Subscribe:

Ads 468x60px

कुल पेज दृश्य

शनिवार, 19 अक्तूबर 2013

कुछ खास है हम सभी में - ब्लॉग बुलेटिन

प्रिय ब्लोगर मित्रों,
प्रणाम !


12 साल का ईशविंदर 'स्पेशल चाइल्ड' है। वह सामान्य बच्चों से अलग है, क्योंकि उसका आईक्यू लेवल सामान्य से कम है। इस परिस्थिति को आम भाषा में मंदबुद्धि कहा जाता है, लेकिन ईशविंदर की ऊर्जा व सकारात्मकता उसे इस संबोधन से कहीं आगे ले जाते हैं। वह नवंबर माह में होने जा रहे इंटरस्टेट स्पेशल ओलंपिक के लिए फिटनेस टेस्ट पास करने वाले बच्चों में से एक है। बीते साल लुधियाना में ऐसे ही बच्चों के लिए हुए एक विशेष खेल मुकाबले में उसने 100 तथा 200 मीटर दौड़ स्पर्धा में दो स्वर्ण व सॉफ्टबॉल थ्रो में एक रजत पदक हासिल किया था।
19 साल का सौरभ जैन क्रिकेट का दीवाना है और किसी दिन टीम इंडिया के साथ खेलना चाहता है, लेकिन उसके स्कूल में क्रिकेट नहीं सिखाया जाता और आस-पड़ोस के बच्चे उसे अपने साथ नहीं खिलाते। भले ही लोग उसे मंदबुद्धि कहते हों, लेकिन अपने पसंदीदा खेल के बारे में उसे सब मालूम है।
 
[क्या है स्पेशल ओलंपिक?]

स्पेशल ओलंपिक पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति स्व. जॉन एफ. कैनेडी की बहन यूनिस कैनेडी श्रिवर द्वारा 1968 में स्थापित की गई संस्था द्वारा विश्व के विभिन्न भागों में आयोजित करवाये जाते हैं। इन्हें शारीरिक अक्षमता वाले खिलाड़ियों के लिए आयोजित 'पैरालिंपिक' की जगह 'स्पेशल ओलंपिक' कहा जाता है क्योंकि यह स्पर्धा स्पेशल बच्चों की है, जिन्हें इंटेलेक्चुल डिसएबल कहा जाता है। संस्था ऐसे बच्चों को 'मेंटली रिटार्डिड' बोलने के सख्त खिलाफ है। अब तक स्पेशल ओलंपिक 180 देशों में लाखों स्पेशल बच्चों के जीवन को एक नई दिशा और ऊर्जा प्रदान कर चुकी है।

[हेल्दी एथलीट प्रोजेक्ट]

स्पेशल ओलंपिक के अंतर्गत खेल ही नहीं करवाए जाते, बल्कि उनसे पहले इन बच्चों के विशेष हेल्थ चेकअप भी होते हैं। विभिन्न शहरों में फ्री कैंपों का आयोजन कर स्पेशल बच्चों की फिटनेस के बारे में अभिभावकों के मार्गदर्शन के साथ-साथ स्थानीय डाक्टरों को भी प्रशिक्षित किया जाता है। संस्था के हेल्दी एथलीट्स कोआर्डिनेटर (एशिया पैसिफिक) डा. राजीव प्रसाद कहते हैं, ''इनको विशेष देखभाल की जरूरत होती है, लेकिन समाज के डर या शर्म के कारण माता-पिता इन्हें घर से बाहर भी नहीं निकालते। आमतौर पर डॉक्टर भी इलाज से कतराते हैं, क्योंकि इनके चैकअप के दौरान डॉक्टर के संयम की भी परीक्षा हो जाती है।

[एक थप्पड़ ने बदल दिया नजरिया]

