साधना वैद जी के सधे शब्दों को वर्षों से पढ़ती आ रही हूँ
Sudhinama
पर, फेसबुक पर, ... इसके अतिरिक्त शब्दों और उनकी आवाज़ के माध्यम से उनके साथ संवेदना जैसा रिश्ता है। कुछ रिश्तों को हम नाम नहीं दे सकते, देना भी नहीं चाहिए, वर्ना उसके अर्थ सम्भवतः बदल जाते हैं या कम हो जाते हैं !- उनके शब्दों में, "मैं एक भावुक, संवेदनशील एवं न्यायप्रिय महिला हूँ और यथासंभव खुशियाँ बाँटना मुझे अच्छा लगता है !"
- यह प्रश्नों का संसार भी
- कितना निराला है !
- विश्व के हर कोने में
- कोने में बसे हर घर में
- घर में रहने वाले
- हर इंसान के मन में
- उमड़ते घुमड़ते रहते हैं
- ना जाने कितने प्रश्न,
- बस प्रश्न ही प्रश्न !
- अचरज होता है
- ये छोटे-छोटे प्रश्न भी
- कितनी पाबंदी से
- रिश्तों को परिभाषित कर जाते हैं
- और मन के हर भाव को
- कितनी दक्षता से बतला जाते हैं
- कहीं रिश्तों को प्रगाढ़ बनाते हैं
- तो कहीं पुर्जा-पुर्ज़ा बिखेर कर
- उनकी बलि चढ़ा देते हैं !
- प्रश्नों की भाषा
- स्वरों के आरोह अवरोह
- उछाले गए प्रश्नों की शैली और अंदाज़
- वाणी की मृदुता या तीव्रता
- रिश्तों के स्वास्थ्य को बनाने
- या बिगाड़ने में बड़ी अहम्
- भूमिका निभाते हैं !
- किसने पूछा, किससे पूछा,
- क्यों पूछा, कब पूछा,
- किस तरह पूछा, क्या पूछा
- सब कुछ बहुत मायने रखता है
- ज़रा सा भी प्रश्नों का मिजाज़ बदला
- कि रिश्तों के समीकरण बदलने में
- देर नहीं लगती !
- छोटा सा प्रश्न कितने भावों को
- सरलता से उछाल देता है
- जिज्ञासा, कौतुहल, लगन, ललक,
- प्यार, हितचिंता, अकुलाहट, घबराहट
- चेतावनी, अनुशासन, सीख, फटकार,
- व्यंग, विद्रूप, उपहास, कटाक्ष,
- चिढ़, खीझ, झुंझलाहट, आक्रोश,
- संदेह, शक, शंका, अविश्वास,
- धमकी, चुनौती, आघात, प्रत्याघात
- सारे मनोभाव कितनी आसानी से
- छोटे से प्रश्न में
- समाहित हो जाते हैं और
- इनसे नि:सृत होते अमृत या गरल
- शहद या कड़वे आसव
- कभी रिश्तों की नींव को
- सींच जाते हैं तो कभी
- जला जाते हैं,
- कही रिश्तों के सुदृढ़ महल बना जाते हैं
- तो कहीं मजबूत किले ढहा कर
- खंडहर में तब्दील कर जाते हैं !
- तो मान्यवर अगर जीवन में
- रिश्तों की कोई अहमियत है तो
- प्रश्नों के इस तिलिस्म को समझना
- बहुत ज़रूरी है !
5 टिप्पणियाँ:
वाह। सुन्दर।
साधना दीदी इतनी दूर से भी अपनी-सी लगती हैं....
ना जाने क्यों....
मुझे इतना मान देने के लिए हृदय से आपकी आभारी हूँ रश्मि प्रभा जी ! आपकी पारखी नज़र के सौजन्य से कितने श्रेष्ठ रचनाकारों की कितनी उत्कृष्ट कृतियों को पढ़ने का सुअवसर मिला है उसके लिए कितना भी धन्यवाद कहें कम ही होगा ! मुझ जैसे रज कण को आसमान का तारा बनाने के लिए तहे दिल से आपका शुक्रिया !
आपके इस निश्छल निर्मल प्रेम ने मेरे हृदय को अन्दर तक भिगो दिया है मीना शर्मा जी ! बहुत बहुत प्यार एवं आभार !
बहुत भावपूर्ण सुन्दर शब्दों से रची गई कविता |मन को छू गई |
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