सभी हिन्दी ब्लॉगर्स को नमस्कार।
8 अप्रैल, 1929 को भगत सिंह व बटुकेश्वर दत्त ने ब्रिटिश सरकार के बहरे कानों में आवाज़ पहुँचाने के लिए दिल्ली में केन्द्रीय असेम्बली में बम फेंककर धमाका किया। स्वाभाविक रूप से चारों ओर गिरफ्तारी का दौर शुरू हुआ। लाहौर में एक बम बनाने की फैक्ट्री पकड़ी गई, जिसके फलस्वरूप 15 अप्रैल, 1929 को सुखदेव, किशोरी लाल तथा अन्य क्रांतिकारी भी पकड़े गए। सुखदेव चेहरे-मोहरे से जितने सरल लगते थे, उतने ही विचारों से दृढ़ व अनुशासित थे। उनका गांधी जी की अहिंसक नीति पर जरा भी भरोसा नहीं था। उन्होंने अपने ताऊजी को कई पत्र जेल से लिखे। इसके साथ ही महात्मा गांधी को जेल से लिखा उनका पत्र ऐतिहासिक दस्तावेज है, जो न केवल देश की तत्कालीन स्थिति का विवेचन करता है, बल्कि कांग्रेस की मानसिकता को भी दर्शाता है। उस समय गांधी जी अहिंसा की दुहाई देकर क्रांतिकारी गतिविधियों की निंदा करते थे। इस पर कटाक्ष करते हुए सुखदेव ने लिखा, "मात्र भावुकता के आधार पर की गई अपीलों का क्रांतिकारी संघर्षों में कोई अधिक महत्व नहीं होता और न ही हो सकता है।"
सुखदेव ने तत्कालीन परिस्थितियों पर गांधी जी एक पत्र में लिखा, 'आपने अपने समझौते के बाद अपना आन्दोलन (सविनय अवज्ञा आन्दोलन) वापस ले लिया है और फलस्वरूप आपके सभी बंदियों को रिहा कर दिया गया है, पर क्रांतिकारी बंदियों का क्या हुआ? 1915 से जेलों में बंद गदर पार्टी के दर्जनों क्रांतिकारी अब तक वहीं सड़ रहे हैं। बावजूद इस बात के कि वे अपनी सजा पूरी कर चुके हैं। मार्शल लॉ के तहत बन्दी बनाए गए अनेक लोग अब तक जीवित दफनाए गए से पड़े हैं। बब्बर अकालियों का भी यही हाल है। देवगढ़, काकोरी, महुआ बाज़ार और लाहौर षड्यंत्र केस के बंदी भी अन्य बंदियों के साथ जेलों में बंद है।..... एक दर्जन से अधिक बन्दी सचमुच फाँसी के फंदों के इन्तजार में हैं। इन सबके बारे में क्या हुआ?" सुखदेव ने यह भी लिखा, भावुकता के आधार पर ऐसी अपीलें करना, जिनसे उनमें पस्त-हिम्मती फैले, नितांत अविवेकपूर्ण और क्रांति विरोधी काम है। यह तो क्रांतिकारियों को कुचलने में सीधे सरकार की सहायता करना होगा।' सुखदेव ने यह पत्र अपने कारावास के काल में लिखा। गांधी जी ने इस पत्र को उनके बलिदान के एक मास बाद 23 अप्रैल, 1931 को 'यंग इंडिया' में छापा।
ब्रिटिश सरकार ने सुखदेव, भगत सिंह और राजगुरु पर मुकदमे का नाटक रचा। 23 मार्च, 1931 को उन्हें 'लाहौर सेंट्रल जेल' में फाँसी दे दी गई। देशव्यापी रोष के भय से जेल के नियमों को तोड़कर शाम को साढ़े सात बजे इन तीनों क्रांतिकारियों को फाँसी पर लटकाया गया। भगत सिंह और सुखदेव दोनों एक ही सन में पैदा हुए और एक साथ ही शहीद हो गए।
(साभार : http://bharatdiscovery.org/india/सुखदेव)
आज महान देशभक्त सुखदेव जी की 112वीं जयंती पर समस्त देशवासी उनके सर्वोच्च बलिदान का स्मरण करते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। सादर।।
~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
4 टिप्पणियाँ:
शुक्रिया रूप तेरा मस्ताना से जुड़े मेरे आलेख को यहाँ जगह देने के लिए।
रचना सम्मिलित करने का हार्दिक आभार
अमर शहीद सुखदेव जी को सादर नमन |
बढ़िया बुलेटिन हर्ष ... आभार आपका |
बहुत सुंदर प्रस्तुति
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