आज के दिन को देश गांधी जयंती के रूप में मना रहा है और पिछले कई दशकों से मनाता चला आ रहा है , आगे भी मनाएगा ही , हालांकि आज ही के दिन स्व. लाल बहादुर शास्त्री सरीखे राजनेता का भी जन्मदिन पडता है । हम सब देश वासी दोनों को नमन करते हैं । किंतु आज का बुलेटिन मैं अपने हिंदी ब्लॉगजगत के उन साथियों को याद करने के नाम करता हूं जो पिछले दिनों चुपचाप हमें छोडकर चले गए । आज ही रचना जी ने मुझे सूचना दी कि उन्होंने हमारे बिछडे साथी ब्लॉगर्स ,जो अब हमारे बीच नहीं रहे के लिए एक विशेष ब्लॉग, विद गॉद ऑलमाइटी With God Almighty बनाया है ताकि हम और भविष्य में हमारे आने वाले ब्लॉगर भी उन्हें याद रखें । हम जिन साथियों के साथ आपसी संवाद करते रहे , जिनके शब्द , टिप्पणियां आज भी ज़ेहन में ताज़ा हैं उन्हें संजो कर रखने के लिए इससे बेहतर और क्या हो सकता था । रचना जी को बहुत बहुत साधुवाद उनके इस प्रयास के लिए , हम सबकी तरफ़ से और अपने इन तमाम बिछडे साथियों को श्रद्धांजलि , डॉ. अमर कुमार , डॉ रूपेश श्रीवास्तव, हिमांशु मोहन ,विकास परिहार व नन्हा ब्लॉगर आदित्य की यादें सहेजनीय हैं । अपने इन साथियों को हमारा नमन ।
ब्लॉगर चंद्र मौलेश्वर प्रसाद
ब्लॉगर चंद्र मौलेश्वर प्रसाद
अब कुछ चुनिंदा पोस्टों के कतरों को सहेज़ कर आज के बुलेटिन का रुख करते हैं , आप भी देखिए …….
शास्त्री जी की जयंती पर विशेष
लाल बहादुर शास्त्री - जन्मतिथि: 2 अक्तूबर, 1904
निधन: 11 जनवरी, 1966
राजनीतिक बाजार का प्यादा युवा
पहली बार बिहार में युवा न किसी धारा और न ही किसी विचारधारा के रास्ते सत्ता के खिलाफ सड़क पर हैं। उसे महज वेतन चाहिये। ठेके पर काम करने वाले युवाओं का आक्रोश महज वेतन चाहता है। बेसिक और स्नातक प्रशिक्षित और अप्रशिक्षित वर्ग के शिक्षकों की उम्र 22 से 35 बरस के करीब है और इनकी संख्या करीब तीन लाख है। वेतन 6 से 8 हजार तक है और वेतन न पाने के आक्रोश को राजनीतिक तौर लालू-पासवान भुनाने में लगे हैं।
तो क्या पहली बार राजनीति के पास अपना कोई राजनीतिक विकल्प या एजेंडा नहीं है। जबकि इससे पहले कई मौकों पर देश ने बिहार के युवाओं के जरीये सड़क के आंदोलन से देश की राजनीति को बदलते हुये देखा है। याद कीजिये तो दो बरस पहले राहुल गांधी बिहार के युवकों को युवा कांग्रेस से जोड़ने निकले थे। तब 18 से 35 साल के युवको के लिये बाकायदा ऑनलाइन फार्म से लेकर सामाजिक-आर्थिक समझ को राजनीतिक तौर पर लागू कराने की समझ वाले इंटरव्यू की व्यवस्था की गयी । बिहार में यूं भी करीब साढ़े-चार लाख युवक राजनीतिक दलों से सीधे जुड़े हुये हैं। और लाख छात्रों का आवेदन कांग्रेस के पास पहुंचा, यह बात हाशिये पर सिमटे कांग्रेस के नेताओं ने तब राहुल गांधी से कही। लेकिन जब चुनाव परिणाम में कांग्रेस कही नहीं टिकी तो युवा कांग्रेस से निकले कांग्रेसियों ने तर्क यही गढ़ा कि जो सत्ता में होता है या आ रहा होता है युवा उसी दिशा में चलते हैं। लेकिन कांग्रेस की कमान थामे बिहार के कांग्रेसी भी जेपी आंदोलन से ही निकले हुये हैं। लेकिन जेपी आंदोलन के बाद बिहार का नया सच यही है कि सबसे ज्यादा बेरोजगार युवाओ की फौज रोजगार दप्तर में दर्ज है। जेपी के दौर में बिहार के करीब पांच लाख छात्र आंदोलन से जुड़ गये थे। फिलहाल बिहार के रोजगार दफ्तर में करीब ग्यारह लाख छात्रों के नाम दर्ज हैं।
