आदरणीय ब्लॉगर मित्र मंडली - सादर प्रणाम
आज का दिन बहुत बड़ा दिन है | आज २१ अक्टूबर है | आज हमारे अपने दिवंगत आदरणीय नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने २१ अक्टूबर १९४३ में आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्थापना की घोषणा की थी | किस्सा कुछ इस प्रकार से है : -
आज़ाद हिन्द फ़ौज सबसे पहले राजा महेन्द्र प्रताप सिंह ने २९ अक्तूबर १९१५ को अफगानिस्तान में बनायी थी। मूलत: यह 'आजाद हिन्द सरकार' की सेना थी जो अंग्रेजों से लड़कर भारत को मुक्त कराने के लक्ष्य से ही बनायी गयी थी। किन्तु इस लेख में जिसे 'आजाद हिन्द फौज' कहा गया है उससे इस सेना का कोई सम्बन्ध नहीं है। हाँ, नाम और उद्देश्य दोनों के ही समान थे। रासबिहारी बोस ने जापानियों के प्रभाव और सहायता से दक्षिण-पूर्वी एशिया से जापान द्वारा एकत्रित क़रीब ४०,००० भारतीय स्त्री-पुरुषों की प्रशिक्षित सेना का गठन शुरू किया था और उसे भी यही नाम दिया अर्थात् 'आज़ाद हिन्द फ़ौज'। बाद में उन्होंने नेताजी सुभाषचंद्र बोस को आज़ाद हिन्द फौज़ का सर्वोच्च कमाण्डर नियुक्त करके उनके हाथों में इसकी कमान सौंप दी।
२१ अक्तूबर १९४३ के दिन सिंगापुर के कैथी सिनेमा हॉल में “आरज़ी हुकुमत-ए-आज़ाद हिन्द” की स्थापना की घोषणा की थी । स्वाभाविक रुप से नेताजी स्वतंत्र भारत की इस अन्तरिम सरकार (Provisional Government of Free India) के प्रधानमंत्री, युद्ध एवं विदेशी मामलों के मंत्री तथा सेना के सर्वोच्च सेनापति चुने गए ।
सरकार के प्रधान के रुप में नेताजी ने यह शपथ ग्रहण की थी -
“ईश्वर के नाम पर मैं यह पवित्र शपथ लेता हूँ कि मैं भारत को और अपने अड़तीस करोड़ देशवासियों को आजाद कराऊँगा। मैं सुभाष चन्द्र बोस, अपने जीवन की आखिरी साँस तक आजादी की इस पवित्र लड़ाई को जारी रखूँगा। मैं सदा भारत का सेवक बना रहूँगा और अपने अड़तीस करोड़ भारतीय भाई-बहनों की भलाई को अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझूँगा। आजादी प्राप्त करने के बाद भी, इस आजादी को बनाये रखने के लिए मैं अपने खून की आखिरी बूँद तक बहाने के लिए सदा तैयार रहूँगा।”
नेताजी ने आजाद हिन्द फौज के सर्वोच्च सेनापति की हैसियत से स्वतन्त्र भारत की अस्थायी सरकार बनायी जिसे जर्मनी, जापान, फिलीपाइन, कोरिया, चीन, इटली, मान्चुको और आयरलैंड ने मान्यता दे दी। जापान ने अंडमान व निकोबार द्वीप इस अस्थायी सरकार को दे दिये। सुभाष उन द्वीपों में गये और उनका नया नामकरण किया। अंडमान का नया नाम शहीद द्वीप तथा निकोबार का स्वराज्य द्वीप रखा गया। ३० दिसम्बर १९४३ को इन द्वीपों पर स्वतन्त्र भारत का ध्वज भी फहरा दिया गया। ४ फरवरी १९४४ को आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों पर दोबारा भयंकर आक्रमण किया और कोहिमा, पलेल आदि कुछ भारतीय प्रदेशों को अंग्रेजों से मुक्त करा लिया।
६ जुलाई १९४४ को उन्होंने रंगून रेडियो स्टेशन से गान्धी जी के नाम जारी एक प्रसारण में अपनी स्थिति स्पष्ठ की और आज़ाद हिन्द फौज़ द्वारा लड़ी जा रही इस निर्णायक लड़ाई की जीत के लिये उनकी शुभकामनाएँ माँगीं।
२२ सितम्बर १९४४ को शहीदी दिवस मनाते हुये सुभाष बोस ने अपने सैनिकों से मार्मिक शब्दों में कहा -
"हमारी मातृभूमि स्वतन्त्रता की खोज में है। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूँगा। यह स्वतन्त्रता की देवी की माँग है।"
किन्तु दुर्भाग्यवश युद्ध का पासा पलट गया। जर्मनी ने हार मान ली और जापान को भी घुटने टेकने पड़े। ऐसे में सुभाष को टोकियो की ओर पलायन करना पड़ा और कहते हैं कि हवाई दुर्घटना में उनका निधन हो गया। यद्यपि उनका सैनिक अभियान असफल हो गया, किन्तु इस असफलता में भी उनकी जीत छिपी थी। निस्सन्देह सुभाष उग्र राष्ट्रवादी थे। उनके मन में फासीवादी अधिनायकों के सबल तरीकों के प्रति भावनात्मक झुकाव भी था और वे भारत को शीघ्रातिशीघ्र स्वतन्त्रता दिलाने हेतु हिंसात्मक उपायों में आस्था भी रखते थे। इसीलिये उन्होंने आजाद हिन्द फौज का गठन किया था।
