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मंगलवार, 22 जनवरी 2019

छुटती नहीं है मुँह से ये काफ़िर लगी हुई - 2300 वीं ब्लॉग बुलेटिन

साल का सुरुआत अभी होबे किया है त आज हमको भी बहुत सा पुराना-नया बात याद आ रहा है. ऊ ब्लॉग का स्वर्न काल थाजब नया नया दाखिल हुये थे. बहुत सा लोग तबतक स्थापित हो चुका था अऊर जिनका लेखन हमको बहुत परभावित करता था. सच पूछिये त जेतना सिर्सस्थ लोग आज भी देखाई देता है उनमें हम सबसे जुनियर हैं. मगर धीरे-धीरे हमरा भी पहचान बनता चला गया अऊर कुछ लोग बिहारी होने के बावजूद भी इज्जत देने लगा. इसका सबसे बड़ा कारन जानते हैं का थाहमरा ईमानदारी.

दरसल ब्लॉग-जगत में बहुत बे-ईमानी चलता था. ऊ जमाना था जब बहुत सा “बड़ा लेखक” लोग भी बिना ब्लॉग पढे हुये कमेण्ट में बहुत अच्छाकमाल का लिखा है आपनेबहुत प्रेरक रचना है... ई सब बात लिख देता था. बहुत सा लोग पिछला कमेण्ट पढकर हेर-फेर करके नया टिप्पणी चेप देता था. असल में ऊ लोग का भी मजबूरी थाकाहे कि उनको एक रोज में सैकड़ों पोस्ट पर कमेण्ट जो करना पड़ता थाताकि उनके पोस्ट पर भी ऊ लोग आकर हाजिरी लगाए. अब एतना पोस्ट पढकर कमेण्ट करने में त हालत खराब हो जाएगाओही से एक झटका में सबको निपटा देते थे.

हमरा खराबी एही था कि हम बहुत कम पोस्ट पढते थेमगर पढला के बाद कमेण्ट करते थे. अ आप लोग को भरोसा दिलाते हैं कि आज भी हम बिना पढे कम से कम टिप्पणी त नहिंये करते हैं. एही हाल हमरा फेसबुक पर भी है. बहुत कम पोस्ट लिखते हैंगिना चुना लोग को पढते हैं अऊर टिप्पणी का ओही स्टैंडर्ड बनाकर चलते हैं.

एही चक्कर में केतेना बार अइसा हुआ कि टिप्पणी में कोई कबिता हम लिख दियेत उसको ओहीं पोस्ट करके हम भुला जाते थे. कभी कभी बाद में खोजने से भी नहीं मिलता था. दरसल हम जेतना अपना कबिता को नेग्लेक्ट किये हैं कि अगर हमरा कबिता हमसे बदला लेना चाहे त हमको सात जन्म तक कबिता से वंचित रख सकता है. मगर हमरा कबिता को भी मालूम है कि हम कबिता के बिना नहीं रह सकते हैं अऊर कबिता हमरे साँस साँस में बसता है.


बस गुअजरा हुआ साल में हम कबिता के साथ एगो परयोग किये. सुबह-सुबह व्हाट्स ऐप्प पर लोग एन्ने-ओन्ने का फॉरवर्ड किया हुआ मेसेज भेजता रहता हैहम कभी उसको फ़ॉरवर्ड नहीं करते हैं. हम अंगरेजी का बहुत सा सूक्ति का हिन्दी में भाव अनुवाद करके अऊर उसको एकेदम अपना बनाकर कबिता के रूप में ढाल दिये. फिर उसको अपने पसंद का संदेस से मिलता जुलता फोटो (अऊर कभी कभी अपना फ़ोटो) के साथ अपना करीबी लोग को भेजना सुरू कर दिये. हमरा भी सर्त एही था कि उसको कभी भी फेसबुक पर सेयर नहीं किये. कुछ चाहने वाले लोग शेयर कर दिये त हमको कोनो आपत्ति भी नहीं हुआ.