विश्व अहिंसा दिवस 2012
विश्वं समित्रिणं दह
(ऋग्वेद 1/36/2/14)
सर्वभक्षी रोगाग्नि में जलते हैं
"जिसकी लाठी उसकी भैंस" का मुहावरा जंगल राज में सही साबित होता है। किसी कानूनी व्यवस्था के अभाव में बड़ी मछली छोटी मछली को निगल जाती है। लेकिन सभ्यता और संस्कृति की बात ही कुछ और है। समाज जितना अधिक सभ्य होता जाता है असहायों को अपनी रक्षा की निरंतर चिंता करने की आवश्यकता उतनी ही कम होती जाती है। सभ्यता के विस्तार के साथ ही समाज में अहिंसा भी व्यापक होती जाती है। आज यदि हम विश्व पर एक नज़र दौड़ायें तो स्पष्ट हो जायेगा कि अविकसित समाजों में आज भी हिंसा का बोलबाला है जबकि विकास और अहिंसा हाथ में हाथ डाले नज़र आते हैं।
क्यूबैक का एक परिवार गांधी जी के साथ
सभी जानते हैं कि भारतीय सभ्यता उन प्रारम्भिक सभ्यताओं में से एक है जिन्होंने अहिंसा को सर्वोपरि सद्गुणों में स्थान दिया। योग, साँख्य, जैन, बौद्ध, सिख आदि सभी भारतीय दर्शनों में अहिंसा का एक विशिष्ट स्थान है। हमारे इसी विचार को आज सम्पूर्ण संसार की स्वीकृति प्राप्त हो रही है। अहिंसा के वैश्विक अध्याय में एक नया पृष्ठ 15 जून 2007 को तब लिखा गया था जब संयुक्त राष्ट्र संघ ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्मदिन को अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस (International Day of Non-Violence) की मान्यता दी थी।
चादर : सरोजकुमार
* Tuesday, October 02, 2012
चादर के हिसाब से
पाँव वह पसारे
जो अपने नाप की चादर
बुन नहीं सकता हो!
पर वह जो नया-नया उभरा है
जिसकी अस्थियाँ और मज्जा
अभी रास्ते में हैं
उसे मत सिखाओ
चादर का गणित!
तपते तलवे, कमबख़्त चाँद और एक कुफ़्र-सी याद...
बड़ी देर तक ठिठका रहा था वो आधा से कुछ ज्यादा चाँद अपनी ठुड्ढी उठाए दूर उस पार पहाड़ी पर बने छोटे से बंकर की छत पर| अज़ब-गज़ब सी रात थी...सुबह से लेकर देर शाम तक लरज़ते बादलों की टोलियाँ अचानक से लापता हो गईं रात के जवान होते ही| उस आधे से कुछ ज्यादा वाले चाँद का ही हुक्म था ऐसा या फिर दिन भर लदे फदे बादल थक गए थे आसमान की तानाशाही से...जो भी था, सब मिल-जुल कर एक विचित्र सा प्रतिरोध पैदा कर रहे थे| ....प्रतिरोध? हाँ, प्रतिरोध ही तो कि दिन के उजाले में उस पार पहाड़ी पर बना यही बंकर सख़्त नजरों से घूरता रहता है इस ज़ानिब राइफल की नली सामने किए हुये और रात के अंधेरे में अब उसी के छत से कमबख़्त चाँद घूर रहा था| न बस घूर रहा था...एक किसी गोल चेहरे की बेतरह याद भी दिला रहा था बदमाश..