यद्यपि आज़ाद हिन्द फौज के सेनानियों की संख्या के बारे में थोड़े बहुत मतभेद रहे हैं परन्तु ज्यादातर इतिहासकारों का मानना है कि इस सेना में लगभग चालीस हजार सेनानी थे। इस संख्या का अनुमोदन ब्रिटिश इंटेलिजेंस में रहे कर्नल जीडी एण्डरसन ने भी किया है।
जब जापानियों ने सिंगापुर पर कब्जा किया था तो लगभग ४५ हजार भारतीय सेनानियों को पकड़ा गया था।
नेताजी की इस कुर्बानी और जज्बे के लिए उन्हें शत शत नमन |
आज़ाद हिन्द फ़ौज से जुड़ी कुछ तसवीरें :
इस जानकारी के साथ आज से त्योहारों के अवसर पर एक के साथ एक फ्री की स्कीम शुरू कर रहा हूँ | तो हुज़ुरेवाला ज्ञानवर्धक पोस्ट के साथ कविता पाठ का आनंद भी संलग्न है | आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूँ मेरे द्वारा लिखी गई एक ताजातरीन नई कविता | उम्मीद करता हूँ आपका आशीर्वाद मिलेगा और आज की पोस्ट आप सभी को पसंद आएगी | कल करवाचौथ का त्यौहार है ब्लॉग बुलेटिन टीम की तरफ से सभी वैवाहिक मित्रों को इस त्यौहार की बहुत बहुत बधाई | इस दिन खूब खाएं पियें, मस्त रहे और मौज करें | जय हो |धोखेबाज़ दोस्त
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अब ऐतबार के लायक रहा नहीं जहाँ
दोस्त बन के देते हैं धोखा कहाँ कहाँ
दर्द-ए-दिल बताओ जो अपना जान के
दो मुंहे डसते हैं ये फन अपना तान के
ना करना भरोसा दुनिया पर तुम कभी
दुखेगा दिल तुम्हारा सोचो ये तुम अभी
छिपा कर दिल के घाव रखो सबसे जुदा
दुनिया में मिलेगा पगपग पर नया खुदा
बातों में उनकी आकर पछताओगे तुम
सीने में खंजर घोंप के हो जायेंगे ये गुम
गुज़ारिश 'निर्जन' करता तुमसे है यही
भरोसा न करना ऐसों पर रहेगा सदा सही
प्रस्तुत है आज की कड़ियाँआर्ज़ी हुक़ूमत-ए-आज़ाद हिन्द का ७० वां स्थापना दिवस - शिवम् मिश्रा अपने टीवी को कंप्यूटर की तरह इस्तेमाल करें - फैयाज़ अहमदकविता - अन्नपूर्ण बाजपाईपिंजरे की तीलियों से बाहर आती मैंना की कुहुक - सुधा अरोडाएंड्राइड फ़ोन को रिसेट और फॉर्मेट कैसे करें - अभिमन्यु भरद्वाजये सोना अगर मिल भी जाये तो क्या है - अखिलेश्वर पाण्डेयतैंतीस करोड़ देवताओं को क्यों गिनने जाता है - सुशिल कुमारकरवाचौथ पर पत्नी जी के प्रति - मदन मोहन बहेती 'घोटू 'माहिया - विभा रानी श्रीवास्तवइश्क गोदाम में सड़ गया - निखिल आनंद गिरीउन पटरियों के संग संग - शिखा वार्ष्णेयखोदो न उन्नाव का यह गाँव बन्धु - शेफाली पाण्डेयअब इजाज़त | आज के लिए बस यहीं तक | फिर मुलाक़ात होगी | आभार
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अब ऐतबार के लायक रहा नहीं जहाँ
दोस्त बन के देते हैं धोखा कहाँ कहाँ
दर्द-ए-दिल बताओ जो अपना जान के
दो मुंहे डसते हैं ये फन अपना तान के
ना करना भरोसा दुनिया पर तुम कभी
दुखेगा दिल तुम्हारा सोचो ये तुम अभी
छिपा कर दिल के घाव रखो सबसे जुदा
दुनिया में मिलेगा पगपग पर नया खुदा
बातों में उनकी आकर पछताओगे तुम
सीने में खंजर घोंप के हो जायेंगे ये गुम
गुज़ारिश 'निर्जन' करता तुमसे है यही
भरोसा न करना ऐसों पर रहेगा सदा सही
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6 टिप्पणियाँ:
संग्रहणीय पोस्ट
नेताजी को नमन।
नेता जी को बहुत सुंदर तरीके से याद करवाया है तुषार जी ने आज़ाद हिन्द फ़ौज को नमन उल्लूक का "तैंतीस करोड़ देवताओं को क्यों गिनने जाता है" को आज के बुलेटिन में स्थान दिया आभार !
नेताजी को नमन।।
सुन्दर चित्रमय बुलेटिन तुषार भईया।।
सुन्दर चित्रमय बुलेटिन ...नेताजी को नमन।
सच मे कल का दिन बेहद विशेष था ... और आपने बेहद सुंदर तरीके से इस के बारे मे जानकारी सांझा की ... आभार तुषार !
जय हिन्द !
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