ब्लॉगर मित्रगण - सादर प्रणाम
आज दशहरा है और मैं आप सभी को इस त्यौहार की बहुत बहुत शुभकामनायें देना चाहता हूँ । विजय दशमी के आगमन के साथ ही मेरे ह्रदय में कुछ ख्याल और भावनाएं जन्म लेने लगती हैं । आज उन्ही उपजी कुछ भावनाओं को आपके समक्ष रख रहा हूँ और आपका इस बारे में क्या विचार है वह भी जानने का इच्छुक हूँ । उम्मीद है आपकी प्रतिक्रियाओं से मेरा मार्ग दर्शन भी होगा और मुझे नए विचार समझने और पढ़ने को भी मिलेंगे और बहुत कुछ नया सीखने को भी प्राप्त होगा ।
हिन्दुओं में विजय दशमी और दीपावली के पर्व दशरथ नंदन श्री राम के लंका पर विजय तथा उनकी अयोध्या वापसी से जुड़े हैं । इस सम्बन्ध में यह द्रष्टव्य है कि वर्षा ऋतु की समाप्ति तथा शरद के आगमन पर भी जब सुग्रीव ने राम की सुधि नहीं ली तो लक्ष्मण के माध्यम से उसे संदेश भेजा गया । इसके बाद खोजी दल एकत्र किया गया । सीता की खोज के कार्य में भी एक माह से अधिक का समय लगा । सेना को संगठित कर लंका के निकट पहुँचने और समुद्र पर पुल का निर्माण कर युद्ध प्रारम्भ करने में भी पर्याप्त समय लगा होगा । वर्षा ऋतु समाप्ति के डेढ़ माह के अन्दर ही दोनों पर्व पड़ जाते हैं ।
वर्षा ऋतु के पश्चात् आश्विन शुक्ल पक्ष के प्रारम्भ होने तक नयी फसल कृषकों के घर आ जाती है । इसी पक्ष में दशमी के दिन राम द्वारा रावण के प्रतीकात्मक वध का आयोजन किया जाता है । संस्कृत भाषा में रावण का अर्थ क्रन्दन करने वाला, शोक के कारण रोने-धोने वाला, चीखने वाला, दहाड़ने वाला तथा राम का अर्थ आनन्ददाता होता है । नई फसल के आने से किसान के शोक-संतप्त मन का संहार होता है तथा उसका स्थान प्रफुल्ल मन ले लेता है । शोक और रुदन के प्रतीक रावण को मार कर आनन्द के प्रतीक राम का पदार्पण होता है । कहते हैं कि - "बुभुक्षित: किं न करोति पापम्" - अर्थात जब अभाव की स्थिति समाप्त होती है तो मन पाप या बुरे कर्म से विरत होकर अच्छाई की ओर अग्रसर होने लगता है । अत: विजय दशमी को बुराई पर अच्छाई की विजय के पर्व के रूप में भी मनाया जाता है । उत्तर भारत में विजयादशमी को दशहरा भी कहा जाता है जो 'दश' (दस) एवं 'अहन्' से बना है । विजयादशमी वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा । इसी दिन लोग नया कार्य प्रारम्भ करते हैं । प्राचीन काल में राजा लोग इस दिन विजय की प्रार्थना कर रण-यात्रा पर निकलते थे ।
ज़्यादातर लोग इस पर्व को अच्छाई की बुराई पर विजय के रूप में देखते हैं परन्तु वह इस पर्व के दुसरे पहलु को नकार देते हैं जिसकी तरफ आज मैं आपका ध्यान देना चाहता हूँ और मेरा पक्ष रावण से जुड़ा हुआ है । परम प्रतापी एवं शास्त्रों के ज्ञाता ब्राह्मण कुमार रावण का स्मरण आज समीचीन है क्योंकि आज के दिन का वैदिक महत्व उसके अस्तित्व के कारण ही है । हमारे पौराणिक ग्रंथों में रावण को यद्धपि विद्वान, नीतिनिपुण, बलशाली माना गया है किन्तु सभी नें उसे एक खलनायक की भांति प्रस्तुत किया है । एक कृति की प्रकृति एवं उसके आवश्यक तत्वों की विवेचना का सार यह कहता है कि, कृति में नायक के साथ ही खलनायकों या प्रतिनायकों का भी चित्रण या समावेश किया जाए । हम हमारे पौराणिक ग्रंथों को सामान्य कृति मानकर यदि पढ़ते हैं तो पाते हैं कि रावण के संबंध में विवेचना एवं उसके पराक्रम व विद्वता का उल्लेख ही राम को एक पात्र के रूप में विशेष उभार कर प्रस्तुत करता है । चिंतक दीपक भारतीय जी अपनी एक कविता में कहते हैं -
रावण तुम कभी मर नहीं सकते
क्योंकि तुम्हारे बिना राम को लोग
कभी समझ नहीं सकते...