डा. राजीव प्रसाद कहते हैं, "एक बार मैंने एक बच्चे की आंखों के चेकअप पर 20-25 मिनट लगाए, लेकिन उसके रिस्पांस न देने पर मैं खीज गया और उस पर चिल्ला उठा। उस बच्चे ने तपाक से एक थप्पड़ मेरे मुंह पर जड़ दिया। उस थप्पड़ ने मेरा जीवन बदल दिया। मुझे एहसास हुआ कि मैं कुछ मिनटों में ही संयम खो बैठा, लेकिन इन बच्चों में तो हम से ज्यादा सहनशीलता है। हमारी कही गई अधिकतर बातें (जो उन्हें समझ नहीं आती) उनके लिए बक-बक जैसी ही तो हैं, जिन्हें वे झेलते हैं। उसी दिन से मैंने इन बच्चों के लिए काम करने करने की ठान ली!'' 
 
यह सभी बच्चे हर पल यह साबित करते है कि हम सब मे कुछ न कुछ खास है बस जरूरत है उस खासियत को समझ पाने की ... अपना पाने की ... देखिये अपने आस पास और इन खास लोगो से दोस्ती कर खुद भी खास होने का अनुभव कीजिये !
 
सादर आपका 

====================

कितने भेद छिपाए बैठा, ढका दुपट्टा, औरत का - सतीश सक्सेना

सतीश सक्सेना at मेरे गीत !
*आओ खेलें, खेल देश में , लालच और जरूरत का !** जो जीतेगा वही करेगा, देश में शासन नफ़रत का !* * भ्रष्टाचार ख़तम कर सोयें , हल्ला गुल्ला, हैरत का !* *जनता साली क्या जानेगी,किला जीतना भारत का !* *टेलीविज़न पर नेताओं को, काले धन की चिंता है !* *चोरों से सत्ता हथियानी , लक्ष्य पुराना हज़रत का !* * * *ऐसा लगता बदन रंगाये,सियार जमीं पर उतरा है !* *यह तो वही पुराना डब्बा, लगे चुनावी कसरत का !* * **रोटी और परिवार बनाने , औरत घर में लाये हैं !* *औरत का सम्मान न जाने,देखें ख्वाब सदारत का ! * * * *तरस, दया, हमदर्दी खाकर ,हाथ फेरना बुड्ढों का ! ** **यह तो बड़ा पुराना फंडा, more »

घर जला बैठे !

Suresh Swapnil at साझा आसमान
रहे-अज़ल में फ़रिश्ते से दिल लगा बैठे विसाल हो न सका मग़फ़िरत गंवा बैठे न राहे-रास्त लगा रिंद लाख समझाया ग़लत जगह पे शैख़ हाथ आज़मा बैठे ख़ुदा को रास न आया बयान शायर का सज़ाए-ज़ीस्त सात बार की सुना बैठे हमें जहां न मिला हम जहां को मिल न सके जहां-जहां से उठे रास्ता भुला बैठे हुआ हबीब से रिश्ता तो खुल गईं रहें ख़ुदा को याद किया और घर जला बैठे ! ( 2013 ) *-सुरेश स्वप्निल * * **शब्दार्थ:* रहे-... more »

एक चिट्ठी अरविन्द केजरीवाल के नाम ...

उदय - uday at कडुवा सच ...
*एक चिट्ठी अरविन्द केजरीवाल के नाम * अरविन्द केजरीवाल जी, जय हिन्द कल आपकी अर्थात आम आदमी पार्टी की चुनाव सर्वे सम्बन्धी प्रेस कान्फ्रेंस पर अचानक नजर पडी, नजर पड़ते ही यह सोचकर थोड़ा भौंचक सा हुआ कि ये क्या हो रहा है अर्थात आप क्या कर रहे हैं ? मुझे इस प्रश्न का कोई सकारात्मक उत्तर नहीं मिला इसलिए सीधा आपको चिट्ठी लिखकर पूछ रहा हूँ कि आप बताएं चुनाव सर्वे सम्बन्धी प्रेस कान्फ्रेंस का क्या औचित्य था, क्या नजरिया था, आप क्या सन्देश देना चाहते थे ? सीधे व स्पष्ट शब्दों में कहूं तो मुझे आपसे व आपके थिंक टेंक ( जिसमें योगेन्द्र यादव जी भी शामिल हैं )  more »

गप्पू जी का प्रहसन . . .

