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गुरुवार, 19 अप्रैल 2018

ग़लत और सही के बीच


अक्सर, हर बार 
अपने स्नेह के वशीभूत वह चुप रह जाती रही 
बहस किया, फिर चुप हो गई   ... 
जब भी वह कहती , 
फलां व्यक्ति ने ऐसा किया 
अपने खामोश हो जाते 
फिर कहते ,
इस बात को अपने तक रखो 
वे बड़े हैं 
उनसे जुड़े और रिश्ते हैं 
किस किससे रिश्ता तोड़ लें !
वह चुप रहती 
लोग कहते ,
ये क्या मनहूसियत है 
हँसो 
ऐसा क्या हो गया कि  ... 
 मातमी चेहरा बना रखा है 
जैसे कोई मर गया है !!!
वह हँसती  ... 
बिना वजह  ... निःसंदेह, अपनी स्थिति पर 
एक एक हँसी 
और अपनों की ख़ामोशी ने 
गलत को बढ़ावा दिया 
स्नेह का हवाला दे देकर 
उसे ही ग़लत बना दिया !
धीरे धीरे वह चिंगारी बनी 
फिर धधकता लावा। 
अब अपने कुछ कहते नहीं 
लेकिन उनकी उम्मीदें आज  भी यही है 
कि ग़लत को मान लिया जाए 
आगे बढ़कर हाथ मिला लिया जाए 
बात को आई गई किया जाए  ... 

ऐसे अपने प्रायः हर घर में मौजूद हैं, थोड़ा बहुत सबके भीतर , 
हादसे तो होंगे न !!!


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आबे दरिया हूं मैं,कहीं ठहर नहीं पाउंगा,
मेरी फ़ितरत में है के, लौट नहीं आउंगा।
जो हैं गहराई में, मिलुगां उन से जाकर ,
तेरी ऊंचाई पे ,मैं कभी पहुंच नहीं पाउंगा।
दिल की गहराई से निकलुंगा ,अश्क बन के कभी,
बद्दुआ बनके कभी, अरमानों पे फ़िर जाउंगा।
जलते सेहरा पे बरसुं, कभी जीवन बन कर,
सीप में कैद हुया ,तो मोती में बदल जाउंगा।
मेरी आज़ाद पसन्दी का, लो ये है सबूत,
खारा हो के भी, समंदर नहीं कहलाउंगा।
मेरी रंगत का फ़लसफा भी अज़ब है यारों,
जिस में डालोगे, उसी रंग में ढल जाउंगा।
बहता रहता हूं, ज़ज़्बातों की रवानी लेकर,
दर्द की धूप से ,बादल में बदल जाउंगा।
बन के आंसू कभी आंखों से, छलक जाता हूं,
शब्द बन कर ,कभी गीतों में निखर जाउंगा।
मुझको पाने के लिये ,दिल में कुछ जगह कर लो,
मु्ठ्ठी में बांधोगे ,तो हाथों से फ़िसल जाउंगा। 

6 टिप्पणियाँ:

vandana gupta ने कहा…

बहुत बढ़िया बुलेटिन ........हार्दिक आभार दी

समयचक्र ने कहा…

Bahut Badhiya Buletin ...

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति। सुन्दर सूत्रों के बीच 'उलूक' की बकबक को भी जगह देने के लिये आभार रश्मि प्रभा जी।

Meena sharma ने कहा…

बहुत सुंदर प्रस्तुति

shashi purwar ने कहा…

bahut sundar sarthak buletin hardik dhnyavad didi

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति

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