बहुत सोचा
एक वसीयत लिख दूँ अपने बच्चों के नाम ...
घर के हर कोने देखे
छोटी छोटी सारी पोटलियाँ खोल डालीं
आलमीरे में शोभायमान लॉकर भी खोला
....... अपनी अमीरी पर मुस्कुराई !
छोटी छोटी सारी पोटलियाँ खोल डालीं
आलमीरे में शोभायमान लॉकर भी खोला
....... अपनी अमीरी पर मुस्कुराई !
छोटे छोटे कागज़ के कई टुकड़े मिले
गले लगकर कहते हुए - सॉरी माँ,लास्ट गलती है
अब नहीं दुहराएंगे ... हँस दो माँ '
अपनी खिलखिलाहट सुनाई दी ...
ओह ! यानी बहुत सारी हंसी भी है मेरी संपत्ति में !
गले लगकर कहते हुए - सॉरी माँ,लास्ट गलती है
अब नहीं दुहराएंगे ... हँस दो माँ '
अपनी खिलखिलाहट सुनाई दी ...
ओह ! यानी बहुत सारी हंसी भी है मेरी संपत्ति में !
आलमीरे में अपना काव्य-संग्रह
जीवन का सजिल्द रूप ...
आँख मटकाती बार्बी डौल
छोटी कार - जिसे देखकर ये बच्चे
चाभी भरे खिलौने हो जाते थे
चलनेवाला रोबोट
संभाल कर रखी डायरी
जिसमें कुछ भी लिखकर
ये बच्चे आराम की नींद सो जाते थे ...
मैंने ही बताया था
डायरी से बढकर कोई मित्र नहीं
..... हाँ वह किसी के हाथ न आये
और इसके लिए मैं हूँ न तिजोरी '
जीवन का सजिल्द रूप ...
आँख मटकाती बार्बी डौल
छोटी कार - जिसे देखकर ये बच्चे
चाभी भरे खिलौने हो जाते थे
चलनेवाला रोबोट
संभाल कर रखी डायरी
जिसमें कुछ भी लिखकर
ये बच्चे आराम की नींद सो जाते थे ...
मैंने ही बताया था
डायरी से बढकर कोई मित्र नहीं
..... हाँ वह किसी के हाथ न आये
और इसके लिए मैं हूँ न तिजोरी '
पहली क्लास से नौवीं क्लास तक के रिपोर्ट कार्ड
(दसवीं,बारहवीं के तो उनकी फ़ाइल में बंध गए)
पहला कपड़ा,पहला स्वेटर
बैट,बॉल ... डांट - फटकार
एक ही बात -
"जो कहती हूँ ... तुमलोगों के भले के लिए
मेरा क्या है !
अरे मेरी ख़ुशी तो ....'"
मुझे घेरकर
सर नीचे करके वे ऐसा चेहरा बनाते
कि मुझे हँसी आने लगती
उनके चेहरे पर भी मुस्कान की एक लम्बी रेखा बनती ...
मैं हंसती हुई कहती -
सुनो,मेरी हंसी पर मत जाओ
मैं नाराज़ हूँ ... बहुत नाराज़ '
ठठाकर वे हँसते और सारी बात खत्म !
ये सारे एहसास भी मैंने संजो रखे हैं
....
बेवजह कितना कुछ बोली हूँ
आजिज होकर कान पकड़े हैं
फिर बेचैनी में रात भर सर सहलाया है ..
मारने को कभी हाथ उठाया
तो मुझे ही चोट लगी
उंगलियाँ सूज गयीं
.... उसे भी मन के बक्से में रखा है ....
....
वक़्त गुजरता गया -
वे कड़ी धूप में निकल गए समय से
आँचल में मैंने कुछ छाँह रख लिए हैं बाँध के
ताकि मौका पाते उभर आये स्वेद कणों को पोछ सकूँ ...
...
आज भी गए रात जागती हुई
मैं उनसे कुछ कुछ कहती रहती हूँ
उनके जवाब की प्रतीक्षा नहीं
क्योंकि मुझे सब पता है !
घंटों बातचीत करके भी
कुछ अनकहा रह ही जाता है
.....मैंने उन अनकही बातों को भी सहेज दिया है
............
आप सब आश्चर्य में होंगे
- आर्थिक वसीयत तो है ही नहीं !!!
ह्म्म्मम्म - वो मेरे पास नहीं है ...