दिनेशराय द्विवेदी at अनवरत
अब 'पप्पू' पप्पू नहीं रहा। वह जवान भी हो गया है और समझदार भी। समझदार भी इतना कि उस की मज़ाक बनाने के चक्कर में अच्छे-अच्छे समझदार खुद-ब-खुद मूर्ख बने घूम रहे हैं। विज्ञान भवन में हुए दलित अधिकार सम्मेलन में पप्पू ने भौतिकी के 'एस्केप वेलोसिटी' के सिद्धान्त को दलित मुक्ति के साथ जोड़ते हुए अपनी बात रखी और पृथ्वी और बृहस्पति ग्रहों के गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र से बाहर निकलने के ‘पलायन वेग’ का उल्लेख किया। बस फिर क्या था। गप्पू समर्थक पप्पू का मज़ाक बनाने में जुट गए। लगता हैं उन्हें ट्रेनिंग में यही सिखाया गया है कि पप्पू कुछ भी कहे उस का मज़ाक उड़ाना है। वो सही कहे तो भी और  more »

दिल –ए नाकाम से पहले

* *इश्क की राह में सोचिये अव्वल गाम से पहले इश्क होता है जरूर दिल –ए नाकाम से पहले . मेरी हालत देख कर आते हैं सबकी आँख में आंसू मैं भी कितना खुश था गर्दिश ए अय्याम से पहले . सुकूत ए वक्त देखकर इत्मिनान मत हो जाइए होती है ऐसी ही शांति हर कोहराम से पहले. नक्श ए सुकूत औ जुमूद तारी है जिंदगी पर गर्म दोपहर तो आये रंगीन शाम से पहले. मुझे आदत नहीं किसी का एहसान लेने की काम तो मेरा देखिये 

हां ज़िन्दगी!

अनुपमा पाठक at अनुशील
हर कविता की एक कहानी होती है... जैसे हम में से हर एक की एक कहानी होती है... अलग सी और फिर भी कुछ कुछ एक ही... अब ज़िन्दगी तो हममें से हर एक के लिए एक पहेली ही है न... और इस पहेली से जूझते इसे सुलझाने के उपक्रम में चलते हुए हम सब सहयात्री ही तो हैं न... तो एक ही हमारा मन, जुदा जुदा फिर भी एक ही है हमारा... हम सबका भाव संसार...!!! वही इंसानियत और प्यार की कहानी... ज़िन्दगी यही तो होनी चाहिए... और क्या! ये फिर उसी डायरी का एक पन्ना, ९६ में लिखी गयी कभी... तब हम नाइन्थ में थे... वो समय यूँ ही याद है, कि यादें भी तो सभी स्कूल से ही सम्बंधित है... किस क्लास  more »

क्या कहता है मन .....

Anupama Tripathi at anupama's sukrity
बांधता है वक़्त सीमा में मुझे ...... भावों की उड़ान तो असीम है .... अनंत है ..... तो फिर ... क्या है जीवन ....?? चलती हुई सांस ..... अनुभूत होते भाव .... बहती सी नदी ... सागर सा विस्तार .... आज शरद पूनम की रात झरता हुआ चन्द्र का हृदयामृत ... या रुका सा मन .... जो मुसकुराता हुआ .... खोज लाता है गुलाबी सुबह का एक टुकड़ा ..... अपनी किस्मत सहेज ... मुट्ठी में भर कर ....!! भरी दोपहर भी ढूंढ लेता है .... पीपल की छांव .... वो अडिग अटल विराट वृक्ष के तले ....!! घड़ी भर बैठ .... मिल जाता है ......... ज़िंदगी के गरम से एहसासों को आराम .... फिर कुछ गुनगुनाती हुई .... more »

