प्रेम अधिकतर इकतरफा होता है, रिश्ते भी बन जाते हैं, सुखांत भी होता है . प्रेम एक अपवाद है - उसका अकेले चलना उसकी नियति कहें या शान, पर वह चलता अकेले है . प्रेम में शरीर, या शिकायत नहीं होती ....और आरम्भ ही शरीर हो तो वह स्थायी नहीं होता . प्रेम एक कल्पना है - जिसमें प्रेम के अतिरिक्त कुछ नहीं होता - दुनियादारी तो बिल्कुल नहीं . और जब दुनियादारी न हो तो प्रेम पागलपन कहलाता है .
प्रेम प्रेमपात्र को लेकर, उसकी खुशियों को लेकर अति संवेदनशील होता है … इस प्रेम में आँसू भी सुख होते हैं !
पहली दृष्टि प्रेम है,पूर्वजन्म का रिश्ता प्रेम है .... यह एक क्षणिक बातचीत का क्षणिक अंश है, सबसे बेखबर प्रेम अपनेआप में सम्पूर्ण है।
एक जौहरी हीरे को तराशता है, - उसे लेना सबके सामर्थ्य की बात कहाँ ! और टुकड़ों में विभक्त हीरे के बन जाते हैं जेवर सबके लिए - यही फर्क है प्रेम और आकर्षण का !!
प्रेम प्रेमपात्र को लेकर, उसकी खुशियों को लेकर अति संवेदनशील होता है … इस प्रेम में आँसू भी सुख होते हैं !
पहली दृष्टि प्रेम है,पूर्वजन्म का रिश्ता प्रेम है .... यह एक क्षणिक बातचीत का क्षणिक अंश है, सबसे बेखबर प्रेम अपनेआप में सम्पूर्ण है।
एक जौहरी हीरे को तराशता है, - उसे लेना सबके सामर्थ्य की बात कहाँ ! और टुकड़ों में विभक्त हीरे के बन जाते हैं जेवर सबके लिए - यही फर्क है प्रेम और आकर्षण का !!
5 टिप्पणियाँ:
हीरा तराशा जाता है तरसता भी है शायद एक खूबसूरत आकार लेने के लिये एक कठोर हीरे को सहनी पड़ती हैं चोट बहुत सी । प्रेम सरल भी हो सकता है कठोर भी हीरा उदाहरण है ।
सुंदर कड़ियाँ सुंदर बुलेटिन ।
सार्थक बुलेटिन ......आभार
बहुत दिन बाद ब्लॉग पर आई आपके ..सार्थक रचनाये पढ़ी आभार
ब्लॉग जगत मे आप से माहिर जौहरी और कौन है भला !?
पर आपने तो हीरे सभी के लिये उपलब्ध करा दिये
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