बस एहसास हैं मासूम मासूम से
जो पैसे से बढ़कर हैं -
थकने पर इनकी ज़रूरत पड़ती है
बच्चों को मैं जानती हूँ न
शाम होते मैं उन्हें याद आती हूँ
तकिये पर सर रखते सर सहलाती मेरी उंगलियाँ
.... उनके हर प्रश्नों का जवाब हूँ मैं
तो सारे जवाब मैंने वसीयत में लिख दिए हैं
- बराबर बराबर ........
रश्मि प्रभा
(दसवीं,बारहवीं के तो उनकी फ़ाइल में बंध गए)
पहला कपड़ा,पहला स्वेटर
बैट,बॉल ... डांट - फटकार
एक ही बात -
"जो कहती हूँ ... तुमलोगों के भले के लिए
मेरा क्या है !
अरे मेरी ख़ुशी तो ....'"
मुझे घेरकर
सर नीचे करके वे ऐसा चेहरा बनाते
कि मुझे हँसी आने लगती
उनके चेहरे पर भी मुस्कान की एक लम्बी रेखा बनती ...
मैं हंसती हुई कहती -
सुनो,मेरी हंसी पर मत जाओ
मैं नाराज़ हूँ ... बहुत नाराज़ '
ठठाकर वे हँसते और सारी बात खत्म !
ये सारे एहसास भी मैंने संजो रखे हैं
....
बेवजह कितना कुछ बोली हूँ
आजिज होकर कान पकड़े हैं
फिर बेचैनी में रात भर सर सहलाया है ..
मारने को कभी हाथ उठाया
तो मुझे ही चोट लगी
उंगलियाँ सूज गयीं
.... उसे भी मन के बक्से में रखा है ....
....
वक़्त गुजरता गया -
वे कड़ी धूप में निकल गए समय से
आँचल में मैंने कुछ छाँह रख लिए हैं बाँध के
ताकि मौका पाते उभर आये स्वेद कणों को पोछ सकूँ ...
...
आज भी गए रात जागती हुई
मैं उनसे कुछ कुछ कहती रहती हूँ
उनके जवाब की प्रतीक्षा नहीं
क्योंकि मुझे सब पता है !
घंटों बातचीत करके भी
कुछ अनकहा रह ही जाता है
.....मैंने उन अनकही बातों को भी सहेज दिया है
............
आप सब आश्चर्य में होंगे
- आर्थिक वसीयत तो है ही नहीं !!!
ह्म्म्मम्म - वो मेरे पास नहीं है ...
बस एहसास हैं मासूम मासूम से
जो पैसे से बढ़कर हैं -
थकने पर इनकी ज़रूरत पड़ती है
बच्चों को मैं जानती हूँ न
शाम होते मैं उन्हें याद आती हूँ
तकिये पर सर रखते सर सहलाती मेरी उंगलियाँ
.... उनके हर प्रश्नों का जवाब हूँ मैं
तो सारे जवाब मैंने वसीयत में लिख दिए हैं
- बराबर बराबर ........
रश्मि प्रभा
हर दिन - माँ का दिन | Isha Sadhguru
*** वो बर्बाद करती है ***
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वो व्यस्त यूँ होती नहीं,
अपने कर्तव्यों में दिन भर
पर कुछ यों घुली हुई रहती है।
अपने कर्तव्यों में दिन भर
पर कुछ यों घुली हुई रहती है।
इस कथित व्यस्तता में
हर रोज़ नई सब्ज़ी का
बेजोड़ स्वाद जोड़ना स्वीकार करती है।
हर रोज़ नई सब्ज़ी का
बेजोड़ स्वाद जोड़ना स्वीकार करती है।
कि जिसे सबसे ज़्यादा बेगार मानकर
सैद्धांतिक रूप से
किसी विशेष काम के लिए तय नहीं किया जाता,
सैद्धांतिक रूप से
किसी विशेष काम के लिए तय नहीं किया जाता,
परात को पसारकर
हर निरुद्देश्य साँझ में
साग चुनने जैसा बेकार
कोई सबसे पसंदीदा काम चुन लिया है उसने।
हर निरुद्देश्य साँझ में
साग चुनने जैसा बेकार
कोई सबसे पसंदीदा काम चुन लिया है उसने।
बहनों की अथक ट्यूशन में
जिस सामाजिक सुरक्षा के लिए
ढेरों दुश्चिंता से लगातार लाचार रहती है
कई- कई घंटे ख़बरी चैनलों से चिपकी हुई भी
वो अपनी घिसी- पिटी दिनचर्या का मूक निर्वाह करती है,
जिस सामाजिक सुरक्षा के लिए
ढेरों दुश्चिंता से लगातार लाचार रहती है
