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रविवार, 21 फ़रवरी 2016

'नीरजा' - एक वास्तविक नायिका की काल्पनिक लघु कथा

“यार एक बात पूछूँ?”
”हम्म्म!!”
”क्या समझूँ इसका मतलब? हाँ या ना?”
”पूछ ले! वैसे मैं जानता हूँ तू क्या पूछना चाहता है, लेकिन तेरी ज़ुबान से सुननना चाहता हूँ!”
”तू मेरा बहुत अच्छा दोस्त है. हमने साथ में कितनी फ़्लाइट उड़ाई है. तुझे ट्रेनिंग के दौरान भी कितने ईनाम मिले. लेकिन देखता हूँ कि जब भी तू इस देश की फ़्लाइट पर होता है, या इधर से गुज़रता है तो बहुत सीरियस हो जाता है.”
”नहीं तो... ऐसा कुछ भी नहीं!”
”बहुत करीब से देखा है तुझे, महसूस कर सकता हूँ!”
”इधर आकर मुझे किसी की याद आ जाती है.”
याद आ जाती है से क्या मतलब? तेरी वो तो है ना तेरे घर पर?”
”मैं जिसकी बात कर रहा हूँ, वो अमेरिकन नहीं है... वो इण्डियन है!”
“पहेलियाँ मत बुझाओ! साफ़ साफ़ बताओ किस्सा क्या है!”
”लगभग तीस साल पहले, इसी हवाई अड्डे पर एक हवाई जहाज आतंकवादियों द्वारा हाइजैक कर लिया गया था.”
”फिर क्या हुआ?”
”उस हवाई जहाज में एक लड़की थी, जिसने चालक दल को आगाह किया और वे कॉकपिट के ऊपर से निकल गये ताकि जहाज को उड़ाकर आतंकवादियों की मनचाही जगह तक नहीं ले जाया जा सके.”
”ये तो ठीक हुआ, लेकिन पैसेंजर्स का क्या हुआ?”
”केबिन क्र्यू की वो सदस्य आतंकवादियों के सामने थी. आतंकवादियों ने उसे सभी पैसेंजर्स के पासपोर्ट ले लेने का हुक़्म दिया.”
”क्यों?”
”वे जानना चाहते थे कि उनमें कितने अमेरिकी यात्री हैं. कुल 41 अमेरिकी थे. उस क्र्यू सदस्य ने सभी के पासपोर्ट लेकर छिपा दिये.”
”.................”
”लगभग सत्रह घण्टे तक अपनी माँग को लेकर बहस करने के बाद उन आतंकवादियों ने अन्धाधुन्ध गोलियाँ चलाना शुरू कर दिया.”
”और वो लड़की जिसने अमेरिकी नागरिकों के पासपोर्ट छिपा दिये थे?”
”उसने इमरजेंसी दरवाज़ा खोल दिया और यात्रियों को निकालने में मदद करने लगी.”
”जब दरवाज़ा खुला तो वो ख़ुद भी तो निकल सकती थी?”
“नहीं दोस्त! वो सबसे पहले निकल सकती थी, लेकिन अजीब जुनूनी शख्स थी वो. ऐसी भयंकर घटना में 41 में से सिर्फ़ दो अमेरिकी की मौत हुई.”
”फ़्लाइट में बच्चे भी तो रहे होंगे? उनका क्या हुआ?”
”बच्चों को भी उसी ने निकाला.”
”अरे वाह! लेकिन तुम्हें यह सब कैसे पता? वो भी इतनी बारीकी से?”
“उन बचाए गये बच्चों में एक मैं भी था... सात साल का बच्चा.”

”अरे वाह!! तो क्या तुमने कभी उस लड़की से मिलने या कॉण्टैक्ट करने की कोशिश की?”

”वही तो कर रहा हूँ. जब भी इधर आता हूँ, इन रुई के फाहों से उड़ते हुये बादलों में उसे ढूँढने की कोशिश करता हूँ.”

”इश्क़ तो नहीं हो गया उससे!”

