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मंगलवार, 18 दिसंबर 2018

2018 ब्लॉग बुलेटिन अवलोकन - 17


नमस्ते namaste

  ब्लॉग  कहती हैं, मेरी जुस्तजू ही मेरी पहचान है  ... और मैं ठिठक जाती हूँ।  


हाथ छुड़ा कर, 
कभी भी एकाकी, 
निर्जन जीवन पथ
पार मत करना ।
ठाकुरजी की उंगली
कस के पकड़े रहना ।
ठोकर लगी भी
तो गिरोगे नहीं ।

जो कनिष्ठा पर
गोवर्धन धारण करते हैं,
पर समर्पित भाव 
को डूबने नही देते ।
वो तर्जनी पर
सुदर्शन चक्र भी
धारण करते हैं,
सौवीं ग़लती पर
क्षमा नहीं करते ।

इन्हीं उंगलियों पर बाँसुरी 
धारण करते हैं,
जपते हैं,
राधा नाम अविराम ।
जितनी मधुर उनकी मुस्कान,
बजाते हैं मुरली 
उतनी ही सुरीली,
मिसरी-सी मीठी,
मानो लोरी ।

और प्रसन्न वदन जब
हौले से हँस कर,
नतमस्तक शीश पर
रखते हैं हस्त कमल,
सकल द्वंद, भव फंद,
हो जाते हैं दूर ।

इसलिए वत्स,
कभी मत छोड़ना,
कस कर 
उंगली पकड़े रहना ।

7 टिप्पणियाँ:

नूपुरं noopuram ने कहा…

पीले फूलों पर सर्दियों की गुनगुनी धूप जैसे पसर जाए और अलसाए... धीमे-धीमे खुमारी छा जाए और सहसा कोई हिला कर जगाए....ठीक वैसी अनुभूति हुई आपके ठिठकने पर....आती रहिएगा रश्मि प्रभा जी । सहर्ष स्वागत है । आभार करें स्वीकार ।

Anmol mathur ने कहा…

अद्भूत! क्या खूब लिखा है। प्रेरणा भी स्वयं ठाकुर ही तो हैं। the most versatile!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

वाह।

नूपुरं noopuram ने कहा…

धन्यवाद जोशीजी और अनमोल सा ।
आभार राष्मीजी ।
किसी की पंक्तियां पढ़ी थीं कभी...

लंबी सड़क हो
सधे हुए कदम हों

और क्या चाहिए ?

समय के साथ जाना ..

मंज़िल तो किसी और ने तय की है,
मुझको तो अपना रास्ता बनाना है ।

नमस्ते ।

Abhilasha ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना

Anuradha chauhan ने कहा…

सुंदर प्रस्तुति शानदार रचना

रश्मि प्रभा... ने कहा…

आँगन की खुशबू चिड़िया को खींच ही लेती है

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