फिर होगी लोरी
फिर बनेंगे मिटटी के खिलौने
क्योंकि लोग टूट रहे
रिश्ते कृत्रिम हो रहे
मॉम में घरेलु खुशबू कहाँ
मिटटी सने पाँव जैसी बात कहाँ
धमाचौकड़ी धूप में न हो
तो बच्चे का चेहरा नहीं खिलता
बिना कान उमेठे
संस्कारों की नीव नहीं पड़ती
11 टिप्पणियाँ:
ॐ अपने आप सब कुछ समेटे हुये है ठीक वैसे ही आपने भी इस बुलेटिन मे सब कुछ समेटने की बेहद उम्दा कोशिश की है !
आभार दीदी !
बहुत सुंदर !
जाते हुऐ दिख रहे हैं रिश्ते
उम्मीद तो है कि लौटेंगे !
सुन्दर सूत्र !!
बहुत ही सुंदर चयन और वो भी एकदम अनोखे अंदाज़ में । शुक्रिया रश्मि दीदी
बहुत बढ़िया बुलेटिन प्रस्तुति ...
बहुत बढ़िया बुलेटिन
बिना कान उमेठे
संस्कारों की नीव नहीं पड़ती ....सच्ची बात
धूप में खेले बिना बचपन नहीं खिलता …
क्या बात !
बहुत आभार !
बहुत सुन्दर बुलेटिन
सादर धन्यवाद
बहुत सुन्दर अंकन है पूर्व की सीधी सरल जीवन की रवानगी का
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