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शुक्रवार, 25 मार्च 2016

एक बार पुकार तो सही !




तेरे मटके की सोंधी सी खुशबू
और इश्क़ का पानी
चनाब में बुलाता है तैरने को

आ जाऊँगी पाजेब उतारकर
एक बार हीर' कहकर बुला
ओ रांझे एक बार हीर' कहकर पुकार तो सही …
इश्क़ दा आगे कोई डर नहीं
वारिस शाह की आँखों में छुप जायेंगे
लिखता रहेगा वो प्रेम कहानी
सदियों पहले मिलकर भी मिल न पाये
ज़माना कुछ बदल गया है
एक बार पुकार तो सही !

बस एक बार - ज़िन्दगी…


अब ये पड़ाव अपना होकर रहेगा
सोचता रहता है आदमी
इस शहर से उस शहर
इस गली से उस गली
.... पड़ाव बदलते रहते हैं
एक घर,
थोड़ी जमीन
खरीद भी लो
तो भी
शहर, गली, पड़ाव
बदलते जाते हैं
खानाबदोश सी ज़िन्दगी से बढ़कर
नहीं होती ज़िन्दगी !
कभी अपने विस्तार के लिए
कभी बच्चों के विस्तार के लिए
घर,
शहर छोड़कर
नए शहर में
नई पहचान के लिए बढ़ना होता है
छत अंततः किराये की होती है
असली घर वही होता है
जहाँ सब इकट्ठे होते हैं
…… जहाँ नींद - वहाँ सपने
वही घर .... जहाँ सुबह
खानाबदोश सी होती है सुबह
कभी गाँव में
कभी पहाड़ों पर
कभी सागर के किनारे
कभी अजनबी रास्तों पर ....
पैसा पैसा जोड़कर
व्यवहारिक सोच का परिणाम
मेरा' है के सुकून के लिए
होता है एक घर
और फिर
पूरी उम्र किराया बैंक को !
अंततः यही सुकून
बनता है बँटवारे का मुद्दा
और किसी मुहाने पर हो जाती है मौत …
आनन-फानन में
बगैर किसी पसंद के
मिलता है - श्मशान का कोना
किसी खानाबदोश की तरह

और कहानी खत्म !!!

रश्मि .... 

7 टिप्पणियाँ:

कविता रावत ने कहा…

शहर, गली, पड़ाव
बदलते जाते हैं
खानाबदोश सी ज़िन्दगी से बढ़कर
नहीं होती ज़िन्दगी !
.............................
अंततः यही सुकून
बनता है बँटवारे का मुद्दा
और किसी मुहाने पर हो जाती है मौत …
आनन-फानन में
बगैर किसी पसंद के
मिलता है - श्मशान का कोना
किसी खानाबदोश की तरह

और कहानी खत्म !!!

सच यही जिंदगी है फिर भी मेरा मेरा करते करते अंत में सब यही रह जाता है .

बहुत अच्छी बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

क्या बात है! आपका यह अन्दाज़ ज़िन्दगी को एक नये आईने की तरह दिखलाता है!

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है जीवन का सच !

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है जीवन का सच !

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बढ़िया ।

skashliwal ने कहा…

Uttam ....

शिवम् मिश्रा ने कहा…

जय हो दीदी !!

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