अख़बारों के नाम पर गोरखधन्धा

Ratan singh shekhawat at ज्ञान दर्पण
चित्र गूगल से साभार भारत में NGO (स्वयंसेवी संगठन) बनाकर राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा विभिन्न सरकारी योजनाओं के नाम पर धन उठाकर घपले करने के बारे में तो आप जानते ही है, जैसे अभी कुछ माह पहले ही देश के एक केन्द्रीय मंत्री के NGO ने विकलांगों के कल्याण के नाम पर सरकारी बजट उठा घपला किया था| पर क्या आप जानते है ? इन एनजीओ वीरों की तरह ही हमारे महान लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ जो लोकतंत्र के प्रहरी कहे जाते है, प्रेस वाले भी फर्जी अख़बार निकाल सरकारी विज्ञापन के नाम पर सरकार से धन प्राप्त कर सरकारी खजाने को चुना लगाने में पीछे नहीं है| अभी तक प्रेस  more »

कार्टून :- पूरे भारत के लि‍ए 'I have a dream'.

क्या फेसबुक से ब्लॉग पर सक्रियता कम हो रही है ? (2)

रेखा श्रीवास्तव at मेरा सरोकार
पिछली पोस्ट पर हमने अपने मित्रों के विचार इसा विषय पर पढ़े और अब आगे चलते हैं। यद्यपि दो मित्रों ने ब्लॉग फेसबुक के बारे में ही विचार दिए हैं लेकिन मैं उनके विचारों का सम्मान करती हूँ अतः उनको भी शामिल कर रही हूँ। जब परिवर्तन आता है तो उसके बहुत सारे कारण होते हैं। लेकिन लेखन में लेखक को उसके विचार मजबूर कर देते हैं लिखने के लिए। इसलिए जो वास्‍तव में लेखक है वह ब्‍लाग पर ही लिखेगा। प्रारम्‍भ में लेखक बनने की चाह में बहुत सारे लोग ब्‍लाग से जुड़ गए थे लेकिन फिर निरन्‍तरता नहीं रख पाए और वे फेसबुक पर चले गए। इसलिए ब्‍लागजगत में लेखन में कमी आयी है। यदि विमर्... more »

उम्र पार की वो औरत

सु..मन(Suman Kapoor) at बावरा मन
* * * * * * * * * * * * * * * * *इक पड़ाव पर ठहर कर * *अपनी सोच को कर जुदा * *सिमट एक दायरे में * *करती स्व का विसर्जन * *चलती है एक अलग डगर * *उम्र पार की वो औरत |* *देह के पिंजर में कैद * *उम्र को पल-पल संभालती * *वक्त के दर्पण की दरार से * *निहारती अपने दो अक्स * *ढूंढती है उसमे अपना वजूद * *उम्र पार की वो औरत |* *नियति के चक्रवात में * *बह जाते जब मांग टीका * *कलाई से लेते हैं रुखसत * *कुछ रंग बिरंगे ख्वाब * *दिखती है एक जिन्दा लाश * *उम्र पार की वो औरत |* *नए रिश्तों की चकाचौंध में * *उपेक्षित हो अपने अंश से * *बन जाती एक मेहमान * *खुद अपने ही आशियाने में * *तकती है मौत की राह *... more »
====================
अब आज्ञा दीजिये ...

जय हिन्द !!!

9 टिप्पणियाँ:

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

पठनीय सुंदर लिंक्स !

RECENT POST : - एक जबाब माँगा था.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

प्रेरक सन्दर्भ और बेहतरीन लिंक्स.. बहुत दिनों बाद चला हूँ इस पथ पर...

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर संकलन!

suresh swapnil ने कहा…

bahut-bahut shukriya, aap sabhi ko meri ghazal link par daalne ke liye...sabhi rachnakar-mitron ko badhai.

Neeraj Neer ने कहा…

सुन्दर लिंक्स, बहुत आभार आपका.

Anupama Tripathi ने कहा…

सुंदर संकलन ....!!आभार शिवम भाई मेरी कृति यहाँ ली ...!!

कडुवासच ने कहा…

jaandaar-shaandaar ...

पूरण खण्डेलवाल ने कहा…

अच्छे सूत्र !!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रोचक और सुन्दर सूत्र..

एक टिप्पणी भेजें

बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!

लेखागार