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मृणाल सेन (अंग्रेज़ी:Mrinal Sen, जन्म: 14 मई, 1923, फरीदपुर, अब बांग्लादेश में) भारतीय फ़िल्मों के प्रसिद्ध निर्माता व निर्देशक हैं। इनकी अधिकतर फ़िल्में बांग्ला भाषा में हैं। बंगाली, उड़िया, तेलुगु और हिंदी फ़िल्मों में समान रूप से सक्रिय रहे मृणाल सेन भारत में समानांतार सिनेमा आंदोलन के अग्रणी माने जाते हैं।
अपने समय के सक्रिय वामपंथी रहे मृणाल सेन का जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के फरीदपुर में 14 मई, 1923 को हुआ। कलकत्ता से भौतिकशास्त्र में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मेडिकल रिप्रेंजेंटेटिव, पत्रकारिता और साउंड रिकॉर्डिंग सरीखे कई काम किये। फ़िल्मों में जीवन के यथार्थ को रचने से जुड़े और पढ़ने के शौकीन मृणाल सेन ने फ़िल्मों के बारे में गहराई से अध्ययन किया और सिनेमा पर कई पुस्तकें भी प्रकाशित कीं, जिनमें शामिल हैं- ‘न्यूज ऑन सिनेमा’ (1977) तथा ‘सिनेमा, आधुनिकता’ (1992)।
मृणाल सेन ने फ़िल्मों में निर्देशन की शुरुआत 1956 में बंगाली फ़िल्म ‘रात भोरे’ से की। 1958 में उनकी दूसरी सफल फ़िल्म ‘नील आकाशेर नीचे’ आई। इस महत्वाकांक्षी फ़िल्म में उन्होंने 'भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन' में चीनियों के जापानी साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष से की। 1960 की उनकी फ़िल्म ‘बाइशे श्रावण,’ जो कि 1943 में बंगाल में आये भयंकर अकाल पर आधारित थी और ‘आकाश कुसुम’ (1965) ने एक महान् निर्देशक के रूप में मृणाल सेन की छवि को विस्तार दिया। मृणाल की अन्य सफल बंगाली फ़िल्में रहीं- ‘इंटरव्यू’ (1970), ‘कलकत्ता ‘71’ (1972) और ‘पदातिक’ (1973), जिन्हें ‘कलकत्ता ट्रायोलॉजी’ कहा जाता है।
हिन्दी फ़िल्मों में योगदान
बंगाली फ़िल्मों की तरह ही मृणाल सेन हिन्दी फ़िल्मों में भी समान रूप से सक्रिय दिखते हैं। इनकी पहली हिन्दी फ़िल्म 1969 की कम बजट वाली फ़िल्म ‘भुवन शोम’ थी। फ़िल्म एक अडियल रईसजादे की पिछड़ी हुई ग्रामीण महिला द्वारा सुधार की हास्य-कथा है। साथ ही, यह फ़िल्म वर्ग-संघर्ष और सामाजिक बाधाओं की कहानी भी प्रस्तुत करती है। फ़िल्म की संकीर्णता से परे नये स्टाइल का दृश्य चयन और संपादन भारत में समानांतर सिनेमा के उद्भव पर गहरा प्रभाव छोड़ता है।
मृणाल सेन को भारत सरकार द्वारा 1981 में कला के क्षेत्र में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था। इसके अतिरिक्त 2005 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी प्रदान किया। उनको 1998 से 2000 तक मानक संसद सदस्यता भी मिली। फ़िल्मों के सृजन संसार को आजीवन समर्पित मृणाल सेन ने कई सम्मान और पुरस्कार बटोरे, जिनमें सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' भी शामिल है, जो उन्हें चार बार मिला। अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में भी इन्हें कई पुरस्कार मिले। इनमें फ़िल्म ‘खारिज’ के लिए कान्स में ‘द प्रिक्स ड्यू ज्यूरी’ सम्मान शामिल है। 2004 में मृणाल सेन ने अपनी आत्मकथा 'आलवेज बिंग बोर्न' पूरा किया। 2008 में उन्हें 'ओसियन सिने फैन फेस्टिवल' और 'इंटर नेसनल फ़िल्म फेस्टिवल' द्वारा 'लाइफ़ टाइम अचिएवेमेंट' सम्मान से सम्मानित किया गया।
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
