ना कविता लिखता हूँ ना कोई छंद लिखता हूँ अपने आसपास पड़े हुऎ कुछ टाट पै पैबंद लिखता हूँ ना कवि हूँ ना लेखक हूँ ना अखबार हूँ ना ही कोई समाचार हूँ जो हो घट रहा होता है मेरे आस पास हर समय उस खबर की बक बक यहाँ पर देने को तैयार हूँ । सुशील कुमार जोशी
समर्पित समाज
के लिये समर्पित
करता रहता है
समय बे समय
अपना
सब कुछ अर्पित
छोटे से
गाँव से
शुरु किया सफर
शहर का हो गया कब
रहा हमेशा
इस सब से बेखबर
नाम बदलता
चलता चला गया
स्कूल से कालेज
कालेज से विद्यालय
विद्यालय से
विश्वविद्यालय हो गया
अचानक
सफर के बीच का
एक मुसाफिर
आईडिया अपना
एक दे गया काफिर
स्थापना दिवस
स्थापित का
मनाना शुरु हो गया
एक तारा दो तारा से
पाँच सितारा की तरफ उसे
खिसकाया जाना शुरु हो गया
देश के
विकास की तरफ
दौड़ने की कहानी
उसी बीच
कोई आ कर
सुनाना शुरु हो गया
नाक की खातिर
किसी की नाक को
कुछ खुश्बू सी
महसूस हुई
ना जाने किस मोड़ पर
नाक के
ए बी सी डी से
ए को
उठा ले आने का
जोड़ तोड़
करवाना शुरु हो गया
ए आया
जरा सा भी
नहीं शर्माया
बेशरम का
रोज का ही
जगह जगह
छप कर आना
शुरु हो गया
निमंत्रण
समर्पित जनता को
कब किसने दिया ना जाने
गायों को
अपनी सुबह सुबह
छोड़ने आना शुरु हो गया
कारें स्कूटर घर की
जगह जगह खड़ी होने लगी
गैराज मुफ्त का
सब के काम आना शुरु हो गया
कुत्ते बकरियाँ बन्दर
सब दिखायी देने लगे घूमते
शौक से बिना जंगल का
चिड़ियाघर नजर आना शुरु हो गया
खेल कूद के मैदान में
खुशियाँ बटने लगी
समय समय पर
शादी विवाह
कथा भागवत का पंडाल
बीच बीच में
कोई बंधवाना शुरु हो गया
तरक्की के
रास्ते खुलते चले गये
हर तीन साल में
ऊँचाइयों की ओर
ले जाने के लिये
एक
कुछ और
ऊँचा आ कर
ऊँचाईयाँ
समझाना
शुरु हो गया
क्या कहे
क्या छोड़ दे
कुछ कहता ‘उलूक’ भी
भीड़ में
शामिल हो कर
भीड़ के गीत में
भीड़ का सिर
नजर आने से
पुनर्मूषको भव:
कथा को
याद करते हुऐ
सब कुछ कहने से
कतराना शुरु हो गया
जो भी हुआ
जैसा हुआ
निकल गया दिन
स्थापना का
फिर से
स्थापित हो कर
एक मील का पत्थर
अगले साल के
स्थापना दिवस
की आस लेकर
फिर से उल्टे पाँव
भागना शुभ होता है
समझाना शुरु हो गया ।
3 टिप्पणियाँ:
व्वाहहहहह.....
सुशील भैय्या को नमन...
बेहतरीन...
सादर...
मॉफी चाहूँगा। शहर से बाहर था। और शहर से बाहर खबर रखने की आदत नहीं है। आपने हमेशा उत्साहवर्धन किया है उस लायक नहीं हूँ पता भी है :) । बस इतना ही कहूँगा कुछ लोग पता नहीं कैसे कुछ लोगों की बातें समझ लेते हैं कुछ नहीं भी बातों में होने के बावजूद । एक बार पुन: आभार।
एक सुखद अनुभव सुशील जी को पढ़ना , अपने आप में अलग से । एक अनुशासनप्रिय शिक्षक जैसे जो कम शब्दों में गहरी बातें कह जाते हैं ।
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