नमस्कार
मित्रो,
फ़ैजाबाद के
डबल लॉक में रखे गुमनामी बाबा के सामानों के खुलासे ने उम्मीद जगाई है कि शायद
नेताजी का सच अब सामने आ सके. सूचीबद्ध किये गए सामानों में परिवार के फोटो,
अनेक पत्र, न्यायालय से मिले समन की वास्तविक प्रति
से उनके नेताजी के होने का संदेह पुष्ट होता है. इसी तरह गोल फ्रेम के चश्मे,
मँहगे-विदेशी सिगार, नेताजी की पसंदीदा ओमेगा-रोलेक्स
की घड़ियाँ, जर्मनी की बनी दूरबीन-जैसी कि आज़ाद हिन्द फ़ौज अथवा
नेताजी द्वारा प्रयुक्त की जाती थी, ब्रिटेन का बना ग्रामोफोन,
रिकॉर्ड प्लेयर देखकर सहज रूप से सवाल उभरता है कि एक संत के पास इतनी
कीमती वस्तुएँ कहाँ से आईं? इन सामानों के अलावा आज़ाद हिन्द फ़ौज
की एक यूनिफॉर्म, एक नक्शा, प्रचुर साहित्यिक
सामग्री, अमरीकी दूतावास का पत्र, नेताजी
की मृत्यु की जाँच पर बने शाहनवाज़ और खोसला आयोग की रिपोर्टें आदि लोगों के विश्वास
को और पुख्ता करती हैं.
फ़ैजाबाद के रामभवन
में प्रवास के दौरान किसी के भी सामने प्रत्यक्ष रूप में न आने वाले ‘भगवन’ अथवा ‘गुमनामी बाबा’
के देहांत की खबर वर्ष 1985 में आग की तरह समूचे
फ़ैजाबाद में फ़ैल गई और लोग उनके अंतिम दर्शनों के लिए अत्यंत उत्सुक थे. ऐसे में भी
उस रहस्यमयी व्यक्तित्व का रहस्य बनाये रखा गया और उनका अंतिम संस्कार सरयू नदी किनारे
कर दिया गया. देश का सच्चा सपूत आज़ादी के बाद भी भले ही गुमनाम बना रहा किन्तु उनकी
भतीजी ललिता बोस और देशवासी रामभवन में मिले सामानों के आधार पर गुमनामी बाबा को ही
नेताजी स्वीकारते रहे. ये महज संयोग नहीं कि इनके लम्बे संघर्ष पश्चात् सरकार द्वारा
गुमनामी बाबा के 2761 सामानों की एक सूची बनाई गई जो फैजाबाद
के सरकारी कोषागार में रखे हुए हैं. रामभवन के उत्तराधिकारी एवं नेताजी सुभाषचंद्र
बोस राष्ट्रीय विचार केंद्र के संयोजक शक्ति सिंह द्वारा 13 जनवरी
2013 को याचिका दाखिल कर अनुरोध किया कि भले ही ये सिद्ध न हो
पाए कि गुमनामी बाबा ही नेताजी थे किन्तु गुमनामी बाबा के सामानों के आधार पर कम से
कम ये निर्धारित किया जाये कि वो रहस्यमयी संत आखिर कौन था? न्यायालय
के आदेश पश्चात गुमनामी बाबा के 24 बड़े लोहे के डिब्बों और 8 छोटे डिब्बों अर्थात कुल 32 डिब्बों में संगृहीत सामानों
को जब सामने लाया गया तो देश के एक-एक नागरिक को लगने लगा कि गुमनामी बाबा ही नेताजी
थे.
हाल फिलहाल तो
गुमनामी बाबा का सामान सूचीबद्ध करके पुनः डबल लॉक में है. यदि न्यायालयीन आदेश पर
इस सामान को संग्रहालय के रूप में सार्वजनिक किया गया तो ये भी लोगों के विश्वास की
जीत ही होगी किन्तु अंतिम विजय का पर्दा उठाना अभी शेष है. इस आशा और विश्वास के
साथ कि इस रहस्य से पर्दा उठे, आज की बुलेटिन का आप सब आनन्द उठायें. जयहिन्द...
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(सभी चित्र गूगल छवियों के द्वारा विभिन्न वेबसाइट से साभार ली गई हैं)