बस एही सिलसिला अभी तक चल रहा है. इसी बहाने हम अपने अंदर लुकाया हुआ कबि को बाहर निकालने का कोसिस भी किये अऊर कबिता के प्रति जो हमरा करजा था ऊ हो धीरे धीरे चुका दिये. आज लगभग 200 कबिता हम लिख चुके हैं अऊर आप लोग के आसीर्बाद से अभी भी चल रहा है. कबिता अच्छा है या बुरा है मालूम नहींलेकिन बहुत से परसिद्ध लोग से अच्छा कबिता है ई बात त हम अपना खुद का आलोचक होने के नाते भी कह सकते हैं.

कभी मौका मिला त अगिला बार हम अपना कबिता के साथ ब्लॉग-बुलेटिन पेस करेंगे. फिलहाल त देखते देखते 2300 वाँ बुलेटिन आपके सामने आ गया. बधाई आप सब लोगों कोकाहे कि बहुत मोस्किल से हमलोग ई बुलेटिन को आगे बढा पा रहे हैं. सबके साथ बेक्तिगत समस्या हैमगर ऊ का कहते हैं कि आदत हो त छूटियो जाता हैलत कहाँ छूटता है- छुटती नहीं है मुँह से ये काफ़िर लगी हुई!
                                                          - सलिल वर्मा 
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हे कृष्ण

♥♥♥♥♥अपने औचित्य... ♥♥♥♥♥♥

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18 टिप्पणियाँ:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आप तो इतना बढ़िया लिखते हैं कि कोई शब्द नहीं । सीप में दुर्लभ मोती की तरह आपकी हर पंक्तियां होती हैं, भाई मैं तो कायल हूँ

अर्चना तिवारी ने कहा…

आपका सब कबिता पढ़ने का हमका भी सुख मीला। हमको तो ई लगता है कि आप जेतना अच्छा लिखते हैं उससे कहीं अच्छा सोच लेते हैं। कउनो दिन दिमाग पढ़ कर लिखने वाला गूगल आ गया ना ओह दिन आपके पाठकन की किस्मत बुलंद समझिए ।

गोपेश मोहन जैसवाल ने कहा…

'बहुत सुन्दर !', 'बेहतरीन !' ,'कमाल कर दिया !' अगर ऐसी टिप्पणियां हटा दी जाएं तो किसी भी रचना पर इक्का-दुक्का ही टिप्पणी बचेंगी लेकिन उस मटका भर छाछ से इस मलाई के कटोरे की कीमत कहीं ज़्यादा होगी.

राजेश राज ने कहा…

आप इतना परेम् औरी आदर से हमरा लिखलका को पढ़ते हैं कि ई बताते हुए बहुते संकोच हो रहा है, हम वाट्स अप मैसेज नहीं देख पाते, काहे कि इक्का दुक्का छोड़ के सब फॉरवर्डिंग का कमाल रहता है अब इक्का-दुक्का असली मैसेज छांटने के लिए भूंसा पछोरना हमको सुहाता नहीं। आपकी ईमानदारी के दुर्लभ गुण के सम्मान में इमंदरिए से कह रहे हैं कि यहीं चक्कर में वाट्सएप मैसेज समझ कर आपके कविता का अनदेखी हमसे हो गया।
अब हो गया तो हो गया, बाकी जब भी रिवर्स गियर का फुर्सत मिलेगा, प्रायश्चित ज़रूर करेंगे। काहे कि ई आभासी दुनिया में जिन कुछ लोग के बदौलत हम टिके हैं उसमे आपका नाम बहुत ऊपर है।
माफी मांगना आपको भी अच्छा नहीं लगेगा, सो, बस 2300 की बधाई, सुभाकमना

विश्वमोहन ने कहा…

बाप रे! जानमारू रचनाकार।

दीपिका रानी ने कहा…

शानदार :)

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आपकी हर बात निराली।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

देखिये आप के आने की आहट ही हुई है और मैं टिप्याने में पीछे रह गया। 2300 की बधाई। जल्दी जल्दी आया कीजिये ना। हाँ कविताएं पढ़नी बाकी हैं आपकी। शुभकामनाएंं ढेर सारी सलिल जी।

SKT ने कहा…

आपकी टिप्पणी किसी पोस्ट से कम नहीं होती, यह हम अच्छी तरह जानते हैं! आपकी प्रतिदिन की वाट्सएप पोस्ट भी अनूठी होती हैं! इन्हें पुस्तक के रूप में सहेजने की तरफ गंभीरता से विचार करने की जरूरत है!
जबर पोस्ट तो है ही आज की....आखिर मौका भी तो जबर है!

