नमस्कार
मित्रो,
एक लम्बे समयांतराल बाद आपसे मुलाक़ात हो रही है. गुरुवार की आज की ब्लॉग बुलेटिन लेकर हम आये हैं, साथ ही लाये हैं बिस्मिल के मशहूर उर्दू मुखम्मस का काव्यानुवाद जज्वये-शहीद. जैसा कि आपको विदित है कि आज ११ जून है और आज है अमर शहीद पंडित राम प्रसाद 'बिस्मिल' जी की ११८ वीं जयंती. 'बिस्मिल' जी को उनकी ही नज़्म के साथ याद करते हुए आपको ले चलते हैं आज की बुलेटिन की तरफ....
एक लम्बे समयांतराल बाद आपसे मुलाक़ात हो रही है. गुरुवार की आज की ब्लॉग बुलेटिन लेकर हम आये हैं, साथ ही लाये हैं बिस्मिल के मशहूर उर्दू मुखम्मस का काव्यानुवाद जज्वये-शहीद. जैसा कि आपको विदित है कि आज ११ जून है और आज है अमर शहीद पंडित राम प्रसाद 'बिस्मिल' जी की ११८ वीं जयंती. 'बिस्मिल' जी को उनकी ही नज़्म के साथ याद करते हुए आपको ले चलते हैं आज की बुलेटिन की तरफ....
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हम भी आराम
उठा सकते थे घर पर रह कर,
हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर,
वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर,
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को!
हमको भी पाला था माँ-बाप ने दुःख सह-सह कर,
वक्ते-रुख्सत उन्हें इतना भी न आये कह कर,
गोद में अश्क जो टपकें कभी रुख से बह कर,
तिफ्ल उनको ही समझ लेना जी बहलाने को!
अपनी
किस्मत में अजल ही से सितम रक्खा था,
रंज रक्खा था मेहन रक्खी थी गम रक्खा था,
किसको परवाह थी और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था,
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को!
रंज रक्खा था मेहन रक्खी थी गम रक्खा था,
किसको परवाह थी और किसमें ये दम रक्खा था,
हमने जब वादी-ए-ग़ुरबत में क़दम रक्खा था,
दूर तक याद-ए-वतन आई थी समझाने को!
अपना कुछ
गम नहीं लेकिन ए ख़याल आता है,
मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता है,
कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,
कौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है,
मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को!
मादरे-हिन्द पे कब तक ये जवाल आता है,
कौमी-आज़ादी का कब हिन्द पे साल आता है,
कौम अपनी पे तो रह-रह के मलाल आता है,
मुन्तजिर रहते हैं हम खाक में मिल जाने को!
नौजवानों!
जो तबीयत में तुम्हारी खटके,
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके,
आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके,
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को!
याद कर लेना कभी हमको भी भूले भटके,
आपके अज्वे-वदन होवें जुदा कट-कट के,
और सद-चाक हो माता का कलेजा फटके,
पर न माथे पे शिकन आये कसम खाने को!
एक परवाने
का बहता है लहू नस-नस में,
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को!
अब तो खा बैठे हैं चित्तौड़ के गढ़ की कसमें,
सरफ़रोशी की अदा होती हैं यूँ ही रस्में,
भाई खंजर से गले मिलते हैं सब आपस में,
बहने तैयार चिताओं से लिपट जाने को!
सर फ़िदा
करते हैं कुरबान जिगर करते हैं,
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को!
पास जो कुछ है वो माता की नजर करते हैं,
खाना वीरान कहाँ देखिये घर करते हैं!
खुश रहो अहले-वतन! हम तो सफ़र करते हैं,
जा के आबाद करेंगे किसी वीराने को!
नौजवानो !
यही मौका है उठो खुल खेलो,
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो,
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को?
खिदमते-कौम में जो आये वला सब झेलो,
देश के वास्ते सब अपनी जबानी दे दो,
फिर मिलेंगी न ये माता की दुआएँ ले लो,
देखें कौन आता है ये फ़र्ज़ बजा लाने को?
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संघर्ष ही जीवन है
जवानी के वो दिन
उनकी शहादत पर मुझे गर्व नहीं,दर्द होता है
किसके घर में घुस कर मारा?
माँ की पुकार ॐ की समग्रता से कम नहीं
क्या करेगी जन्म ले बेटी
उग्र और असंवेदनशील होता मानवीयव्यवहार
योगशक्ति है;भक्ति नहीं ,यह मर्म है ;धर्म नहीं
आखिर सोच क्यों बने शौचालय?
दिल की तमन्ना
और बुलेटिन के अंत में
थमाते हुए विदा लेते हैं... मिलते
हैं फिर अगले गुरुवार.........
एक बार फिर विस्मिल जी को श्रद्धांजलि देते
हुए, जय हिन्द.... इंकलाब जिंदाबाद
4 टिप्पणियाँ:
सुंदर बुलेटिन । सुंदर सूत्र ।
उम्दा है आज का ब्लॉग बुलेटिन |
शहीद रामप्रसाद बिस्मिल जी को शत शत नमन।।
बेहतरीन और उम्दा बुलेटिन प्रस्तुत की है राजा जी। आपने शानदार वापसी की है इस बुलेटिन से।
अमर शहीद रामप्रसाद बिस्मिल जी को शत शत नमन |
बढ़िया लिंक्स के सजाई बुलेटिन के लिए आपका आभार |
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