अपने समय के सक्रिय वामपंथी रहे मृणाल सेन का जन्म पूर्वी बंगाल (अब बांग्लादेश) के फरीदपुर में 14 मई, 1923 को हुआ। कलकत्ता से भौतिकशास्त्र में पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने मेडिकल रिप्रेंजेंटेटिव, पत्रकारिता और साउंड रिकॉर्डिंग सरीखे कई काम किये। फ़िल्मों में जीवन के यथार्थ को रचने से जुड़े और पढ़ने के शौकीन मृणाल सेन ने फ़िल्मों के बारे में गहराई से अध्ययन किया और सिनेमा पर कई पुस्तकें भी प्रकाशित कीं, जिनमें शामिल हैं- ‘न्यूज ऑन सिनेमा’ (1977) तथा ‘सिनेमा, आधुनिकता’ (1992)।
मृणाल सेन ने फ़िल्मों में निर्देशन की शुरुआत 1956 में बंगाली फ़िल्म ‘रात भोरे’ से की। 1958 में उनकी दूसरी सफल फ़िल्म ‘नील आकाशेर नीचे’ आई। इस महत्वाकांक्षी फ़िल्म में उन्होंने 'भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन' में चीनियों के जापानी साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष से की। 1960 की उनकी फ़िल्म ‘बाइशे श्रावण,’ जो कि 1943 में बंगाल में आये भयंकर अकाल पर आधारित थी और ‘आकाश कुसुम’ (1965) ने एक महान् निर्देशक के रूप में मृणाल सेन की छवि को विस्तार दिया। मृणाल की अन्य सफल बंगाली फ़िल्में रहीं- ‘इंटरव्यू’ (1970), ‘कलकत्ता ‘71’ (1972) और ‘पदातिक’ (1973), जिन्हें ‘कलकत्ता ट्रायोलॉजी’ कहा जाता है।
हिन्दी फ़िल्मों में योगदान
बंगाली फ़िल्मों की तरह ही मृणाल सेन हिन्दी फ़िल्मों में भी समान रूप से सक्रिय दिखते हैं। इनकी पहली हिन्दी फ़िल्म 1969 की कम बजट वाली फ़िल्म ‘भुवन शोम’ थी। फ़िल्म एक अडियल रईसजादे की पिछड़ी हुई ग्रामीण महिला द्वारा सुधार की हास्य-कथा है। साथ ही, यह फ़िल्म वर्ग-संघर्ष और सामाजिक बाधाओं की कहानी भी प्रस्तुत करती है। फ़िल्म की संकीर्णता से परे नये स्टाइल का दृश्य चयन और संपादन भारत में समानांतर सिनेमा के उद्भव पर गहरा प्रभाव छोड़ता है।
मृणाल सेन को भारत सरकार द्वारा 1981 में कला के क्षेत्र में 'पद्म भूषण' से सम्मानित किया गया था। इसके अतिरिक्त 2005 में 'दादा साहब फाल्के पुरस्कार भी प्रदान किया। उनको 1998 से 2000 तक मानक संसद सदस्यता भी मिली। फ़िल्मों के सृजन संसार को आजीवन समर्पित मृणाल सेन ने कई सम्मान और पुरस्कार बटोरे, जिनमें सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का 'राष्ट्रीय पुरस्कार' भी शामिल है, जो उन्हें चार बार मिला। अंतर्राष्ट्रीय फ़िल्म समारोहों में भी इन्हें कई पुरस्कार मिले। इनमें फ़िल्म ‘खारिज’ के लिए कान्स में ‘द प्रिक्स ड्यू ज्यूरी’ सम्मान शामिल है। 2004 में मृणाल सेन ने अपनी आत्मकथा 'आलवेज बिंग बोर्न' पूरा किया। 2008 में उन्हें 'ओसियन सिने फैन फेस्टिवल' और 'इंटर नेसनल फ़िल्म फेस्टिवल' द्वारा 'लाइफ़ टाइम अचिएवेमेंट' सम्मान से सम्मानित किया गया।
आज मृणाल सेन जी के 95वें जन्म दिवस पर हम सब उन्हें बहुत-बहुत शुभकामनाएँ और स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हैं।
~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
2 टिप्पणियाँ:
मृणाल सेन जी के 95वें जन्म दिवस पर उन्हें शुभकामनाएँ। आभार हर्षवर्धन 'उलूक' के सूत्र को जगह देने के लिये। सुन्दर बुलेटिं।
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
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