एक गज़ल -गाँधी जयंती पर
राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी
एक गज़ल
कुदरत का करिश्मा हैं या वरदान हैं गाँधी
कुदरत का करिश्मा हैं या वरदान हैं गाँधी
इस दौर में इंसा नहीं भगवान हैं गाँधी
अफ़साना -ए -आज़ादी के किरदार कई हैं
अफ़साना -ए -आज़ादी का उनवान हैं गाँधी
भूसा
भूसा हूं
मैं
अन्न को
सहेज
रखता हूं
और अंत में
कर दिया जाता हूं
बाहर
गाँधी जी का टूटा चश्मा
जब चपरासी रामलाल जाले हटाता, धूल झाड़ता कबाड़घर के पिछले हिस्से में गाँधी जी की मूर्ति को खोजता हुआ पहुँचा तो उड़ती धूल के मारे गाँधी जी की मूर्ति को जोरो की छींक आ गई. अब छड़ी सँभाले कि चश्मा या इस बुढ़ापे में खुद को..चश्मा आँख से छटक कर टूट गया. गुस्से के मारे लगा कि रामलाल को तमाचा जड़ दें मगर फिर वो अपनी अहिंसा के पुजारी वाली डीग्री याद आ गई तो मुस्कराने लगे. सोचने लगे कि एक चश्मा और होता तो वो भी इसके आगे कर देता कि चल, इसे भी फोड़ ले. मेरा क्या जाता है? जितने ज्यादा चश्में होंगे, उतने ज्यादा लंदन से नीलाम होंगे. मुस्कराते हुए बोले- कहो रामलाल, कैसे आना हुआ? पूरे साल भर बाद दिख रहे हो?
शहरी भैंसें
इलाहाबाद के एक व्यस्त चौराहे पर टहलते पशु।
मेरी ट्रेन कानपुर से छूटी है। पूर्वांचल की बोली में कहे तो कानपुर से खुली है। खिड़की के बाहर झांकता हूं तो एक चौड़ी गली में भैसों का झुण्ड बसेरा किये नजर आता है।
कानपुर ही नहीं पूर्वी उत्तरप्रदेश के सभी शहरों या यूं कहें कि भारत के सभी (?) शहरों में गायें-भैंसें निवसते हैं। शहर लोगों के निवास के लिये होते हैं, नगरपालिकायें लोगों पर कृपा कर वहां भैंसों और गायों को भी बसाती हैं। ऑपरेशन फ्लड में वे अपना जितना भी बन सकता है, योगदान करती है। वर्गीज़ कुरियन नहीं रहे; उनकी आत्मा को पता नहीं इससे आनन्द होता होगा या कष्ट?!
अंग्रेज़ आ गया है।
खोड़ा से मीनू रोज़ बिना नागा काम करने आती हैं। गंगा की समय प्रतिबद्धता लाजवाब है। मैं सत्याग्रह और अहिंसा पर स्क्रिप्ट लिखने में व्यस्त था। अचानक मीनू अंदर आई और खुशी से लबालब नयना से बोलने लगीं। अरे भाभी मेरी बेटी को बेटा हो गया है। पता है सास ने एक हज़ार एक रुपये नर्स को दे दिये। उसकी सास बहुत ख़ुश है। तो अब सब ठीक हो गया मीनू घर में, हां भाभी, पोता होते ही बेटी से सबका व्यवहार बदल गया है। तभी तो हज़ार रुपये दिये नर्स को। क्या बताऊं, एक दम अंग्रेज़ जैसा है। उनकी फैमिली में तो सब कट हैं। ये एकदम कट नहीं है। तब मुझे मुड़ना पड़ा और पूछना पड़ा कि कट क्या होता है। कट मतलब किसी की शक्ल अच्छी नहीं है। सब के सब सांवले भी हैं। लेकिन मेरे नाती की शक्ल भैया बहुत अच्छी है। सही कह रही हूं लगता है अंग्रेज़ ही आ गया है। तो अब ठीक है न। सास तंग तो नहीं करेगी बेटी को। नहीं अब नहीं करेगी।
तब होगा भगत सिंह का सच्चा सम्मान
पाकिस्तान ने बड़े समय बाद एक अच्छा काम किया है। शहीदे आजम भगत सिंह को हमारे देश में आदर्श की तरह पूजा जाता है और पाकिस्तान का आवाम भी उनको उतनी ही इज्जत देता है। वहां भी उनको अंग्रेजों के शासन के खिलाफ क्रांति का बिगुल फूंकने वाला नायक माना जाता है। शहीद भगत सिंह की ज्यादातर यादें पाकिस्तान से जुड़ी हुई हैं। उनको फांसी भी लाहौर जेल में दी गई थी। जिस जगह पर उनको फांसी दी गई थी, वह उनके चाहने वालों के लिए काफी महत्वपूर्ण जगह है और उनकी इस जयंती पर उनके भारत के चाहने वालों को हालांकि वहां जाकर अपने नायक को श्रद्धासुमन अर्पित करने का सपना वीजा न मिलने के कारण पूरा नहीं हो पाया लेकिन इसके बाद पाकिस्तान के अफसरों ने उस लाहौर चौक का नामकरण भगत सिंह चौक करने की घोषणा कर एक अच्छा कदम उठाया है।
कार्टून दो अक्टूबर का ...
