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गुरुवार, 9 मई 2019

राष्ट्रगौरव महाराणा प्रताप को सादर नमन और ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
दृढप्रतिज्ञ और विलक्षण व्यक्तित्व के धनी महाराणा प्रताप का जन्म वि०स० 1597 ज्येष्ठ शुक्ला तृतीया यानि कि 9 मई 1540 को कुम्भलगढ, राजस्थान में सिसोदिया राजपूत राजवंश में महाराणा उदयसिंह एवं माता राणी जयवंत कँवर की संतान के रूप में हुआ था. पिता के निधन बाद उनका राज्याभिषेक 28 फरवरी 1572 को हुआ. विरासत में उन्हें मेवाड की प्रतिष्ठा और स्वाधीनता की रक्षा का दायित्व मिला. अपने यशस्वी पूर्वज महाराणा कुम्भा तथा राणा सांगा की शौर्य कथाओं को तथा देश, धर्म और आन-बान-शान, मान-मर्यादा पर मरने का पाठ बचपन में ही पढ़ने के कारण उन्होंने बिना घबराये, बिना भयभीत हुए लगातार संघर्ष किया. 


उनके नाम के साथ वीरता के किस्से जुड़े होने के साथ-साथ हल्दीघाटी का युद्ध और उनका घोड़ा चेतक सर्वाधिक चर्चा में रहते हैं. कहते हैं कि हल्दीघाटी के युद्ध में चेतक बाज की तरह उछल कर अकबर के सेनापति मानसिंह के हाथी के मस्तक की ऊँचाई तक पहुँच गया था. इस कारण ही महाराणा प्रताप ने मानसिंह पर वार किया था. इसी युद्ध में घायल होने के बाद चेतक को वीरगति प्राप्त हुई थी.

हल्दीघाटी का युद्ध 18 जून 1576 को मेवाड़ की राजपूत सेना तथा मुगलों के मध्य हुआ था. मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया जबकि मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया था. हल्दीघाटी के इस युद्ध में बीस हजार राजपूतों को साथ लेकर महाराणा प्रताप ने मुगल सेना के अस्सी हजार सैनिकों का सामना किया था. यह युद्ध चला तो केवल एक दिन परन्तु इसमें सत्रह हजार लोग मारे गए. इतिहासकारों के अनुसार युद्ध में किसी के विजयी न होने के बाद भी महाराणा प्रताप विजयी रहे. आमने-सामने चले इस युद्ध में उन्होंने अकबर की विशाल सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था, यह उनकी जीत कही जाएगी.  

इसके बाद 1579 से 1585 तक की स्थिति ऐसी बनी कि महाराणा प्रताप एक के बाद एक गढ़ जीतते जा रहे थे. उधर पूर्वी उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार और गुजरात के मुग़ल अधिकृत प्रदेशों में विद्रोह होने लगे थे. इसका लाभ उठाकर महाराणा प्रताप ने मुगल चौकियों पर आक्रमण शुरू कर दिए और जल्द ही उदयपुर समेत कई महत्वपूर्ण स्थान महाराणा के अधिकार में आ गए. महाराणा प्रताप के सिंहासन पर बैठते समय मेवाड़ की जितनी भूमि पर उनका कब्ज़ा था, उतने पर पुनः उनका शासन स्थापित हो गया. इस स्थिति में बारह वर्ष के संघर्ष के बाद भी अकबर कोई परिवर्तन न कर सका. महाराणा प्रताप लंबी अवधि के संघर्ष के बाद मेवाड़ को मुक्त करने में सफल रहे और यह मेवाड़ के लिए स्वर्ण युग साबित हुआ. मेवाड़ पर लगा हुआ अकबर ग्रहण सन 1585 में समाप्त हुआ.

इसके बाद महाराणा प्रताप राज्य के विकास में जुट गए. यह दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि 19 जनवरी 1597 को अपनी नई राजधानी चावंड में महाराणा प्रताप का निधन हो गया. महाराणा प्रताप से भयभीत होने का उदाहरण अकबर के इसी कदम से मिलता है कि वह डर के मारे अपनी राजधानी लाहौर लेकर चला गया था और महाराणा के निधन के बाद पुनः आगरा लौट आया.

महाराणा प्रताप का नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अग्रणी ही नहीं अपितु मंत्रदाता भी कहे जा सकते हैं. वे स्वतंत्रता, स्वाभिमान, सहिष्णुता, पराक्रम और शौर्य के परिचायक कहे जाते हैं. मातृभूमि के गौरव के लिए वे कभी कितनी ही बड़ी मुसीबत से विचलित नहीं हुए, न ही कभी किसी के आगे झुके. यही कारण है कि महाराणा प्रताप आज भी हिंदुस्तान के जन-जन के हृदय में बसे हुए हैं.

आज उनकी जन्मजयन्ती पर बुलेटिन परिवार की ओर से सादर नमन सहित आज की बुलेटिन प्रस्तुत है.

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3 टिप्पणियाँ:

Malti Mishra ने कहा…

सुंदर और सार्थक संकलन। मेरा लेख शामिल करने के लिए आभार।

Anuradha chauhan ने कहा…

सुंदर बुलेटिन प्रस्तुति बेहतरीन रचनाएं मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार

शिवम् मिश्रा ने कहा…

राष्ट्रगौरव महाराणा प्रताप को सादर नमन|

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