ज़िन्दगी तुम्हारी भी तय थी
ज़िन्दगी हमारी भी तय थी
कभी तुमने शकुनि को नहीं पहचाना
कभी मैंने
पर दाव तो जीने के हमदोनों ने खेले थे !!!
भूमिका, कहानी, उपसंहार ...
कोई क्या कर लेगा ये जानकर
कि तुम्हारे पास प्रेम के पासे थे
सामनेवाले ने छल के पासे फेंके
कुरुक्षेत्र तो बन ही गया न
और अभिमन्यु ... !!!
अब जयद्रथ को मारो
या चिता सजाओ
घटनायें तो घट चुकीं
...
और सुकून ???
कहाँ है ?
कब तक है ?
इस मंथन से अलग चलना ही है
जब तक निर्धारित है
जिस तरह निर्धारित है
!
5 टिप्पणियाँ:
तय जिंदगी,,, सुंदर भाव एवम् ब्लॉग पोस्ट लिंक
तय जिंदगी,,, सुंदर भाव एवम् ब्लॉग पोस्ट लिंक
सुन्दर बुलेटिन ।
सुन्दर
बढ़िया बुलेटिन दीदी |
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