”इश्क़ ही तो है. मुझसे 18 साल बड़ी लड़की से इश्क़. माँ है वो मेरी.”

”तू तो सीरियस हो गया यार!”

”बात ही सीरियस है. उसने मुझे दूसरी ज़िन्दगी बख्शी!”

”तो एक बार मिल ले उससे. इण्डियंस तो वैसे भी बड़े प्यारे लोग होते हैं!”

”नहीं मिल सकता, तभी तो बादलों में उसे ढूँढता हूँ. हमें बचाते हुये वो आतंकवादियों की गोली का शिकार हो गयी. सिर्फ़ 23 साल की उम्र में.”

”हे भगवान!”

”नीरजा नाम था उसका. नीरजा भनोत. मेरे एक इण्डियन दोस्त ने बताया कि उसके नाम का मतलब होता है पानी से पैदा हुई. आज भी इन पानी भरे बादलों को देखता हूँ तो पूछने की तबियत होती है कि मुझे पानी से जन्मी नीरजा से मिला दो जिसने मुझे जन्म तो नहीं दिया, पर ज़िन्दगी दी!”

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यह एक काल्पनिक रचना है और इसका उद्देश्य नीरजा भनोत, अशोक चक्र की शहादत को याद करना और भारतवर्ष की इस बहादुर बेटी को श्रद्धांजलि अर्पित करना है. अभी हाल ही में सितम्बर 1986 की उस घटना पर एक फ़िल्म बनी है, जो मैंने नहीं देखी है. ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से दिये गये इस विषय पर लिखने का यह मेरा स्वतंत्र प्रयास है! आशा है आपको पसन्द आया होगा.

                                - सलिल वर्मा 

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पति पीड़ित लड़की की दास्‍तां भी है 'नीरजा'

फिल्म एक नजर में : नीरजा

कभी नहीं--- कभी नहीं---कभी नहीं

ब्राम्हणवाद

भारंगम में फिल्म वालों के नाटक

क्योंकि....

रांची से बंगाल नाता है पुराना

चन्दा भी तू...और सूरज भी तू...

परिवर्तन...

रहती जहां है आशा ...

लघुव्यंग्य – गारंटी

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20 टिप्पणियाँ:

sochtaahoon... ने कहा…

अपने ब्लॉग में शामिल करने हेतु कोटिश: धन्यवाद !
सुनील कुमार सजल

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सलिल जी आपकी कल्पना के साथ साथ नीरजा जी को भी नमन । सुन्दर बुलेटिन प्रस्तुति ।

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आपकी कल्पना शक्ति लाजवाब है!

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

आपकी कल्पना शक्ति लाजवाब है!

SKT ने कहा…

प्रस्तुति पढ़ कर लुटे-लुटे से रह गए हम! सलाम आपको व् नीरजा को..!

रश्मि प्रभा... ने कहा…

कल्पना और नीरजा ... पानी से बनी लड़की को आपकी कल्पना ने सिहरने का, खुद पे नाज करने का एक अमूल्य मौका दिया है

shikha varshney ने कहा…

गर्व है नीरजा पर।

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

कमाल रच दिया भाई...👍

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

कमाल रच दिया भाई...👍

राजेश राज ने कहा…

ज़रूर नीरजा का मतलब पानी से जन्मी होता होगा क्योंकि पोस्ट पढ़ने के बाद आँखों में सलिल ही सलिल है .. जिसमे तैर रहा है नाम -'नीरजा'
अद्भुत श्रद्धांजलि ..

Archana Chaoji ने कहा…

और इससे ज्यादा क्या कहूँ कि आज ही रानू और मायरा के साथ फ़िल्म देखी और नेट चालू किया तो सबसे पहले ब्लॉग बुलेटिन में नीरजा को श्रद्धांजलि दी ....
बहुत जाँबाज लड़की थी,मुझसे दो साल छोटी

Archana Chaoji ने कहा…

और इससे ज्यादा क्या कहूँ कि आज ही रानू और मायरा के साथ फ़िल्म देखी और नेट चालू किया तो सबसे पहले ब्लॉग बुलेटिन में नीरजा को श्रद्धांजलि दी ....
बहुत जाँबाज लड़की थी,मुझसे दो साल छोटी

मनोज भारती ने कहा…

सलिल जी !!!बेहतरीन प्रस्तुति !!! उम्दा नज़रिया ...

