अक्सर, हर बार
अपने स्नेह के वशीभूत वह चुप रह जाती रही
बहस किया, फिर चुप हो गई ...
जब भी वह कहती ,
फलां व्यक्ति ने ऐसा किया
अपने खामोश हो जाते
फिर कहते ,
इस बात को अपने तक रखो
वे बड़े हैं
उनसे जुड़े और रिश्ते हैं
किस किससे रिश्ता तोड़ लें !
वह चुप रहती
लोग कहते ,
ये क्या मनहूसियत है
हँसो
ऐसा क्या हो गया कि ...
मातमी चेहरा बना रखा है
जैसे कोई मर गया है !!!
वह हँसती ...
बिना वजह ... निःसंदेह, अपनी स्थिति पर
एक एक हँसी
और अपनों की ख़ामोशी ने
गलत को बढ़ावा दिया
स्नेह का हवाला दे देकर
उसे ही ग़लत बना दिया !
धीरे धीरे वह चिंगारी बनी
फिर धधकता लावा।
अब अपने कुछ कहते नहीं
लेकिन उनकी उम्मीदें आज भी यही है
कि ग़लत को मान लिया जाए
आगे बढ़कर हाथ मिला लिया जाए
बात को आई गई किया जाए ...
ऐसे अपने प्रायः हर घर में मौजूद हैं, थोड़ा बहुत सबके भीतर ,
हादसे तो होंगे न !!!
अल्प विराम: ये मेरा जीवन दीप
"मेरा मन": तुम जानो या मैं
हरिहर: महिला असुरक्षा की व्यापकता
उलूक टाइम्स: उसी समय लिख देना जरूरी होता है जिस समय ...
कठुआ और उसके मायने : अफवाहों से पीड़ित ... - काव्य सुधा
ज़ख्म…जो फूलों ने दिये: स्त्रियों के शहर में आज जम ...
सरोकार: तुम प्रकृति हो
sapne(सपने): मन का हो उपचार
शेष फिर...: स्त्री होना
आबे दरिया हूं मैं,कहीं ठहर नहीं पाउंगा,
मेरी फ़ितरत में है के, लौट नहीं आउंगा।
मेरी फ़ितरत में है के, लौट नहीं आउंगा।
जो हैं गहराई में, मिलुगां उन से जाकर ,
तेरी ऊंचाई पे ,मैं कभी पहुंच नहीं पाउंगा।
तेरी ऊंचाई पे ,मैं कभी पहुंच नहीं पाउंगा।
दिल की गहराई से निकलुंगा ,अश्क बन के कभी,
बद्दुआ बनके कभी, अरमानों पे फ़िर जाउंगा।
बद्दुआ बनके कभी, अरमानों पे फ़िर जाउंगा।
जलते सेहरा पे बरसुं, कभी जीवन बन कर,
सीप में कैद हुया ,तो मोती में बदल जाउंगा।
सीप में कैद हुया ,तो मोती में बदल जाउंगा।
मेरी आज़ाद पसन्दी का, लो ये है सबूत,
खारा हो के भी, समंदर नहीं कहलाउंगा।
खारा हो के भी, समंदर नहीं कहलाउंगा।
मेरी रंगत का फ़लसफा भी अज़ब है यारों,
जिस में डालोगे, उसी रंग में ढल जाउंगा।
जिस में डालोगे, उसी रंग में ढल जाउंगा।
बहता रहता हूं, ज़ज़्बातों की रवानी लेकर,
दर्द की धूप से ,बादल में बदल जाउंगा।
दर्द की धूप से ,बादल में बदल जाउंगा।
बन के आंसू कभी आंखों से, छलक जाता हूं,
शब्द बन कर ,कभी गीतों में निखर जाउंगा।
शब्द बन कर ,कभी गीतों में निखर जाउंगा।
मुझको पाने के लिये ,दिल में कुछ जगह कर लो,
मु्ठ्ठी में बांधोगे ,तो हाथों से फ़िसल जाउंगा।
मु्ठ्ठी में बांधोगे ,तो हाथों से फ़िसल जाउंगा।
6 टिप्पणियाँ:
बहुत बढ़िया बुलेटिन ........हार्दिक आभार दी
Bahut Badhiya Buletin ...
सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति। सुन्दर सूत्रों के बीच 'उलूक' की बकबक को भी जगह देने के लिये आभार रश्मि प्रभा जी।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
bahut sundar sarthak buletin hardik dhnyavad didi
बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति
एक टिप्पणी भेजें
बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!