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कुन्दन लाल सहगल अथवा के. एल. सहगल (अंग्रेज़ी: Kundan Lal Saigal, जन्म- 11 अप्रॅल, 1904; मृत्यु- 18 जनवरी, 1947) हिन्दी फ़िल्मों में वैसे तो एक बेमिसाल गायक के रूप में विख्यात हैं लेकिन देवदास (1936) जैसी चंद फ़िल्मों में अभिनय के कारण उनके प्रशंसक उन्हें एक उम्दा अभिनेता भी करार देते हैं। कुन्दन लाल सहगल हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार कहे जा सकते हैं। 1930 और 40 के दशक की संगीतमयी फ़िल्मों की ओर दर्शक उनके भावप्रवण अभिनय और दिलकश गायकी के कारण खिंचे चले आते थे।
कुंदन लाल सहगल अपने चहेतों के बीच के. एल. सहगल के नाम से मशहूर थे। उनका जन्म 11 अप्रैल 1904 को जम्मू के नवाशहर में हुआ था। उनके पिता अमरचंद सहगल जम्मू शहर में न्यायालय के तहसीलदार थे। बचपन से ही सहगल का रुझान गीत-संगीत की ओर था। उनकी माँ केसरीबाई कौर धार्मिक क्रिया-कलापों के साथ-साथ संगीत में भी काफ़ी रुचि रखती थीं।
सहगल ने किसी उस्ताद से संगीत की शिक्षा नहीं ली थी, लेकिन सबसे पहले उन्होंने संगीत के गुर एक सूफ़ी संत सलमान युसूफ से सीखे थे। सहगल की प्रारंभिक शिक्षा बहुत ही साधारण तरीके से हुई थी। उन्हें अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ देनी पड़ी थी और जीवन यापन के लिए उन्होंने रेलवे में टाईमकीपर की मामूली नौकरी भी की थी। बाद में उन्होंने रेमिंगटन नामक टाइपराइटिंग मशीन की कंपनी में सेल्समैन की नौकरी भी की।[1]कहते हैं कि वे एक बार उस्ताद फैयाज ख़ाँ के पास तालीम हासिल करने की गरज से गए, तो उस्ताद ने उनसे कुछ गाने के लिए कहा। उन्होंने राग दरबारी में खयाल गाया, जिसे सुनकर उस्ताद ने गद्गद् भाव से कहा कि बेटे मेरे पास ऐसा कुछ भी नहीं है कि जिसे सीखकर तुम और बड़े गायक बन सको।
वर्ष 1930 में कोलकाता के न्यू थियेटर के बी. एन. सरकार ने उन्हें 200 रूपए मासिक पर अपने यहां काम करने का मौक़ा दिया। यहां उनकी मुलाकात संगीतकार आर.सी.बोराल से हुई, जो सहगल की प्रतिभा से काफ़ी प्रभावित हुए। शुरुआती दौर में बतौर अभिनेता वर्ष 1932 में प्रदर्शित एक उर्दू फ़िल्म ‘मोहब्बत के आंसू’ में उन्हें काम करने का मौक़ा मिला। वर्ष 1932 में ही बतौर कलाकार उनकी दो और फ़िल्में ‘सुबह का सितारा’ और ‘जिंदा लाश’ भी प्रदर्शित हुई, लेकिन इन फ़िल्मों से उन्हें कोई ख़ास पहचान नहीं मिली।
वर्ष 1933 में प्रदर्शित फ़िल्म ‘पुराण भगत’ की कामयाबी के बाद बतौर गायक सहगल कुछ हद तक फ़िल्म उद्योग में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। वर्ष 1933 में ही प्रदर्शित फ़िल्म ‘यहूदी की लड़की’, ‘चंडीदास’ और ‘रूपलेखा’ जैसी फ़िल्मों की कामयाबी से उन्होंने दर्शकों का ध्यान अपनी गायकी और अदाकारी की ओर आकर्षित किया।
