सुर,ताल...यूँ कहो सरगम
कभी तुम्हारी लटों से उलझे हैं
टाई की गांठ में कोई राग मचला है
बच्चे की पहली रुदन में मल्हार राग गूंजा है
यह सच है कि किसी भी राग में
कोई भी बंदिश गाने से पहले
उस राग विशेष का समां बाँधना ज़रूरी होता है-
इसलिये, आरोह, अवरोह, पकड़, आलाप आदि गा कर राग को स्थापित किया जाता है
पर कभी कभी पूरी कायनात राग विशेष का समां बाँध देती है
. वाद्य-यन्त्र अदृश्य परन्तु मुखर ...और एहसासों के ठिठके कदमों के संग हम !!!
पल्लवी त्रिवेदी - http://kuchehsaas.blogspot. in/
मैं तुम्हारे साथ सुरों से बंधी हुई हूँ! न जाने कौन से प्रहर में कौन सा कोमल सुर आकर हौले से मेरे तार तुमसे बाँध गया! शायद उस दिन जब तुम भैरव के आलाप के साथ सूरज को जगा रहे थे तभी रिषभ आकर मेरे दुपट्टे के सितारों में उलझ गया होगा या फिर उस दिन जब मैं सांझ की बेला में घंटियाँ टनटनाती धूल के बादल उड़ाती गायों को यमन की पकड़ समझा रही थी तब शायद निषाद आवारागर्दी करता हुआ तुम्हारे काँधे पर जाकर झूल गया होगा!
तुमने एक बार कहा था कि " आसमान से सुर बरसते हैं... बस उसे सुनने के लिए चेहरे पर नहीं दिल में कान होना चाहिए " फिर जिस दिन तुमने रात को छत की मुंडेर पर बागेश्री के सुरों को हौले से उड़ा रहे थे तब मेरे दिल में भी कान उग आये थे! और दो आँखें भी जिनसे मैंने पूरी श्रष्टि के कोने कोने से सुरों को बहकर तुम्हारे पास आकर पालथी लगाकर बैठते देखा था!
और तुम्हे याद है वो रात जब आखिरी पहर चाँद ने हमसे सोहनी की फरमाइश की थी और बादलों पर ठुड्डी टिकाये चांद तक हमने एक तराना पहुँचाया था ..तब तुम्हारे साथ मींड लेते हुए मैंने मेरी आत्मा को तुम्हारी आत्मा में घुलते देखा था! मेरी आँख की कोर से निकले आंसू को गंधार ने संभाला था और एक सुर भीगकर हवा में गुम हो गया था!
सुरों की माला हमने एक दूसरे के गले में पहनायी है! षडज से निषाद तक हमारी साँसें एक लय में गुंथी हुई चल रही हैं! मुझे नहीं जाना है ताजमहल, न ही देखना है इजिप्ट के पिरामिड कि मैंने तुम्हारे साथ विश्व के सात आश्चर्यों की यात्रा कर ली है!
मैं अकेला रहता हूँ..
आते हैं लोग जाते हैं...
मैं अकेला रहता हूँ..
साथ कोई चलने वाला नहीं...
जो साथी है वो साथ नहीं...
.....है दूर कहीं
अकेला ही इस भीड़ से जूझता हूँ
...मैं अकेला रहता हूँ...
कहने को महफिल सजी रहती है आसपास...
शामिल होके भी में उनमें शामिल नहीं...
मैं अकेला रहता हूँ...
कहते है तन्हाई सिखाती है बहुत कुछ..
पर रूलाती भी है अक्सर..
आंसू देखो रोज़ लड़ते है मुझसे
रूठ भी जाते हैं कभी...
.........पूछते हैं...
क्या कोई भी नहीं यहाँ क्या?..
समझा नहीं पाता उन्हें क्यूँ मैं अकेले रहता हूँ...
हँसते चेहरे के पीछे भी...
लाखो छुपे आंसू होते हैं..
यूँ तो दीखते नहीं उजाले में..
अंधेरो से प्यार करते हैं....
लोग समझेंगे नहीं...
देख नहीं पातें हैं कि मैं अकेला रहता हूँ..
खुशी दो पल मिल जाती है
..तो अहसास होता है की साँस अभी बाकी है..
अपने आप को आईने में देख नहीं पाता आजकल
डरता हूँ कहीं आईने को भी शिकायत न हो मुझसे..
कि क्यूँ मैं अकेला रहता हूँ....
दर्द है पर खुशी मिलती है...
खुद से जब दो बातें करता हूँ,..
..अच्छा लगता है...
समझाता हूँ दिल को कभी कभी..
ये सोनेपन का आलम मुख्तसर..