खलनायक प्रतिनायक एवं सर्वथा सामान्य पात्रों को भी अब महत्व दिया जा रहा है उनके कार्यों का विश्लेषण कर उनके उज्जव पन्नों पर रौशनी डाली जा रही है । वर्तमान काल नें रावण के इस चरित्र का गूढ अध्ययन किया है, पौराणिक ग्रंथों से उदाहरणों को समेट कर कई ग्रंथ लिखे जा रहे हैं जिसमें रावण के उज्जव चारित्रिक पहलुओं को समाज के सामने उकेरा जा रहा है ।
ज्ञानी रावण के अस्तित्व का प्रमाण है कि हमारे पौराणिक ग्रंथों में कृष्ण यजुर्वेद में संग्रहित रावण की अधिकाधिक वेदोक्तियां आज तक वैदिक आर्यों को मान्य है, रावण ज्योतिष ग्रंथों एवं तात्रिक ग्रंथों के भी रचयिता हैं, रावण कृत शिव ताण्डव स्तोत्र का सस्वर गायन पुरातन से आज तक लगातार हो रहा है । रावण मे कितना ही राक्षसत्व क्यों न हो, उसके गुणों को विस्मृत नहीं किया जा सकता। रावण एक अति बुद्धिमान ब्राह्मण तथा शंकर भगवान का बहुत बड़ा भक्त था। वह महा तेजस्वी, प्रतापी, पराक्रमी, रूपवान तथा विद्वान था। रावण के क्रूर और अनैतिक चारित्रिक उदाहरणों के अतिरिक्त उसके उजले पक्षों को भी यदि हम आज के दिन याद कर लेवें तो वर्तमान परिस्थितियों के लिए उचित होगा । सुशीला सेजवाला के शव्दों में -
रावण हूं मैं, कांपते थे तीनों लोक जिससे
पर आज का मानव निकला,
चार हाथ आगे मुझसे...
अतः मेरा आग्रह, कहने और बतलाने का तात्पर्य सिर्फ यही है के हमें किसी भी बात को लेकर या किसी भी त्यौहार के आने पर उसके दोनों पहलुओं पर नज़र करनी चाहियें और विचार विमर्श करना चाहियें । क्योंकि अच्छाई और बुराई दोनों एक दुसरे के पूरक हैं और दोनों का अस्तित्त्व एक दुसरे से होता है । बिना बुराई अच्छाई का महत्त्व संभव नहीं हो सकता । वैसे ही बिना अच्छाई बुराई का विनाश संभव नहीं हो पाता परन्तु बुराई में भी कई दफा बहुत सी अच्छाईयां छिपी होती हैं उनके लिए भी एक नज़र रखनी बहुत आवश्यक होती है । बुराई में अच्छाई को टटोलना भी अपने आप में एक महान कार्य है । आज हम बड़ी आसानी से किसी को भी बुरा बता देने में सक्षम है परन्तु बुराई या बुरा होने के पीछे का कारण क्या है ? बुराई के पीछे क्या भलाई या अच्छाई छिपी है वह जानने की जिज्ञासा कभी नहीं होती । मेरे इस जुमले पर यकीन नहीं होता तो एक कोशिश करके देखिये शायद आपको भी बुराई में छिपी अच्छाई का आनंद प्राप्त करने का अवसर मिल जाये । इस बार विजय दशमी के दिन रावण के चरित्र को एक सकारात्मक और ज्ञानी के रूप में देखने का प्रयास करने की कोशिश करें |
आप सभी को मेरी ओर से विजय दशमी के पर्व की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनायें | जय श्री राम
आज की कड़ियाँ
जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज
10 टिप्पणियाँ:
बहुत सुंदर प्रस्तुति एवं सुंदर बुलेटिन .
नई पोस्ट : रावण जलता नहीं
विजयादशमी की शुभकामनाएँ .
अच्छा लगा पढ़कर आपका आलेख।
सुंदर प्रस्तुति !
उल्लूक की दुकान भी दिख रही है आभार !
बहुत सुंदर आलेख
पूरा सार निहित है
रावण तुम कभी मर नहीं सकते
क्योंकि तुम्हारे बिना राम को लोग
कभी समझ नहीं सकते...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
आभार आपका।
--
विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएँ।
तुषार हार्दिक आभार हमें भी शामिल किया
सुन्दर संयोजन ब्लॉगबुलेटिन का
सभी ब्लॉग बुलेटिन परिवार को रामनवमी एवं विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं
पोस्ट की भूमिका बहुत सार्थक लगी
शुक्रिया और आभार मेरे लिखे को मान और स्थान देने के लिए
विजया दशमी की हार्दिक शुभकामनायें
सुन्दर संदर्भ सूत्र, सबको विजयदशमी की शुभकामनायें।
bahut hi badhiya pathniy link mile ... samayachakr ki post ko shamil karne ke liye dhanyawad or sath hi vijayadashamin parv par aap sabhi ko hardik badhai shubhakamanayen ....
आप सभी को भी विजयदशमी की शुभकामनायें और धन्यवाद | जय हो |
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