नमस्कार मित्रो
आज का दिन, 23
मार्च अपने आपमें बहुत ख़ास है. आज शहीद दिवस है, लोहिया जी का
जन्मदिन है और इस वर्ष आज ही होली मनाई जा रही है. ये बात तो सभी लोग जानते हैं कि
लोहिया जी ने जमीनी राजनीति का एक मानक स्थापित किया और इसी के चलते वे आज भी
राजनीति में एक स्तम्भ के रूप में स्वीकारे जाते हैं. लोहिया जी के बारे में इस
तथ्य को भी सभी को ज्ञात होना चाहिए कि उन्होंने ने अपना जन्मदिन कभी इसलिए नहीं
मनाया क्योंकि इसी दिन भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को फाँसी दी गई थी. ये अपने
आपमें उनके प्रति लोहिया जी की श्रद्धांजलि है. एक तरफ राजनीति में ऐसे प्रेरक
व्यक्तित्व हैं दूसरी तरफ वर्तमान में ऐसे राजनैतिक व्यक्तित्व हैं जो शहीद भगत
सिंह के सापेक्ष देशद्रोही मामले के आरोपी को खड़ा कर रहे हैं. जेएनयू मामले में
देशद्रोह के आरोपी कन्हैया, जो सशर्त जमानत पर रिहा होने के बाद से केंद्र सरकार-विरोधी
तत्त्वों द्वारा जबरिया हीरो बनाया जा रहा है, के देशद्रोही होने न होने को अदालत
में साबित किया जायेगा किन्तु जिस तरह से उसे भगत सिंह के समान बताया गया वो
निंदनीय है. एक पल को कन्हैया-समर्थकों की इस दलील को स्वीकार भी लिया जाये कि
जेएनयू में लगने वाले देश-विरोधी नारों में उसकी सहभागिता नहीं थी; माना कि उसने
नारे नहीं लगाये थे मगर इस बात से किसी को इनकार नहीं है कि उस शाम उस संस्था में
देश-विरोधी नारे लगे; देश की बर्बादी के नारे लगे; अफज़ल को शहीद घोषित करने के
नारे लगे. ठीक इसी बिंदु पर आकर कन्हैया-समर्थकों से मात्र एक सवाल कि यदि ऐसे
नारे भगत सिंह के सामने लगे होते तो उनकी प्रतिक्रिया क्या होती?
ऐसे हालात में अक्सर
दिमाग संज्ञा-शून्य हो जाता है कि आखिर देश की राजनीति, राजनीतिज्ञ किस दिशा में
जा रहे हैं? सरकार-विरोध, प्रधानमंत्री-विरोध करते-करते ये लोग देश-विरोध में
संलिप्त हो गए हैं. कितनी बड़ी विडम्बना है कि एक तरफ पाकिस्तान में भगत सिंह की
सजा के विरोध में अदालत में सुनवाई पुनः आरम्भ कर उनके प्रति सम्मान प्रदर्शित
किया जा रहा है, दूसरी तरफ यहाँ भारत में किसी भी ऐरे-गैरे से उनकी समानता कर भगत
सिंह का अपमान किया जा रहा है. लोगों का शांत रह जाना ऐसे माहौल को और बल देता है.
काश कि लोग अपनी-अपनी ख़ामोशी को तोड़कर देश-विरोधी ताकतों को मुंहतोड़ जवाब दें.
अंत में शहीदों को
नमन करते हुए आप सभी को पावन पर्व होली की शुभकामनाओं सहित आज की बुलेटिन आपके समक्ष
पेश है.
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3 टिप्पणियाँ:
शहीदों को उस
जमाने के
नमन जरूरी है
ढोंगियों को
इस जमाने के
ढोना मजबूरी है
फिर भी मनायें
आइये होली
सतरंगी यादों
के साथ कुछ
पुरानी पुरानी
रंगों में मिलावट
आज के दिन कर
रहा है जमाना
मिल बाँट कर
गिरगिट हो लेना
आज के समय
की सबसे बड़ी
जी हजूरी है :)
सुन्दर बुलेटिन सुन्दर प्रस्तुति ।
अति उत्तम प्रस्तुति। धन्यवाद।
शहीदों को नमन!
सार्थक सामयिक प्रस्तुति हेतु आभार!
सभी को होली की हार्दिक शुभकामनाएं!
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