बस इंतज़ार है कोई ख़ास के वापस आने का
फिर नहीं कहूँगा
....कि मैं अकेला रहता हूँ..
रमाकांत सिंह - http://zaruratakaltara. blogspot.in/
अब सिद्धार्थ बुद्ध नहीं बनेगा
शुद्धोधन अपने पुत्र पर
यशोधरा अपने त्याग पर
कभी गर्व नहीं कर सकेंगे।
क्यों अवतरित होगा भगीरथ
तर्पण करने पूर्वजों के
नहीं बहेगी चन्द्रशेखर की
जटाओं से गंगा की धारा।
निरपराध बर्बरीक
अब अपनी गर्दन बचा लेगा
कृष्ण के सुदर्शन चक्र से
ठहाका मारेगा स्वजनों के वध पर
परम आनंद लेगा
सशरीर युद्ध की विभीषिका का।
धृतराष्ट प्रसन्न है अपनी दृष्टिटहीनता पर
गांधारी की नंगी आंखों में कोई क्लेष नहीं
दुर्योधन पारंगत हो गया है
युद्ध और राजनीति में।
समय और चक्र!
काट लेगा एकलव्य गुरु द्रोण का अंगूठा
प्रवीण क्यों होगा
अर्जुन
छल से धर्नुविद्या में
किन्तु समर भूमि मे
कर्ण ही बलि और महानायक होगा।
गोपियों का मोह भंग हो गया
गोकुल का ग्वाला अपंग हो गया
नाग कालिया दह से बाहर निकल
राजपथ पर विष उगल गया
लाक्षागृह का निर्माण पांण्डव करायेंगे
यशोदानंदन कदंब पर बैठे बंशी बजायेंगे
पॉचजन्य धरा रह जायेगा।
परीक्षित बच जायेगा
खण्ड-खण्ड होगा भरत का भरतखण्डे
संजय बदला-बदला धृतराष्ट संजय बन गया
समय और च्रक!
अब दशरथ का शब्दभेदी बाण भोथरा हो गया है
श्रवन मरेगा ही नहीं, न मां बाप श्राप देंगे
न होगा पुत्र शोक, न रावण का नाश।
न बाली का वध न सुग्रीव की मित्रता
राघवेद्र सरकार भी अब मर्यादित हो गये हैं
उर्मिला द्वार पर प्रतीक्षा करे
शनै-शनै रामराज्य की कल्पना मे
ऋषियों के साथ जनपद भी आत्मदाह कर लेंगे
गर्व से रावण राज करेगा लंका पर
विभीषण आज्ञाकारी अनुज बन राज-सुख भोगेगा
समय और चक्र!
शकुन्तला अब घर पर नहायेगी
तब ही अंगूठी अंगुली में बच पायेगी
दुष्यंत हर पल याद करता रहेगा
राज काज में भी दिया हुआ वादा
भरत निर्भीक खेलेगा सिंह की जगह न्याय से।
हरबोलवा गायेगा झांसी की रानी?
देश की खातिर भगत चढेगा फांसी?
वतन फरोशी के बिस्मिल गीत गायेगा?
चारों पहर बह रही है खून की नदियां
दिल और दिमाग जैसे कुंद हो गया
समय और चक्र!
एहसास ठिठके हो न हों
मैं अन्यमनस्क -
सोच और सोच से जुड़े व्यक्ति की व्याख्या
अपने एह्सासित धरातल पर कर रही हूँ...
नहीं...कदापि मुझे सार तत्व निकालने का अधिकार नहीं
पर अपनी सोच को मैं बाधित नहीं कर सकती
मैं बाध्य हूँ इन एहसासों की सहयात्री बनने को ..... क्रमशः
13 टिप्पणियाँ:
bhaut khubsurat links.........
बहुत सुन्दर रचनाएँ.....
शुक्रिया दी.
सादर
अनु
रश्मि प्रभा जी प्रणाम आपने ब्लॉग बुलेटिन ठिठके एहसास ३ में समय और चक्र! का प्रकाह्सन कर अनुग्रहित किया ह्रदय से धन्यवाद
बहुत सुन्दर रचनाएँ.....आभार
मैं बाध्य हूँ इन एहसासों की सहयात्री बनने को .... आप सहयात्री हों तो कदमों का ठिठकना निश्चित रूप से तय है ...
सादर
बडी ही सुंदर रचना
बहुत सुन्दर..
बहुत सुंदर रचनाएं...
बढिया लिंक्स
सुन्दर, अति सुन्दर!!
वाह दीदी क्या बात है आप के अंदाज़ ए बयां की ... जय हो !
बहुत ही उम्दा लिंक्स !
सुन्दर लिंक्स संजोने के लिए....बधाई
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