दर्द का रिश्ता न हो तो ज्ञान के स्रोत मन को नहीं भिगोते … समन्दर के किनारे नज़र नहीं आते,पर लहरों का आना-जाना सत्य की अनगिनत परिधियों की सूक्ष्मता से जुड़ा हमें छूता है,वेग की धुन में बहुत कुछ कहता है . इसी वेग की एक धुन की परिक्रमा है सरस दरबारी की कलम से उनके पापा के विचारों को सुनना =
मेरे हिस्से की धूप: …आज कुछ बातें कर लें ...( २
मेरे हिस्से की धूप: .........आज कुछ बातें कर लें ...(३)
ये जो धूप मिली है उन्हें ज्ञान की - उसके आगे सरस जी का रोम रोम कहता है -
कुछ ही दिन हुए ….वह पल अब भी याद है
कोर थे भीगे हुए ......दिल से लगाया आपने
छाँव में आपकी ....कितने सुखद थे बीते क्षण
हाथ सरंक्षण भरा , था सर पे फेरा आपने .
फिर पहली बार ..जब मैंने थी स्कूल की सीढ़ी चढ़ी ...
निर्भीक और साहसी बनो ..यह ग़ुर सिखाया आपने
कल्पनाओं में भी गर, था धर दबोचा डर ने जब
कितनी सहजता से उसे .....जड़ से उखाड़ा आपने
जीवन के दुर्गम ....मोड़ पर ...जब जब भी विपदा से घिरे
एक ढाल बनकर ही सदा …उससे बचाया आपने ..
एक मित्र की जब जब कमी… महसूस की मैंने कभी
एक दोस्त बनकर ही सदा ...कन्धा बढाया आपने !
फिर आज क्योंकर दूरसे ही देखते रहते हैं आप
धुंधला गया सब कुछ ...धुंए की ओट में रहते हैं आप
मन आज भी अधीर है ...उस सुख, उस संरक्षण के लिए
फिर क्यों नहीं बढ़कर लगा लेते....मुझे सीने से आप ..
ऊँगली पकड़कर हर कदम, चलना सिखाया था मुझे -
निर्भीकता साहस से लड़ना -यह बताया था मुझे -
फिर कौनसा डर...कौनसा भय ...है दबोचे मन को आज
की चाहकर भी , पास आ पाते नहीं, अपनों के आप.....
झूठे सहारे छोड़कर, उस ओर से आ जाइये ...
उस ओट में दुश्वारियां ..बीमारियाँ ही हैं खड़ी
उस ओट से आता धुआं ,है लील जाता हर ख़ुशी -
फिर क्यों उसे बैसाखियाँ बना बैठे हैं आप....
आ जाईये इस पार फिर.... झूठे सहारे छोड़कर
पैरों में ताक़त लाइए.....बैसाखियों को तोड़कर !
इस पार जीवन है -वे सारे सुख हैं ...जो थे अपने कभी -
उस पार तो सिर्फ मौत है ...
मुँह बाए जो ...... कबसे खड़ी .....!!!!!
9 टिप्पणियाँ:
सुंदर :)
चलिये लिंक तो है एक है से क्या बहुत है !
waah
बहुत सुन्दर.....
सरस जी को पढना बड़ा सुखद अनुभव है....
आभार आपका दी
अनु
वाह बहुत खुद रश्मि दी ... बहुत दिनों बाद आप की तैयार की हुई एकल ब्लॉग चर्चा पढ़ने को मिली ... आभार !
सरस जी को बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनायें ... लेखन का सफर यूं ही चलते रहे !
खूबसूरत प्रस्तुति |
मेरी नई रचना :- मेरी चाहत
विस्तृत और गहन..
आपका आभार कैसे प्रकट करूँ....अश्रुपूर्ण आभार रश्मिजी
फिर आज क्योंकर दूरसे ही देखते रहते हैं आप
धुंधला गया सब कुछ ...धुंए की ओट में रहते हैं आप
मन आज भी अधीर है ...उस सुख, उस संरक्षण के लिए
फिर क्यों नहीं बढ़कर लगा लेते....मुझे सीने से आप ..maarmik .hriday sprshi ..
बहुत सुन्दर विचार | जय हो
एक टिप्पणी भेजें
बुलेटिन में हम ब्लॉग जगत की तमाम गतिविधियों ,लिखा पढी , कहा सुनी , कही अनकही , बहस -विमर्श , सब लेकर आए हैं , ये एक सूत्र भर है उन पोस्टों तक आपको पहुंचाने का जो बुलेटिन लगाने वाले की नज़र में आए , यदि ये आपको कमाल की पोस्टों तक ले जाता है तो हमारा श्रम सफ़ल हुआ । आने का शुक्रिया ... एक और बात आजकल गूगल पर कुछ समस्या के चलते आप की टिप्पणीयां कभी कभी तुरंत न छप कर स्पैम मे जा रही है ... तो चिंतित न हो थोड़ी देर से सही पर आप की टिप्पणी छपेगी जरूर!