Suman ने कहा…

सार्थक प्रयास बहुत बढ़िया भाई, दिल को छू गयी कहानी !

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

bahut hi marmik prastuti ....jab ye ghatna ghati thi tab bhi dil bhar aaya tha aur aaj bhi dil bhar aaya ...mujhe ik waky abhi bhi yad hai jab nirja ke dead boby ko dekhte huye us bacche ne kaha tha isi aunti ne mujhe dhakka diya tha ...dusron ko bachane i
ke is jajbe ko salam ...dhanyvad n aabhar ...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

रविवार की पोस्ट के लिए कोई विषय नहीं था मेरे पास. सोचा लिखने बैठूँगा तो लिख लूँगा. तभी भाई शिवम् ने झिझकते हुए कहा कि एक विषय है नीरजा. मैंने भी कहा कि ये फ़िल्म मैंने नहीं देखी. तो वे बोले, फ़िल्म नहीं असली नीरजा. मैंने कहा- देखता हूँ!
लिखने से पहले सोचा कि क्यों न इसे एक कहानी का रूप दूँ और उसे संवादों के माध्यम से व्यक्त करूँ. उस दुर्घटना में बचा एक बच्चा आज पायलट है. तो उसे ध्यान में रखकर एक काल्पनिक कथा गढ़ी!
आप लोगों ने इसे पढ़ा और पसंद किया, मेरे लिए यही बहुत बड़ा ईनाम है! सादर!!

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

रविवार की पोस्ट के लिए कोई विषय नहीं था मेरे पास. सोचा लिखने बैठूँगा तो लिख लूँगा. तभी भाई शिवम् ने झिझकते हुए कहा कि एक विषय है नीरजा. मैंने भी कहा कि ये फ़िल्म मैंने नहीं देखी. तो वे बोले, फ़िल्म नहीं असली नीरजा. मैंने कहा- देखता हूँ!
लिखने से पहले सोचा कि क्यों न इसे एक कहानी का रूप दूँ और उसे संवादों के माध्यम से व्यक्त करूँ. उस दुर्घटना में बचा एक बच्चा आज पायलट है. तो उसे ध्यान में रखकर एक काल्पनिक कथा गढ़ी!
आप लोगों ने इसे पढ़ा और पसंद किया, मेरे लिए यही बहुत बड़ा ईनाम है! सादर!!

शिवम् मिश्रा ने कहा…

23 साल की उम्र में 350 से ज्यादा लोगों की रक्षक...असैनिक होते हुए भी सैनिक...इसी 23 साल की उम्र में अमर शहीद सरदार भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने भी शहादत दी थी...कारगिल के शहीदों की औसत उम्र लगभग 23 साल ही थी...और तो और कल शहीद हुये कैप्टन पवन भी 23 साल ही के थे!!

सारा कसूर इस उम्र का है ... जो इंसान को इतना जज्बाती बना देता है कि वो आम आदमी के दर्जे से काफी ऊपर उठ कर फरिश्तों का दर्जा हासिल कर लेता है|

फरिश्ते यही करते है न ... दूसरों की रक्षा !!

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

अभी उम्र कुल तेईस की थी मनुज नही अवतारी थी .नीरजा मानवता और कर्त्तव्य के पृष्ठों पर सुनहरी इबारत है .आपने भी कहानी लिखने में सुनदर कल्पना का समावेश किया है .

Anita Lalit (अनिता ललित ) ने कहा…

मानवता की मिसाल हैं नीरजा ! उन्हें नमन !
बहुत ख़ूबसूरती से आपने इसे लघु कथा में पिरोया है ! सार्थक प्रयास !

~सादर
अनिता ललित

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