चलते गए सबसे बेखबर अपने शब्दों की गठरी लिए
रास्ते की छांव में जो मिले
अपनी अपनी गठरी लिए ......... खोलती हूँ एक एक करके
नीरज गोस्वामी - http://ngoswami.blogspot.in/
कुछ हलकी फुलकी रचनाओं से रूबरू करवाता हूँ. इन्हें समझना आसान है क्यों की ये ग़ज़ल के शेर की तरह घुमावदार नहीं हैं. सीधी बात सीधे ढंग से कही गई है . तकनिकी दृष्टि से ये शायद रुबाई नहीं हैं लेकिन उसी की सगी सम्बन्धी जैसी की कुछ हैं, जो भी हैं आप तो आनंद लीजिये....
मेरे दिल को समझती हो
मैं सच ये मान जाता हूँ
तेरे दिल की हरेक धड़कन को
मैं भी जान जाता हूँ
मगर फ़िर भी ये लगता है
कहीं कुछ बात है हम में
जिसे ना जान पाती तुम
ना मैं ही जान पता हूँ
ये सूखी एक नदी सी है
कहाँ कोई रवानी है
इबारत वो है के जिसका
नहीं कोई भी मानी है
मैं कहना चाहता जो बात
बिल्कुल साफ है जानम
तुम्हारे बिन गुजरती जो
वो कोई जिंदगानी है ?
तुम्हारे साथ हँसते हैं
तुम्हारे साथ रोते हैं
कहीं पर भी रहें
लगता है जैसे साथ रहते हैं
जो दूरी का कभी एहसास
होने ही नहीं देता
मेरी नज़रों से देखो तो
उसी को प्यार कहते हैं
कहाँ किसकी कभी ये
ज़िंदगी आसान होती है
कभी जलती ये सहरा सी
कभी तूफ़ान होती है
मगर जब हाथ ये तेरा
हमारे हाथ आ जाए
तभी खिलती ये फूलों सी
तभी मुस्कान होती है.
क्षणिकाएं कुश की - http://kushkikalam.blogspot. in/
दूर अंतरिक्ष से
गिरा था एक उल्का पींड
सीधा टकराया मेरी
कल्पनाओ से..
तुम्हारे टुकड़े टुकड़े
कैसे संभाल कर
जोड़े थे मैने...
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फिर रात को संभाला था तुमने..
कैसे आसमा से
ज़मी पर आ गयी थी
साथी की तलाश में..
तुम्हे देख लिया था शायद
आज अमवास जो है..
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उम्मीद बूझने वाली है
मगर जाने कॉनसा
तेल डाल रखा है..
लौ बूझने का नाम नही लेती
हर थोड़ी देर बाद
और भड़क जाती है..
शायद जवान बेटे का इंतेज़ार करती
मा की आँखें होगी....
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मशाले शायद रास्ता
भटक गयी..
या फिर तू कही मुस्कुराई है
आज फिर अंधेरी गलियो
से रोशनी नज़र आई है...
मीनाक्षी पन्त - http://duniyarangili. blogspot.in/
वीणा के सुमधुर झंकार पर |
थरथराते लबों कि आवाज पर |
एक गज़ल गा रही है जिंदगी |
सुनों न कुछ सुना रही है जिंदगी |
चाँद अपनी चांदनी समेटता हुआ |
सूरज भी किरणों को बिखेरता हुआ |
एक दीप जला रही है जिंदगी |
एक दीप बुझा रही है जिंदगी |
सो रही है शाम जग रही है चांदनी |
कर रही श्रृंगार यौवन कही - कही |
एक पल सुला रही जिंदगी |
एक पल जगा रही है जिंदगी |
एक दीप पर कई पतंगे मिट रहे |
एक मीत पर असंख्य लुट रहे |
एक पल हंसा रही है जिंदगी |
एक पल रुला रही है जिंदगी |
सर्दी जा रही अपने अहसास दिए हुए |
आ रही खिजां नए उपहार लिए हुए |
एक बार बिदा कर रही है जिंदगी |
एक बार स्वागत कर रही जिंदगी |
प्रेमचंद गाँधी - http:// prempoet.blogspot.in/
मेरी बड़ी बेटी दृष्टि के जन्म पर यह कविता अपने आप फूटी थी, आत्मा की गहराइयों से। आज आप सब दोस्तों के लिए यह कविता दुनिया की तमाम बेटियों के नाम करता हूं।
दृष्टि
तुम्हारे स्वागत में
मरुधरा की तपती रेत पर बरस गयी
सावन की पहली बरखा
पेड़-पौधे लताएं लगीं झूमने
हर्ष और उल्लास में
बाघनखी* की चौखट छूती
लता भी नहा गयी
प्रेम की इस बरखा में
गुलाब के पौधे पर भी आज खिला
बड़ा लाल सुर्ख़ फूल
उसने भी कर लिया
सावन की पहली बूंदों का आचमन
अनार ने भी पी लिया
मीठा-मीठा पानी
अनार के दानों में
अब रच जाएगी मिठास
और सुर्ख़ होंगे
पीले-गुलाबी दाने
तुम्हारे स्वागत में बरखा ने
नहला दिया शहर को सावन के पहले छंद से
महका दिया धरती को सौंधी-सौंधी गंध से
मोगरे पी कर मेहामृत
बिखेर दी चारों दिशाओं में
ताज़ा फूलों की मादक गंध
यह महकता मोगरा
यह सौंधती मरुधरा
यह नहाया हुआ शहर
ये दहकने को आतुर अनार
मुस्कुराता गुलाब
बढ़ती-फैलती बाघनखी की लता
सब कर रहे हैं तुम्हारा स्वागत।
(*बाघनखी एक खूबसूरत कांटेदार बेल)
यात्रा अभी है,पड़ाव कई आयेंगे - मैं न रहूँ तो भी एहसासों का आदान-प्रदान चलता रहेगा ...............
7 टिप्पणियाँ:
Shukriya Rashmi Ji
हमेशा की तरह सुन्दर सूत्र
अच्छे लिंक्स
बढिया बुलेटिन
बहुत सुंदर चुनिन्दा लिंक्स ,,,,,
MY RECENT POST: माँ,,,
वाह सारी रचनाएँ एक से बढकर एक , बहुत खूबसूरत मोतियों से सजी माला | मुझे याद रखने का बहुत २ शुक्रिया दीदी |
bahut badhiya rachnao se sajaaya hai aapne yh buletin ...
एक से बढ़ कर एक रचनाएँ पढ़ कर बहुत अच्छा लगा |
आशा
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