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मंगलवार, 23 फ़रवरी 2016

मइया की रोटी की यही थी कहानी !



गालियों के आटे में 
आँसुओं का पानी 
मइया की रोटी की यही थी कहानी  !

बाबा की लाल ऑंखें 
लड़खड़ाते पाँव 
कोने में दुबकी मइया के घाव 
सुबकते थे सपने 
रोता था घर 
सोचता था मन 
क्या यही होता है घर !  ... गालियों के आटे में 
आँसुओं का पानी 
मइया की रोटी की यही थी कहानी  !

 शराब में खो गया 
सुख चैन घर का 
बचपन न जाने कहाँ 
किस कोने खो गया 
रोता था घर 
सोचता था मन 
क्या यही होता है घर !  ... गालियों के आटे में 
आँसुओं का पानी 
मइया की रोटी की यही थी कहानी  !

नहीं होगा ऐसा मेरा घर 
सोचता था मन मेरा सिहर सिहरकर 
पर हाय रे करम 
घूँघट से देखा मैंने लड़खड़ाता हुआ घर 
.... गालियों के आटे में 
आँसुओं का पानी 
मइया की रोटी सी 
यही थी कहानी  !

गाँव हो या शहर, नगर या महानगर, देश या विदेश - यह आम सी स्थिति मिल ही जाती है  ..... 


4 टिप्पणियाँ:

Archana Chaoji ने कहा…

ये कहानी का अन्त बदल पाएगा कभी ?

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

बहुत पहले मैंने फेसबुक पर शेयर की थी ये घटना! एक लड़का मेरे ऑफिस में आया और बोला कि उसे अपने मृत पिता के फिक्स्ड डिपॉज़िट के पैसे चाहिए! मैंने पूछा कि अगर माँ ज़िंदा है तो उसके भी दस्तखत चाहिए! लड़का बोला कि फिर तो नहीं हो सकता, माँ जेल में है. मैंने पूछा क्यों, तो बोला, "उसी ने तो मारा है बाप को! रोज़ दारू पीकर आता था और पीटता था! मार डाला माँ ने!
मैं अवाक् देखता रह गया!
आज फिर उसी स्थिति में हूँ, इस रचना को पढकर!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सटीक रचना के साथ सुन्दर बुलेटिन ।

सु-मन (Suman Kapoor) ने कहा…

सभी ब्लॉग पोस्ट बहुत ही अच्छी लगी |

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