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

मुझे तो आप जैसा लेखक और आशुकवि कहीं नहीं दिखा .रचनाओं की प्रतिक्रिया मेंं आप रचना से भी अच्छी रचना करते हैं .और आजकल रोज एक कविता ..फिर भी आप खुद को कम आँकते हैं यही गुण तो आपको और बड़ा बनाता है .

Anuradha chauhan ने कहा…

2300वे बुलेटिन प्रस्तुति की हार्दिक शुभकामनाएं सुंदर अंक
सभी रचनाएं बहुत सुंदर लगी। आप बहुत अच्छा लिखते हैं मेरी रचना को स्थान दिया उसके लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

सभी पाठकों को मेरा सादर प्रणाम! आप लोगों ने जितना प्यार ब्लॉग बुलेटिन को दिया है, यह उसी का परिणाम है कि हम 2300 के आँकड़े तक पहुँचे हैं। भाई शिवम मिश्र अपनी व्यक्तिगत, पारिवारिक तथा स्वास्थ्यगत समस्याओं के बावजूद भी इस मंच को अपने परिवार की तरह चाहते हैं। और यही कारण है कि अपने अनुज का यह प्रेम मुझे हमेशा यहाँ खींच लाता है।
आप यदा कदा आने वाले इस व्यक्ति के पर भी इतना प्रेम लुटाते हैं, तो मेरा दिल कैसे नहीं मानेगा! आदरणीय सुशील जोशी सर और त्यागी सर का विशेष आभार और सादर आभार व्यक्त करता हूँ और जल्द ही मिलने का वादा करता हूँ!

himanshu sonkar ने कहा…

बहुत बढ़िया पोस्ट आपका तहे दिल से धन्यवाद आप ऐसे पोस्ट पढ़ने के लिए मेरे भी वेबसाइट पर आ सकते हैं - https://www.todaythinking.com/

नूपुरं noopuram ने कहा…

धन्यवाद ब्लॉग बुलेटिन और सलिल वर्माजी.

बिल्कुल नहीं छूटती ! कविता चीज़ ही ऐसी है !
मर्ज़ ऐसा जो कभी ना जाए तो अच्छा !
बस इतना कि मर्ज़ को लाइलाज बनाने का जिम्मा आपका हुआ !

सभी गुणी जनों ने सब कह दिया है. आगे क्या कहें.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

सभी पाठकों और पूरी बुलेटिन टीम को 2300 वीं पोस्ट की हार्दिक बधाइयाँ |

ऐसे ही स्नेह बनाए रखिए |



सलिल दादा को सादर प्रणाम |

Anita ने कहा…

आपने पुरानी बातों का जिक्र किया तो हमें भी कुछ याद आ गया, वाकई आपकी टिप्पणियाँ किसी कविता से कम नहीं होती थीं उन दिनों..पोस्ट की अहमियत को बढ़ा देती थीं, आभार उन सभी के लिए और आज के बुलेटिन में शामिल करने के लिए भी...

Abhilasha ने कहा…

ब्लाॅग बुलेटिन के २३०० अंक की हार्दिक बधाई।
आपने बहुत उत्तम बात कही आदरणीय,हम तो इस
जगत में बिल्कुल नए हैं।आप जैसे महानुभावों के
सान्निध्य का माध्यम बना है ब्लाॅग।बहुत बढ़िया लिखा
और सत्य लिखा।इसके लिए हृदय से धन्यवाद।मेरी
रचना को चयनित करने के लिए सहृदय आभार।

Smart Indian ने कहा…

बधाई हो!

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बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!

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