गाँधी जी की पृथ्वी लोक की यात्रा ....
गाँधी जी काफी दिनों से परेशान थे की स्वतंत्रता के बाद से उनहोंने अपने सपनों के भारत को नहीं देखा है तो उन्होंने विचार किया की जन्मदिन के दिन अपने स्वप्नों के भारत को वे जरुर देखने जायेंगें .
वे देवलोक से धरती लोक की और निकल पड़े . सबसे पहले वे एक सभा में पहुंचे जहाँ उनका जन्मदिन मनाया जा रहा था . वहां उन्होंने देखा की कई नेता कई रंगों की तरह तरह टोपी पहिने बैठे हैं . कोइ सफ़ेद रंग की कोई पीले रंग की तो कोई नीले रंग की टोपी पहिने बैठे हैं . गाँधी जी को बिलकुल अच्छा नहीं लगा की नेताओं ने उनकी गाँधीवादी टोपी को कई रंगों में रंग दिया है और रंगों के हिसाब से अपनी ढपली अपना राग अलाप रहे हैं और जी भर कर एक दूसरे को कोस रहे हैं .
हिंसां नहीं करेंगें . देश में रामराज्य लायेंगें और गांधीजी के सिद्धांतों पर उन्होंने चलने का संकल्प लिया . एक सांसद ने यहाँ तक कह डाला की वे सांसद नहीं हैं जन प्रतिनिधि नहीं हैं निर्वाचित माफिया हैं .
आखिर यह हैपैटाइटिस है क्या ?
पिछले लेख आयुर्वेद में हैपैटाइटिस कहलाती है - का शेष........................
इस बात से यह सिद्ध हो जाता है कि यकृत हमारे शरीर का अति महत्व पूर्ण अंग है और जब यह इतनी मेहनत करता है तो यह हमारा कर्तव्य बनता है कि हम इसकी देखभाल ध्यान से करें।
अब सवाल उठता है कि इतनी सारी बात बताने पर भी यह तो मालूम ही नही पड़ा कि आखिर यह हैपैटाइटिस है क्या ? तो भइया हैपैटाइटिस यकृत का एक सामान्य रोग है जिसमें यकृत के कोशों में प्रदाह या जलन से यकृत की कोशिकाऐं लगातार क्षतिग्रस्त होती रहती है जिससे यकृत में कमजोरी आ जाती है फलस्वरुप यकृत की क्रियाविधि धीमी हो जाती है या फिर विकृत हो जाती है।और यही अवस्था अगर वहुत समय तक वनी रहे तो यकृत में कड़ा पन आ जाता है।इम्यून सिस्टम खराव हो जाता है ।
गांधी संग्राहलय में एक दिन ...
"आने वाली पीढ़ी को शायद ही यह यकीन होगा कि गांधी जैसा भी कोई हाड़-मांस का पुतला इस धरती पर चला होगा" यह कथन विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक आइन्स्टाइन ने गांधी जी के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर कहे थे. इस वैज्ञानिक के द्वारा कहे गए ये शब्द आज सच लगते हैं.
