हम लिखते हैं खुद को जीने के लिए
यदि साँसों की आलोचना हो
तो ज़रूरी नहीं कि हम जीना छोड़ दें
या फिर शब्दों की मर्यादा से बाहर निकल
उनकी आलोचना का जवाब देने लगें ....
आलोचना सही अर्थ में हो
मर्यादित हो
साँसों की घुटन ना बने
तो आलोचना ज़रूरी है
पर अहम् तुष्टि के लिए
निरंतर गाली देना
नीचा दिखाना - सही नहीं है
ना ही उन जैसा बन जाना सही है
...........
लिखना है प्रकृति की तरह ताकि उत्सुकता बनी रहे
हमें सिर्फ रचनाओं को नहीं पढना है,हमें उस व्यक्तित्व से भी जुड़ना है - जिनकी कोशिशें नाविक सी होती हैं ....
8 टिप्पणियाँ:
बहुत सुन्दर रचनाएँ पढवाई हैं दी...
आभार..
अनु
जी पढ़ लिए और जाना भी... बहुत बढ़िया लिंक्स...आभार...
बहुत खुशी हो रही है अपनी रचना को यहाँ देख कर रश्मिप्रभा जी ! आप मुझे हमेशा याद रखती हैं आपकी आभारी हूँ ! सभी सूत्र बहुत सुन्दर हैं !
बेशक लेखन में एक रचनात्मक आंच का होना ज़रूरी है सिल्वर टोन में गायकी हो सकती है मुकेश की तरह लेखन नहीं .
मत कहो आकाश में कोहरा घना है ,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है .
स्तरीय रचनायें।
सभी बहुत सुन्दर रचनाएँ हैं..
बहुत सुन्दर अन्दाज़
सभी रचनाएँ बहुत ही सुंदर..|
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