वाला है रक्षा बंधन
आखिर भाई-बहन का प्यारा रिश्ता
दिख रहा था लिफाफे में ......
सिमटा हुआ...........!!!

गुरुवार, 18 अगस्त 2016

साक्षी ने दिया रक्षाबंधन का उपहार

प्रिय ब्लॉगर मित्रों,
प्रणाम |

महिला पहलवान साक्षी मलिक ने रियो ओलंपिक में भारत का पदकों का इंतजार खत्म करते हुए 58 किग्रा वर्ग में रेपेचेज के कांस्य पदक के मुकाबले में किर्गिस्तान की ऐसुलू ताइनीबेकोवा को हराकर कांस्य पदक दिलाया। साक्षी ओलंपिक पदक जीतने वाली भारत की चौथी महिला खिलाड़ी और पहली भारतीय महिला पहलवान बन गई। उसने कांस्य पदक के मुकाबले में खराब शुरूआत से उबरते हुए ताइनीबेकोवा को 8-5 से शिकस्त देकर भारत के लिए कांस्य पदक जीता। साक्षी ने महिला कुश्ती की 58 किग्रा स्पर्धा में रेपेचेज के जरिये कांस्य पदक जीतकर रियो ओलंपिक खेलों में भारत को पदक तालिका में जगह दिलाई और 11 दिन की मायूसी के बाद भारतीय प्रशंसकों को जश्न मनाने का मौका दिया।

इससे पहले भारोत्तोलक कर्णम मल्लेश्वरी (सिडनी 2000), मुक्केबाज एमसी मेरीकाम (2012 लंदन), बैडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल (लंदन 2012) भारत के लिये ओलंपिक में पदक जीतने वाली महिला खिलाड़ी हैं। पिछले 11 दिन से पदक का इंतजार कर रहे भारतीय खेमे के लिये साक्षी का यह पदक खुशियों की सौगात लेकर आया। साक्षी को क्वार्टर फाइनल में रूस की वालेरिया कोबलोवा के खिलाफ 2-9 से शिकस्त का सामना करना पड़ा था लेकिन रूस की खिलाड़ी के फाइनल में जगह बनाने के बाद उन्हें रेपेचेज राउंड में खेलने का मौका मिला।

दूसरे दौर के रेपेचेज मुकाबले में साक्षी का सामना मंगोलिया की ओरखोन पुरेवदोर्ज से हुआ जिन्होंने जर्मनी की लुईसा हेल्गा गेर्डा नीमेश को 7-0 से हराकर भारतीय पहलवान से भिड़ने का हक पाया था। साक्षी ने हालांकि ओरखोन को एकतरफा मुकाबले में 12-3 से हराकर कांस्य पदक के मुकाबले में जगह बनाई। कांस्य पदक के मुकाबले में साक्षी की भिड़ंत किर्गिस्तान की ऐसुलू ताइनीबेकोवा से थी। ताइनीबेकोवा के खिलाफ साक्षी की शुरुआत बेहद खराब रही और वह पहले राउंड के बाद 0-5 से पिछड़ रही थी लेकिन भारतीय खिलाड़ी ने दूसरे राउंड में जोरदार वापसी करते हुए आठ अंक जुटाए और भारत को रियो ओलंपिक खेलों का पहला पदक दिला दिया।

ब्लॉग बुलेटिन टीम और हिन्दी ब्लॉग जगत की ओर से हम सब साक्षी को इस एतिहासिक जीत की हार्दिक बधाइयाँ देते हैं और ठीक रक्षाबंधन के दिन मिले इस मैडल रूपी उपहार के लिए धन्यवाद कहते हैं क्यों कि यह सिर्फ़ एक मैडल भर नहीं है...१२५ करोड़ भारतीयों के आत्मसम्मान की सूनी कलाई पर एक बहन की राखी है...जियो साक्षी !!

सादर आपका
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लेखागार