हाल ही में मेरा और मेरी एक मित्र का राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय में जाना हुआ. संग्रहालय में प्रवेश से पहले शान्ति देख लगा की बड़ा अनुशासन है. प्रवेश द्वार पर पर एक सन्देश लिखा था - "सत्य ही ईश्वर है". अन्दर जाकर पता चला की इतनी बड़ी जगह पर दर्शकों के नाम पर सिर्फ हम दोनों ही हैं.
मीडिया जिम्मेदार कब होगी ?
मैं देख रहा हूं कि आज मीडिया पर लोगों का भरोसा कम होता जा रहा है। वैसे तो इसकी कई वजह गिनाई जा सकती हैं, लेकिन मेरा मानना है कि अब वक्त आ गया है कि मीडिया भी अपने गिरेबां में झांके, वरना आने वाला कल मीडिया के लिए बहुत खराब खबर लेकर आने वाला है। मैं बहुत जिम्मेदारी के साथ कह रहा हूं कि आज मीडिया में बेईमानों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। जब भी किसी मामले का खुलासा होता है, तो मीडिया हाउस की भूमिका पर जरूर उंगली उठती है। मसलन नीरा राडिया का टेप आया तो वहां पत्रकार, अमर सिंह का टेप आया तो वहां भी पत्रकार शामिल थे। शर्मनाक बात तो ये है कि चोरी पकड़े जाने के बाद राजनेताओं से इस्तीफा मांगने वाली मीडिया अपने भीतर झांकने को तैयार ही नहीं है। हालत ये है पत्रकारों में बढ़ती बेईमानी की प्रवृत्ति तो मीडिया को कलंकित कर ही रही है, दूसरी ओर हम पूरे दिन अविश्वसनीय लोगों के साथ घिरे हैं, लिहाजा विश्वसनीयता का संकट भी हमारे साथ है।
अब मुझे आज्ञा दें , वैसे भी इन दिनों तबियत ज़रा नासाज़ चल रही है और अभी पीलिया से उबरने में थोडा समय और लगेगा । आप खूब लिखते रहें , खूब पढते रहें , हम फ़िर मिलेंगे कल आपसे बुलेटिन के नए रंग और रूप , नए तेवर नई शैली के साथ और मिलवाएंगे आपकी सारी खूबसूरत पोस्टों को आप सबसे ही । अपना ख्याल रखें और खुश रहें ।
आपका
अजय कुमार झा
चलते चलते एक पोस्ट अपनी भी ….
गांधी , गांधीवाद , गांधी ब्रांडवाद से गांधी परिवारवाद तक .....
2 अक्तूबर , को अब देश में गांधी जयंती के रूप में पहचान मिल चुकी है , हो भी क्यों न आखिर जिस देश को विश्व का सबसे बडे लोकतंत्र का रुतबा हासिल कराने के लिए , एक अकेले व्यक्ति ने अपने नायाब प्रयोगों और सोच से बिना किसी हिंसा , के विश्व के सबसे बडे जनसमूह को सैकडों वर्षों की गुलामी से आज़ादी दिला कर राष्ट्रपिता का दर्ज़ा ( ओह ! याद आया , अभी हाल ही में एक बच्ची द्वारा सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी के बाद सरकार ने खुलासा किया है कि मोहन दास करमचंद गांधी उर्फ़ बापू को कभी भी आधिकारिक रूप से "राष्ट्रपिता " का दर्ज़ा नहीं दिया गया है ) मिला , और न भी मिला तो भी देश के बापू का जन्मदिन होता है तो ऐसे में ये बिल्कुल ठीक जान पडता है । बेशक अब बहुत सारे कारणों और लोगों की उठती आवाज़ों के बाद इसी दिन जनमे और भारतीय राजनीति में एक और बेहद महत्वपूर्ण शख्स , पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री को भी अब गाहे बेगाहे सरकारी और गैरसरकारी तरीके से याद किया जाता ही है , लेकिन आम लोगों के लिए तो ये दिन यानि दो अक्तूबर , गांधी जयंती यानि वर्ष की तीन पक्की छुट्टियों ..26 जनवरी ,15 अगस्त और 2 अक्तूबर में से एक । दिल्ली जैसे महानगरों में तो चालान कटने के डर से बाज़ार दुकानों के बंद रखने का दिन और हां सबसे अहम तो छूट ही गया ..ड्राई डे ....यानि शराब की सरकारी दुकानों के भी बंदी का दिन , समझा जाए तो बेवडों के लिए एक दिन पहले ही अपने कोटे की बोतलें खरीद कर रख लेने का अल्टीमेटम ।
26 टिप्पणियाँ:
अच्छा संकलन किया है. कार्टून को भी सम्मिलित करने के लिए आभार.
