हाथ छुड़ा कर,
कभी भी एकाकी,
निर्जन जीवन पथ
पार मत करना ।
ठाकुरजी की उंगली
कस के पकड़े रहना ।
ठोकर लगी भी
तो गिरोगे नहीं ।
जो कनिष्ठा पर
गोवर्धन धारण करते हैं,
पर समर्पित भाव
को डूबने नही देते ।
वो तर्जनी पर
सुदर्शन चक्र भी
धारण करते हैं,
सौवीं ग़लती पर
क्षमा नहीं करते ।
इन्हीं उंगलियों पर बाँसुरी
धारण करते हैं,
जपते हैं,
राधा नाम अविराम ।
जितनी मधुर उनकी मुस्कान,
बजाते हैं मुरली
उतनी ही सुरीली,
मिसरी-सी मीठी,
मानो लोरी ।
और प्रसन्न वदन जब
हौले से हँस कर,
नतमस्तक शीश पर
रखते हैं हस्त कमल,
सकल द्वंद, भव फंद,
हो जाते हैं दूर ।
इसलिए वत्स,
कभी मत छोड़ना,
कस कर
उंगली पकड़े रहना ।
7 टिप्पणियाँ:
पीले फूलों पर सर्दियों की गुनगुनी धूप जैसे पसर जाए और अलसाए... धीमे-धीमे खुमारी छा जाए और सहसा कोई हिला कर जगाए....ठीक वैसी अनुभूति हुई आपके ठिठकने पर....आती रहिएगा रश्मि प्रभा जी । सहर्ष स्वागत है । आभार करें स्वीकार ।
अद्भूत! क्या खूब लिखा है। प्रेरणा भी स्वयं ठाकुर ही तो हैं। the most versatile!
वाह।
धन्यवाद जोशीजी और अनमोल सा ।
आभार राष्मीजी ।
किसी की पंक्तियां पढ़ी थीं कभी...
लंबी सड़क हो
सधे हुए कदम हों
और क्या चाहिए ?
समय के साथ जाना ..
मंज़िल तो किसी और ने तय की है,
मुझको तो अपना रास्ता बनाना है ।
नमस्ते ।
बहुत ही सुन्दर रचना
सुंदर प्रस्तुति शानदार रचना
आँगन की खुशबू चिड़िया को खींच ही लेती है
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