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बुधवार, 16 जनवरी 2019

कुम्भ की पावनता से निखरी ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार साथियो,
प्रयागराज में इस समय कुम्भ की पावनता बिखरी हुई है. कुम्भ पर्व हिन्दू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुम्भ पर्व स्थल में पावन नदी में स्नान करते हैं. इसके आयोजन को लेकर दो-तीन पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं, जिनमें से सर्वाधिक मान्य कथा देव-दानवों द्वारा समुद्र मंथन से प्राप्त अमृत कुम्भ से अमृत बूँदें गिरने को लेकर है. इस कथा के अनुसार महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण जब इंद्र और अन्य देवता कमजोर हो गए तो दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया. सभी देवताओं ने भगवान विष्णु को सारा वृतान्त सुनाया. तब भगवान विष्णु ने उन्हे दैत्यों के साथ मिलकर क्षीरसागर का मंथन करके अमृत निकालने की सलाह दी. 


समुद्र मंथन के पश्चात् निकले अमृत कुंभ को देवताओं का इशारा पाते ही इंद्रपुत्र 'जयंत' अमृत-कलश को लेकर आकाश में उड़ गया. ऐसा देख दैत्यगुरु शुक्राचार्य के आदेशानुसार दैत्य अमृत को लेने के लिए जयंत के पीछे पड़ गए. बीच रास्ते में उन्होंने जयंत को पकड़ा. इसके बाद अमृत कलश पर अधिकार जमाने के लिए देव-दानवों में बारह दिन तक युद्ध होता रहा. युद्ध शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर यथाधिकार सबको अमृत बाँटकर पिला दिया. इस प्रकार देव-दानव युद्ध का अंत हुआ. कहते हैं कि इस युद्ध के दौरान पृथ्वी के चार स्थानों-प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन, नासिक में कलश से अमृत बूँदें गिरी थीं. इन्हीं स्थानों पर जहाँ अमृत बूँदें गिरी थी, वहाँ कुम्भ पर्व होता है. 


कुम्भ के इस पावन-पर्व पर हमारे मित्र डॉ० अनुज भदौरिया ‘जालौनवी’ की एक रचना, जो कुम्भ से संदर्भित है. आइये आज की बुलेटिन के साथ-साथ उसका भी आनंद लें.
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दुर्वासा के श्राप से इंद्र हुए कमजोर,
देवों पर छाई घटा विपदा थी घनघोर.
देवताओं की हो गयी असुरों से जब हार,
सब मिल पहुंचे देव-गण विष्णुजी के द्वार.
रो-रोकर कहने लगे जब अपना वृतान्त,
क्षीरसिन्धु-मंथन करो बोले तब श्रीकान्त.
देव-दैत्य मंथन किये, निकला अमिय तुरंत,
तब अमृत के कलश को लेकर गया जयंत.
दैत्यों ने पीछा किया, पकड़ा इंद्र कुमार,
बारह दिन तक फिर हुआ अविरल हाहाकार.
अमिय-बिंदु इस युद्ध में गिरे धरा पर चार,
नासिक में, उज्जैन में, प्रयाग और हरिद्वार.
रूप मोहिनी का किया धारण तब भगवान,
युद्ध शांत को दे दिया सबको अमृत दान.
कुल बाराही कुम्भ है, पर पृथ्वी पर चार,
शेष आठ सुरलोक में देवों के अधिकार.
चन्द्र, सूर्य, गुरु, वर्ष जिस और राशि का योग,
जहाँ गिरा था अमिय-रस, वहीं कुम्भ संयोग.

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7 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बढ़िया महाकुम्भ बुलेटिन।

dr.sunil k. "Zafar " ने कहा…

वाह जानकारी भरा बुलेटिन।
आभार

anshumala ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन में मेरी पोस्ट शामिल करने के लिए धन्यवाद

नूपुरं noopuram ने कहा…

अच्छी जानकारी और सरस लेखन का बुलेटिन पढ़ कर मज़ा आ गया ।
पतंगबाज़ी भी शामिल करने लिए हार्दिक आभार ।
सभी लेखकों को बधाई !

Harsh Wardhan Jog ने कहा…

सभी लेखकों को बधाई. 'चौंसठ योगिनी मंदिर को शामिल करने का आभार.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जय हो |

Abhilasha ने कहा…

बेहतरीन बुलेटिन,सभी रचनाकारों को बधाई

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