रूह हूँ
शेष हूँ, शेष रहूँगी .... क्रमशः भी कह सकते हो !
कभी हवा में तैरती हूँ
कभी कुंए से आवाज़ देती हूँ
कभी लम्बी साँसें लेती हूँ
अपने होने का एहसास देती हूँ खुद को।
पानी पर चलती हूँ
लेती हूँ डुबकियाँ
खाई में तलाशती हूँ अपनी चीजें
जो होती हैं किसी और के पास
मैं देखती हूँ
सोचती हूँ
मुक्त होना चाहती हूँ
लेकिन ...
शेष हूँ, शेष रहूँगी
क्रमशः ...
5 टिप्पणियाँ:
आदरणीय दीदी
सादर नमन
अच्छी बुलेटिन
सादर
बहुत सुंदर बुलेटिन प्रस्तुति
सुन्दर बुलेटिन।
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति
आपको पोस्ट पसंद आई, स्वागत के साथ आभारी हूँ !
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