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शनिवार, 13 जून 2015

अपना कहते मुझे हजारों में

प्रिये ब्लॉगर मित्रगण,

दोस्तों सुबह दिल्ली से बाहर जाना है तो तड़के निकलना है इसलिए जल्दी सोना है आज तो फिर ये बुलेटिन ज़रा जल्दी में प्रस्तुत रहा हूँ इसलिए कुछ विशिष्ट और विस्तृत ना लिख कर बस अपनी लिखी नई नज़्म पेश कर रहा हूँ। उम्मीद कर रहा हूँ आपको पसंद आएगी और आप सब की टिप्पणियां और समीक्षा पढ़ने को मिलेगी। तो पेश-ए-ख़िदमत है :-

अपना कहते मुझे हजारों में
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जो वफ़ा होती खून के रिश्तों में बाक़ी
तो जज़्बात क्यों बिकते बाज़ारों में

जो हर कोई देता साथ ज़मानें में अपना
तो तनहा चांद ना होता सितारों में

जो हर गुल की ख़ुशबू लुभाती दिल को
तो गुलाब ख़ास ना होता बहारों में

जो मिले मौक़ा तुरंत नज़र बदलते हैं 
तो बात है ख़ास खुदगर्ज़ यारों में

बख़ुदा 'निर्जन' भी ख़ुशक़िस्मत होता
जो वो अपना कहते मुझे हजारों में

--- तुषार राज रस्तोगी ---

आज की कड़ियाँ

सूर्या नमस्कार - ज़ील

कार्टून:- न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी - काजल कुमार

ज़िन्दगी का खटराग - भावना लालवानी

उन दीवारो पर - संध्या आर्य

चिराग जलता रहेगा - इश मिश्रा

पुरुषों के स्वभाव को प्रभावित करते नव गृह - उपासना सिअग

कभी तुम रूठो हमसे तो कभी हम मनायें तुम्हे - रेखा जोशी

अक्ल वालों की नजर गाय पर होती है बेवकूफ खुद ही बैल हो जाते हैं -  सुशील कुमार जोशी

पर्यावरण पथ के पथिक - 15 : अर्चना बाली - श्रीवास्तव

इन शब्दों के बिना - सुषमा 'आहुति'

राहे जिंदगी में - अनीता

आज के लिए इतना ही अगले सप्ताह फिर मुलाक़ात होगी तब तक के लिए - सायोनारा

नमन और आभार
धन्यवाद्
तुषार राज रस्तोगी
जय बजरंगबली महाराज | हर हर महादेव शंभू  | जय श्री राम

4 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर नज्म तुषार जी । सुंदर बुलेटिन । आभारी है 'उलूक' भी सूत्र 'अक्ल वालों की नजर गाय पर होती है बेवकूफ खुद ही बैल हो जाते हैं' को स्थान देने के लिये ।

संध्या आर्य ने कहा…

शुक्रिया और तहे दिल से आभार सर ब्लॉग बुलेटिन में मेरी इस प्रविष्टि को शामिल करने के लिए !

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

आप लोगों का ह्रदयतल से स्वागत है :)

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन तुषार भाई |

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