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मंगलवार, 3 अप्रैल 2018

न्यायालय के विरोध की राजनीति : ब्लॉग बुलेटिन


नमस्कार मित्रो,
कल, 2 अप्रैल को भारत बंद का ऐलान कुछ दलित संगठनों द्वारा किया गया था. इन बंद को कुछ राजनैतिक दलों ने भी समर्थन दिया. ये बंद उच्चतम न्यायालय के उस आदेश के खिलाफ था, जिसमें न्यायालय ने कहा था कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 के अंतर्गत आरोपी व्यक्ति की गिरफ़्तारी न की जाये बल्कि उसे जमानत दी जाये. आदेश में ऐसे किसी मामले में न केवल गिरफ़्तारी को रोका गया है बल्कि एफआईआर लिखने को भी प्रतिबंधित किया गया है. एफआईआर दर्ज करने के पहले डीएसपी द्वारा ऐसे मामले की जाँच की जाएगी. ऐसे मामलों में किसी अधिकारी की गिरफ़्तारी के पहले उसके उच्चाधिकारियों से अनुमति लेनी होगी और किसी सामान्य व्यक्ति के सन्दर्भ में एसएसपी से ऐसी अनुमति चाहिए होगी. आन्दोलन में लगे संगठनों और राजनैतिक दलों की मांग थी कि अनुसूचित जाति-जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1989 में उच्चतम न्यायालय द्वारा किये संशोधन को वापस लिया जाये और एक्ट को पहले की तरह लागू किया जाए.


बहरहाल, किसी भी निर्णय का विरोध करना लोकतान्त्रिक प्रक्रिया है लेकिन इस विरोध के बाद कुछ अलग आयामों पर विचार करने की आवश्यकता है. पहली बात ये कि क्या अब विरोध की राजनीति में न्यायालयों को भी लपेटा जायेगा? यदि आदेश का विरोध था तो फिर जगह-जगह आगजनी, हिंसा, हत्या क्यों? एकबारगी मान भी लिया जाये कि न्यायालय के वर्तमान आदेश से यह अधिनियम कमजोर हो जायेगा तो क्या अभी तक वाकई इस अधिनियम को मजबूत करने वाले कदम उठाये गए हैं? क्या अभी तक इस अधिनियम के द्वारा दुर्भावना के चलते गैर-दलित व्यक्ति को फँसाया नहीं गया है? यदि भारत बंद के ऐलान, उसमें दलित संगठनों के शामिल होने के साथ-साथ राजनैतिक दलों का शामिल हो जाना अलग कहानी तो कहता ही है, इसके अलावा देश के कई स्थानों पर हिंसात्मक कदम उठाये जाने ने इस विरोध की मानसिकता को उजागर किया है. न्यायालय के आदेश के विरोध की आड़ लेकर जहाँ राजनैतिक दल भाजपा, मोदी का विरोध करने की राजनीति करने में लगे थे. इसी तरह दलित संगठनों ने इस विरोध के द्वारा अपने आक्रोश को दर्शाया है. समाज में एक लम्बे समय से दलित संगठनों ने जिस तरह से सवर्ण-विरोधी कार्यों को प्रसारित, प्रचारित किया है कल उसी का प्रदर्शन किया गया था. हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान, सवर्णों की संपत्तियों को नुकसान पहुँचाना आदि इसी कारण हुआ.


इस पूरे मामले में न तो उच्चतम न्यायालय को शांत रहने की आवश्यकता है और न ही सरकार को ख़ामोशी अपनानी चाहिए. जिस समय से यह अधिनियम पारित हुआ है तबसे इसके बहुसंख्यक मामले ईर्ष्या, द्वेष के चलते सामने आये हैं. ऐसे में अधिनियम पूरी तरह से उचित व्यक्ति के साथ न्याय नहीं कर पा रहा था. अब जबकि न्यायालय के आदेश को भी सार्वजनिक विरोध का सामना करना पड़ रहा है, तब स्थिति चिंतनीय है. यदि इन अराजक तत्त्वों पर कार्यवाही नहीं की जाती तो इससे कैसे इंकार किया जा सकता है कि कल को यही उपद्रवी घरों में घुसकर हंगामा नहीं करेंगे? संभव है कि कल को यही भीड़ न्यायालयों में घुसकर हिंसात्मक प्रदर्शन करे? ये भी हो सकता है कि भीड़ का आक्रोश कल को संसद परिसर में भी घुस जाए?

दशकों से चली आ रही आरक्षण व्यवस्था का मूल्यांकन फिर आवश्यक हो गया है. इसी तरह दलितों की सुरक्षा को बने अधिनियम के लिए उच्चतम न्यायालय के आदेश को भली-भांति समझने की, समझाने की जरूरत है. यदि हमारे नीति-नियंता ऐसी अनियंत्रित भीड़ को उसकी हिंसा का जवाब नहीं दे सके तो आने वाला समय न केवल समाज के लिए वरन आम इन्सान के लिए, संसद के लिए, संविधान के लिए, न्यायालय के लिए, देश के लिए खतनाक सिद्ध होंगे. आईये, ऐसी किसी भी भयावहता की स्थिति से निपटने के उपाय खोजते हुए आज की बुलेटिन की ओर चलें.

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8 टिप्पणियाँ:

yashoda Agrawal ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन
अग्रलेख चिन्ता उत्पन्न करता है
सादर

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुन्दर बुलेटिन ।

Amit Mishra 'मौन' ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन बुलेटिन
मेरी रचना को स्थान देने के लिये हार्दिक आभार आपका🙏

Roli Abhilasha ने कहा…

आज के बुलेटिन के माध्यम से बहुत ही संगीन प्रश्न उठाया है आपने। मूल्यांकन आवश्यक है और पालन कड़ाई से होना चाहिए।
मान्यवर मेरी रचनाओं को मान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद। अभी अन्य रचनाओं तक नहीं पहुंची हूँ, पहुँचते ही अपनी प्रतिक्रिया से अवगत कराऊँगी।

Jyoti Dehliwal ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन। अग्रलेख में आपने बहुत ही ज्वलंत मुद्दा उठाया हैं। उस पर विचार विमर्श होना चाहिए। मेरी रचना को स्थान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

कविता रावत ने कहा…

समाज का कोढ़ है आरक्षण ...............
बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

अपने अस्तित्व की अंतिम जंग लड़ते दलों का घिनौना दांव ! सत्ता हेतु बेरोजगार युवाओं को भड़का कर अपनी उपस्थिति दर्शाने का कुत्सित कुचक्र

~Sudha Singh Aprajita ~ ने कहा…

बहुत ही बेहतरीन बुलेटिन आरक्षण देश को दीमक की तरह चाट रहा है. आरक्षण के चलते देश की तरक्की मुश्किल है. बहरहाल
मेरी रचना को स्थान देने के लिये आपका हार्दिक आभार.

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