वर्ष 1935 में शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास पर आधारित पी.सी.बरूआ निर्देशित फ़िल्म ‘देवदास’ की कामयाबी के बाद बतौर गायक-अभिनेता सहगल शोहरत की बुलंदियों पर जा पहुंचे। कई बंगाली फ़िल्मों के साथ-साथ न्यू थियेटर के लिए उन्होंने 1937 में ‘प्रेंसिडेंट’, 1938 में ‘साथी’ और ‘स्ट्रीट सिंगर’ तथा वर्ष 1940 में ‘ज़िंदगी’ जैसी कामयाब फ़िल्मों को अपनी गायिकी और अदाकारी से सजाया। वर्ष 1941 में सहगल मुंबई के रणजीत स्टूडियो से जुड़ गए। वर्ष 1942 में प्रदर्शित उनकी ‘सूरदास’ और 1943 में ‘तानसेन’ ने बॉक्स ऑफिस पर सफलता का नया इतिहास रचा। वर्ष 1944 में उन्होंने न्यू थियेटर की ही निर्मित फ़िल्म ‘मेरी बहन’ में भी काम किया।
अपने दो दशक के सिने करियर में सहगल ने 36 फ़िल्मों में अभिनय भी किया। हिंदी फ़िल्मों के अलावा उन्होंने उर्दू, बंगाली और तमिल फ़िल्मों में भी अभिनय किया। सहगल ने अपने संपूर्ण सिने करियर के दौरान लगभग 185 गीत गाए, जिनमें 142 फ़िल्मी और 43 गैर-फ़िल्मी गीत शामिल हैं। अपनी दिलकश आवाज़ से सिने प्रेमियों के दिल पर राज करने वाले के.एल.सहगल 18 जनवरी, 1947 को केवल 43 वर्ष की उम्र में इस संसार को अलविदा कह गए।
सहगल की आवाज़ की लोकप्रियता का यह आलम था कि कभी भारत में सर्वाधिक लोकप्रिय रहा रेडियो सीलोन कई साल तक हर सुबह सात बज कर 57 मिनट पर इस गायक का गीत बजाता था। सहगल की आवाज़ लोगों की दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बन गई थी। सहगल रवीन्द्र संगीत गाने का सम्मान पाने वाले पहले गैर बांग्ला गायक और भारतीय सिनेमा के पहले सुपर स्टार थे। यह वह समय था जब भारतीय फ़िल्म उद्योग मुंबई में नहीं बल्कि कलकत्ता में केंद्रित था।[3] उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस जमाने में उनकी शैली में गाना अपने आपमें सफलता की कुंजी मानी जाती थी। मुकेश और किशोर कुमार ने अपने कैरियर के आरंभ में सहगल की शैली में गायन किया भी था। कुंदन के बारे में कहा जाता है कि पीढ़ी दर पीढी इस्तेमाल करने के बाद भी उसकी आभा कम नहीं पडती। सहगल सचमुच संगीत के कुंदन थे।
भारत के प्रसिद्ध गायक और अभिनेता के.एल. सहगल के 114वें जन्मदिन (11 अप्रॅल, 2018) पर गूगल ने उन्हें अपने डूडल के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की। गूगल ने डूडल के जरिए के.एल. सहगल को अपने खास अंदाज में याद किया। गूडल ने सहगल के कैरिकेचर के जरिए उन्हें माइक के सामने गाते हुए दिखाया है। कुंदन लाल सहगल भारतीय हिन्दी सिनेमा के पहले सुपरस्टार माने जाते हैं।
आज कुन्दन लाल सहगल जी के 114वें जन्म दिवस पर हम सब उन्हें शत शत नमन करते हैं।
~ आज की बुलेटिन कड़ियाँ ~
आज की बुलेटिन में बस इतना ही कल फिर मिलेंगे तब तक के लिए शुभरात्रि। सादर ... अभिनन्दन।।
6 टिप्पणियाँ:
एक अविस्मरणिय नाम के. एल. सहगल., आभार...
सुन्दर प्रस्तुति। अभार हर्षवर्धन 'उलूक' के सौ पाँच सौ हजार को जगह देने के लिये।
आभार। सशक्त संकलन
महान शकसियत पर ब्लौग बुलेटिन......
साथ ही मुझे भी स्थान मिला.....
आभार।
के. एल. सहगल के जीवन और उपलब्धियों को बताता सुंदर अग्र आलेख ! पठनीय सूत्रों से सजा बुलेटिन, आभार !
बेहतरीन प्रस्तुति.. मेरी रचना(उस रोज हम खुशनसीब होते हैं) को स्थान देने के लिये धन्यवाद
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