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सोमवार, 8 फ़रवरी 2016

एक थी चिरैया

सभी ब्लॉगर मित्रों को राम राम.
...
आज आपको एक सच्ची कहानी बावरी चिरैया की सुना रही हूँ ........एक थी चिरैया, अरे थी नहीं है एक चिरैया, खुराफाती, मस्तमौला सी, बोलने पे आवे तो अच्छे अच्छों कि धज्जियां उड़ा देवे, बोले तो मुहं के आगे किवाड़ न चिरैया के, जो आया दिल, दिमाग, फेफड़े में सब वमन कर हलकी हो लेना चाहती वो, अब चाहे सेहत से भरी पूरी है चिरैया बिलकुल उससे क्या, ऐसे होना तो खाते पीते खानदान से होने की निशानी ! उसे लगता खरे होना ही जीवन का एक मात्र ध्येय है, क्यूकी सोना भी तो खरा है होता, लेकिन बाबरी ये न जानती थी, कि सोने के आभूषण बनाने के लिए उसमें भी मिलावट करनी पड़ती है, और आभूषणों के चलते ही सोना इतनी डिमांड में.....

तो ये चिरैया ऐसी ही भावुक मूढमति सी थी, दिल कि बहुत साफ़ सहज थी, इसीलिए किसी को मन से अपना मान लेवे थी, तो उसके लिए जी जान लुटाने को तत्पर हो जाती ये, बस आपकी किसी के प्रति जरा भी खुडक हो, या कोई आपसे दुश्मनी कर लेवे तो इस बाबरी चिरैया के साथ बहनापा रिश्तापा गाँठ लो, और फिर अपना दर्द मगरमच्छ से आसूओं के साथ परोस दो इसके समक्ष, साथ में इस चिरैया को वास्ता देना न भूलो भारत कि वीरांगनाओ का, जिनके लिए किसी का भी दर्द पीड़ा सबसे बड़ी, बस फिर क्या है, इतनी सारी वीरांगनाओ में से किसी एक कि आत्मा तुरंत प्रवेश कर जाती इस बावरी के शरीर में, और चिरैया आपकी दुश्मनी का निर्वाह करने में जुट जाती जी जान से, और दुश्मन भौंचक्का कि ये कहाँ से आन टपकी ?
बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना सी.....


और ये बावरी आपके फटे में टांग ही नहीं अपनी भरी-पुरी काया समेत पूरा प्रवेश कर जाती है, पर है बहुत ही ईमानदार ये बावरी, जिस तरह रिश्ता जी जान से निभाती है, उसी तरह दुश्मनी भी पूरी शिद्दत से है निभाती, इसे लगता है कि, इस मिटटी काया में २०६ हड्डियाँ मॉस के ढाँचे को सबल प्रदान करती, वो भी मृत्यु उपरांत गंगा में विसर्जित हो जाती, और आत्मा भी चोला बदल जाती, यानी कि मरने के बाद खाली हाथ आये खाली हाथ जाना किवदंती प्रचलित, लेकिन ये बावरी अपनी धुन की पक्की अपने साथ दुश्मनी की गठरी लेकर ही जहां से रुक्सती चाहती ! ताकि एक नई विचारधारा कि जन्मदात्री कहलाये कि इस संसार से जाते हुए इंसान कुछ लेकर चाहे न जा पावे, पर दुश्मनी कि गठरी निश्चित ही ले जा सकता साथ अपने !

दूसरी ख़ास बात या कहे चिरैया की दूसरी कहावत आज के समय में जहां एक हाथ दूसरे को कानोकान खबर ना होने है देता कि क्या लिया और क्या दिया ? यह बावरी किसी में जरा सी भी संभावना देख उसे प्रोत्साहित करती दिलो जां से, फिर चाहे प्रोत्साहन पाने वाला इसके ही कंधे पर पाँव रख इसके ही सर पर खड़े हो ता धिन धिन ना ही क्यों न कर जावे, इसे लगता नेकी कर कुँए में डाल, ये भूल जाती आज जमाना नेकी करने वाले को ही लात मार कुँए में पंहुचा देना चाहता है, यह सोचती है आपका काम और काबिलियत है बोलता, यह भोली न जानती आजकल आपका चाम, चार्म और मीठी वाणी में लिपटी चापलूसी का ही बोलबाला, जो इस कला में पारंगत उनका काम या कर्म चाहे दो कौड़ी के क्यूँ न हो, पर प्रतिष्ठा और सम्मान सब उनकी ही बपौती सब उनकी ही झोली में पनाह है पाते, और इसके जैसे खरे बावरे केवल पुस्तकों की भूमिका में ही जगह है पाते.....

लोग कहते जब इसे अरे बावरी काहे अपने पैरो पर कुलहाड़ी मार रही है, तो यह हंसकर है कहती, कि अरे भैया जब कालिदास पेड़ की जिस शाखा पर बैठ उसको ही काटने के बाद भी महान विद्वान बन सकते है, तो भला मैं क्यूँ नहीं बार बार अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार सियानी न कहला सकूँ हूँ ? अब आप ही बताये इस बावरी चिरैया को कौन समझाए, अब तो बस आप भी हमारे साथ एक दुआ इसके लिए कर ही डाले ......कि खुदा खैर करे .........किरण आर्य

एक नज़र आज के बुलेटिन पर

आज की बुलेटिन में बस इतना ही मिलते है फिर इत्तू से ब्रेक के बाद । तब तक के लिए शुभं।

13 टिप्पणियाँ:

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति
आभार!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ।

Archana Chaoji ने कहा…

ओ री चिरैया ...खुश रह ....:-)
मेरे ब्लॉग की लिंक सहेजने के लिए आभार

साहित्यशिल्पी ने कहा…

धन्यवाद साहित्य शिल्पी की पस्तुति सम्मलित करने हेतु...
आज के विशेष दिन हमारे माननीय अशोक चक्रधर/ जगजीत सिंह/ गोपालदास नीरज/ जाँ निसार अख़्तर जी का जन्मदिवस है जिसपर हमारी प्रस्तुति लिक निम्नांकित है..जिसपर आपकी टिप्पणियां हमारा उत्साहवर्धन करेगी

http://www.sahityashilpi.com/2012/07/blog-post_4474.html

http://www.sahityashilpi.com/2008/10/blog-post_07.html

http://www.sahityashilpi.com/2009/02/blog-post_08.html

http://www.sahityashilpi.com/2015/02/jagjit-singh-parichay-abhishek.html

http://www.sahityashilpi.com/2009/11/blog-post_02.html

http://www.sahityashilpi.com/2015/02/jaan-nisar-akhtar-parichay-ajay-yadav.html

धन्यवाद...
साहित्य शिल्पी के लिए अभिषेक सागर

Rahul Dev ने कहा…

धन्यवाद।

Rahul Dev ने कहा…

धन्यवाद।

Dr ajay yadav ने कहा…

sunder links

ऋता शेखर 'मधु' ने कहा…

चहकती रहना सोन चिरैया
जब जब आवे बसंत
मेरी बगिया में भी आना...
आभार

Barthwal ने कहा…

सुंदर .. शुभम

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति !

Unknown ने कहा…

उम्दा लिंक संयोजन । मेरी रचना शामिल करने का आभार ।

Unknown ने कहा…

उम्दा लिंक संयोजन । मेरी रचना शामिल करने का आभार ।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

इस चिरैया की परवाज़ और ऊंची हो ... यही दुआ है |

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