बहुत ही बढ़िया..
वो ब्लोगर जो अब हमारे बीच नहीं रहे..उन पर बनाये ब्लॉग के लिए रचना जी का दिल से आभार.
बहुत रोचक बुलेटिन...आभार
सुंदर लिंक संग्रह।
बढिया लिंक्स
सच है स्व. चंद्रमोलेश्वर जी को भुला पाना
मुझे यहां शामिल करने के लिए आभार
श्रेष्ठ सूत्र सँकलन!!
बहुत ही चुनी हुई पोस्ट्स का संतुलित संकलन!! अजय जी, जल्द ही पूर्णतः स्वस्थ हो जाएँ, यही मंगलकामना है!!
सब से पहले रचना जी को बहुत बहुत हार्दिक साधुवाद इस नेक प्रयास के लिए ! अजय भाई आज आप ने साबित कर दिया कि "दा शो मस्ट गो ऑन" ... शायद ही सभी मित्रो को पता हो कि आजकल अजय भाई पीलिया से प्रभावित है और डाक्टर की सलाह पर घर पर ही 'आराम' कर रहे है ... वैसे पोस्ट मे लिंक की गई पोस्टो को देख पता चल रहा है ... आराम किस हद तक हो रहा है !
रचना जी,और उनके ब्लॉग के लिये बधाई,,,,,
बढ़िया बुलेटिन....
रचना जी का प्रयास सार्थक है...आभार उनका.
अजय जी के लिए शीघ्र स्वास्थ लाभ की कामना.
सादर
अनु
आज की बुलेटिन बहुत बढ़िया लगी उसके लिए ब्लॉग बुलेटिन की टीम बधाई के पात्र है।
अगर सम्भव हो सके तो मेरे नए ब्लॉग पर भी एक बार पधारे। धन्यवाद ।
मेरा ब्लॉग पता है :- smacharnews.blogspot.com
ब्लॉग बुलेटिन में सभी सेतुओं का सार तत्व और संयोजन एक बेहतरीन ट्रेलर दिखलाता हुआ उकसाता है ,इन बेहतरीन व्यंजना और तंज लिए सभी सेतुओं को,लिंक्स बांचा जाए .
बहुत बढ़िया संकलन ....
बहुत बढ़िया बुलेटिन लगा...बधाई अजय बाबू!
बेहतरीन लिंक्स संयोजन ....
अजय जी को शीघ्र पूर्ण स्वास्थ्य लाभ की अनेक शुभकामनायें !
बेहतरीन सशक्त प्रस्तुति
बहुत बढ़िया चर्चा है ... काफी अच्छे पठनीय लिंक मिले ... मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए धन्यवाद..
विद गॉद ऑलमाइटी
ke liye rachana ji ko badhai ...
बीमार होते हुये भी बहुत बढिया बुलेटिन लगाया है ………जल्द स्वस्थ हों अजय जी। अपनी सेहत का ध्यान रखियेगा।
बहुत ही अच्छा लगा यहाँ आकर |आभार
आपके इस बेहतरीन संकलन के में मुझे स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद!
रचना जी का प्रयास बहुत ही सराहनीय एवं उत्कृष्ट है ... इस बेहतरीन बुलेटिन के लिए आभार
बहुत बढ़िया बुलेटिन....
Well done Rachna ji,
Get well soon Ajay ji.
उत्तम सूत्र संकलन..
पीलिया को भी पछाड़ दिया लगता है.. :) बढ़िया(दोनों के लिए)
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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!