कई- कई घंटे ख़बरी चैनलों से चिपकी हुई भी
वो अपनी घिसी- पिटी दिनचर्या का मूक निर्वाह करती है,
वो अपने नैसर्गिक भोलेपन में
तब भूल जाती है,
कि बिके हुए सारे चैनेल्स पर
संरक्षा से कहीं बढ़कर
भय परोसना सिखाया जाता रहा है।
तब भूल जाती है,
कि बिके हुए सारे चैनेल्स पर
संरक्षा से कहीं बढ़कर
भय परोसना सिखाया जाता रहा है।
नहीं समझ पाती वो
इन नादानियों से कैसे पार पाया जाए,
सो परोसने के लिए फिर
दाल में पड़नेवाली नयी छौंक में ध्यान लगाती है।
इन नादानियों से कैसे पार पाया जाए,
सो परोसने के लिए फिर
दाल में पड़नेवाली नयी छौंक में ध्यान लगाती है।
सब सहेजकर सलीका जताने में
घंटों तक 'हीटर' जलाते हुए
फिर वो
कहीं कोई गुरेज़ भी नहीं करती।
घंटों तक 'हीटर' जलाते हुए
फिर वो
कहीं कोई गुरेज़ भी नहीं करती।
यूँ हर रात
आदम युगीन बल्ब की पीली रोशनी में
जिस तरह वो ओसारे पे निश्चेष्ट बैठकर
हर रोज़ बच्चों के सकुशल लौट आने को
टिमटिमाती हुई बाट जोहती है
आदम युगीन बल्ब की पीली रोशनी में
जिस तरह वो ओसारे पे निश्चेष्ट बैठकर
हर रोज़ बच्चों के सकुशल लौट आने को
टिमटिमाती हुई बाट जोहती है
सभी परिपक्व हो चले सदस्यों के मस्तिष्क में
कोई अलग बिजली कौंधती है,
और घर में
हर तरह से अनाप- शनाप खर्चे पे
कोई वाकयुद्ध छिड़ता है।
कोई अलग बिजली कौंधती है,
और घर में
हर तरह से अनाप- शनाप खर्चे पे
कोई वाकयुद्ध छिड़ता है।
हज़ारों की बिजली बिल से
अक्सर पापा जहाँ बावले- उतावले हो जाते हैं,
अक्सर पापा जहाँ बावले- उतावले हो जाते हैं,
वो बेलौस मुस्कराती है,
इस तरह माँ,
घर में सबसे ज़्यादा बिजली बर्बाद करती है।***
इस तरह माँ,
घर में सबसे ज़्यादा बिजली बर्बाद करती है।***
माँ के लिए, जिसने जन्म दिया और जीवन की राह पर मुस्कुराकर, दुलार देकर, अटूट विश्वास भरे मौन संकेतों से गृहस्थ जीवन में आगे बढ़ने का आशीर्वाद दिया ...
और, नमन उस माँ को, जिसने मुझे मेरे गुण-दोषों के साथ हृदय से लगाया, जीवन का मर्म समझाया, आगे बढ़ाया, अटूट विश्वास के साथ ...
आज भी दोनों के यशस्काय में आलिङ्गनबद्ध उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुये ...
मातृदिवस पर हृदयस्तल से भावाञ्जलि! 🙏🏻
और, नमन उस माँ को, जिसने मुझे मेरे गुण-दोषों के साथ हृदय से लगाया, जीवन का मर्म समझाया, आगे बढ़ाया, अटूट विश्वास के साथ ...
आज भी दोनों के यशस्काय में आलिङ्गनबद्ध उनके दिखाए मार्ग पर चलते हुये ...
मातृदिवस पर हृदयस्तल से भावाञ्जलि! 🙏🏻
5 टिप्पणियाँ:
वसीयत वाली कविता पढ़ते ही जाने कैसे मन आपसे जुड़ गया ! आपकी लिखी ही हो सकती है यह कविता ! और लो ! यह तो आपकी ही निकली ! कोमल अहसासों को इतनी खूबसूरती से आप ही बुन सकती हैं रश्मि प्रभा जी ! मातृृ दिवस की हार्दिक शुभ कामनाएं !
इतनी
मातृदिवस पर सभी को हार्दिक शुभकामनायें |
बहुत शानदार चयन 🙏
Maan tujhe Salam. Sundar chayan hai aapka.
Bengal florican mating dance , Lion tailed macaque pronunciation
dil ko jhoo lene waali kavita.
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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!