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जून १९७५ से २५ जून २०१५, आपातकाल के चालीस वर्ष और तत्कालीन स्थितियों की याद को
फिर से ताजा करने का काम किया भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के बयान ने. ये
कहने में कोई गुरेज नहीं है कि जिस-जिस ने आपातकाल को भोगा है वे आज भी उसकी वास्तविकता
को जानते-समझते हैं किन्तु आपातकाल के बाद की जन्मी पीढ़ी, आपातकाल के आसपास जन्मी
पीढ़ी ने आपातकाल को उसी नजरिये से देखा-समझा, जिस नजरिये से उसे दिखाया-समझाया
गया. आपातकाल के समर्थक आज भी लोकतंत्र को रौंदने वाले उस कदम की बुराई न करते हुए
उसे एक आवश्यक कदम बताते हैं.
तत्कालीन
स्थितियों में आपातकाल लगाया जाना कितना सही या गलत था, ये चर्चा का विषय तो है ही
किन्तु आडवाणी जी के बयान का मर्म समझना और संवैधानिक स्थिति का आकलन करना उससे
कहीं ज्यादा आवश्यक है. आज संवैधानिक रूप से स्थितियाँ इस तरह की हैं कि सहजता से
आपातकाल लागू करना किसी के लिए भी संभव नहीं रह गया है. १९७५ की पुनरावृत्ति किसी
और सरकार द्वारा न की जा सके इसके लिए संविधान में ४४वें संशोधन के द्वारा कई
मूलभूत परिवर्तन किये गए हैं. इनके अनुसार -
१-
अब आंतरिक अशांति के आधार पर नहीं वरन केवल युद्ध, वाह्य आक्रमण और सशस्त्र
क्रांति के ही आधार पर आपातकाल लगाया जा सकता है.
२-
आपातकाल लगाने के लिए प्रधानमंत्री को मौखिक नहीं वरन मंत्रिमंडल का लिखित परामर्श
राष्ट्रपति को देना पड़ेगा.
३-
संसद के दोनों सदनों को अलग-अलग केवल एक महीने के भीतर अपने कुल सदस्यों के पूर्ण
बहुमत और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से आपातकाल का अनुमोदन
करना होगा जो केवल छह माह के लिए ही वैध होगा.
४-
इसके अलावा लोकसभा के दस फ़ीसदी सदस्य आपातकाल समाप्त करने के लिए सदन की बैठक बुला
सकते हैं और केवल साधारण बहुमत से आपातकाल समाप्त करवा सकते हैं.
इन
संवैधानिक स्थितियों के आलोक में वर्तमान में आपातकाल लगाना आसान नहीं रह गया है.
आडवाणी जी की आशंका किस तरह के माहौल को देखकर बनी ये अलग बात है किन्तु उनके बयान
ने देश में आपातकाल पर चर्चा आरम्भ करवा दी, जिससे आपातकाल को जानने-समझने का अवसर
मिलेगा, नई पीढ़ी के लिए कम से कम ये नया और शुभ संकेत है.
आइये
आपातकाल की आशंका, वास्तविकता के बीच चलते हैं आज की बुलेटिन की ओर, जिसे विशेष
रूप से आपातकाल के सन्दर्भ में सजाया गया है. शेष सही-गलत का निर्णय आपका भी
महत्त्वपूर्ण है. लोकतंत्र सदैव सुदृढ़, समृद्ध बना रहे, इसी कामना के साथ –
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और
बुलेटिन के अंत में आपातकाल की आशंका के बीच