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सोमवार, 29 फ़रवरी 2016

जय जय संतुलन

सभी ब्लॉगर मित्रों को राम राम....

आज अपनी बात कहती हूँ आयुष झा आस्तिक के शब्दों के माध्यम से....

मेरी कमीज के बटन में 
शून्य चार!
चार आसमान,
पृथ्वी चार।
बटन रणभूमि,
चार घूड़सवार!
बटन तलवार,
बटन ढ़ाल।
पृथ्वी की
नकेल कसती एक सूई!
युद्ध पत्थर,
चार योद्धा छुई-मुई।
एक जोड़े आसमान के
कंधे पर पालो,
ऐ जोतते हुए हल बटोही,
पीठ पर एक पृथ्वी उठा लो।
तीन पृथ्वी,
तीन चंदा,
एक चूल्हा!
एक चूल्हा,चार योद्धा,एक थाली!
एक पंक्षी,एक वृक्ष और चार आरी।
दो आसमान जैसे
एक सिक्का के दो पहलू!
दो आसमान जैसे
एक तराजू का दो पलरा।
गर एक ऊपर,
एक नीचे!
गर एक आगे,
एक पीछे।
सात ढ़िबरी तेल सठा कर
संतुलन खोजो,
नदी/नाली से पइन उपछ कर
समंदर में बोझो।
उफ्फ संतुलन,
हाय संतुलन,
भाय-भाय संतुलन!
खोजकर्ताओं की
ऐसी-तैसी,
जय जय संतुलन...
-आयुष

एक नज़र आज के बुलेटिन पर









आज की बुलेटिन में बस इतना ही मिलते है फिर इत्तू से ब्रेक के बाद । तब तक के लिए शुभं।

6 टिप्पणियाँ:

कविता रावत ने कहा…

आयुष झा जी सुन्दर रचना-सह सार्थक बुलेटिन प्रस्तुति हेतु आभार!

kuldeep thakur ने कहा…

सुंदर प्रसारण...
आभार मुझे स्थान दिया...
आभार।

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बढ़िया प्रस्तुति ।

Barthwal ने कहा…

सुंदर कविता आयुष झा जी की... आभार किरण 'मेरा चिंतन' को शामिल करने हेतू

शिवम् मिश्रा ने कहा…

वाह ... बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति किरण जी ... आभार |

MahavirUttranchali ने कहा…

All in One (गागर में सागर)

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