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मंगलवार, 29 अक्टूबर 2013

आज का यह विशेष बुलेटिन स्वर्गीय राजेंद्र यादव को श्रद्धा सुमन अर्पित करता है



हिंदी साहित्य के प्रमुख हस्ताक्षर राजेंद्र यादव का सोमवार देर रात निधन हो गया. वह 85 साल के थे...अपने लेखन में समाज के वंचित तबके और महिलाओं के अधिकारों की पैरवी करने वाले राजेंद्र यादव प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद की ओर से शुरू की गई साहित्यिक पत्रिका हंस का 1986 से संपादन कर रहे थे.
प्रेत बोलते हैं (सारा आकाश), उखड़े हुए लोग, एक इंच मुस्कान (मन्नू भंडारी के साथ), अनदेखे अनजान पुल, शह और मात, मंत्रा विद्ध और कुल्टा उनके प्रमुख उपन्यास हैं.इसके अलावा उनके कई कहानी संग्रह भी प्रकाशित हुए हैं. इनमें देवताओं की मृत्यु, खेल-खिलौने, जहाँ लक्ष्मी कैद है, छोटे-छोटे ताजमहल, किनारे से किनारे तक और वहाँ पहुँचने की दौड़ प्रमुख हैं. इसके अलावा उन्होंने निबंध और समीक्षाएं भी लिखीं.
राजेंद्र यादव का जीवन विवादों से भरा रहा. मगर उन्होंने कभी इससे हार नहीं मानी.
आज की पीढ़ी उन्हें 'हंस' के संपादक के रूप में याद करेगी. 'हंस' का संपादन उन्होंने उस समय शुरू किया, जब उनकी रचनात्मकता का सबसे अनुर्वर समय था. इसलिए रचनाकार राजेंद्र यादव को वह पीढ़ी नहीं जान पाई, जो 'हंस' पढ़कर बड़ी हुई. लेकिन इसके पहले की पीढ़ी उन्हें नई कहानी की त्रयी के सदस्य के रूप में याद करेगी.
आगरा विश्वविद्यालय से ही 1951 में हिंदी में एमए करने वाले राजेंद्र यादव के मशहूर उपन्यास 'सारा आकाश' पर बासु चटर्जी ने फिल्म भी बनाई थी।
आज का यह विशेष बुलेटिन स्वर्गीय राजेंद्र यादव को श्रद्धा सुमन अर्पित करता है =

मैं न तो कोई लेखक, कहानीकार या कवि था न ही कोई जाना माना प्रकाशक। फिर भी हंस के कार्यालय में कभी जाना हुआ तो पूरा समय देते थे। नए प्रकाशक की चुनौतियों के बारे में बताया करते थे। क्या नया छाप रहा हूँ, इस बारे में पूछते थे। हंस में विज्ञापन देने का कोई रिस्पांस मिलता है कि नहीं यह भी पूछते थे। जब हमारे प्रकाशन ज्योतिपर्व से महत्वाकांक्षी श्रृंख्ला का लोकार्पण होना था तो बहुत संकोच से गया था उनके पास लेकिन उन्होंने आने के लिए सहमति देने में मिनट भी नहीं लगाया। अपनी कुछ कहानियां देने का वादा किया था लेकिन उस से पहले चले गए। विनम्र श्रद्धांजलि !

Photo: Rajendra Yadav & Arun Chandra Roy
Kajal Kumar
राजेन्द्र यादव को मैं कभी नहीं मि‍ला लेकि‍न फि‍र भी उन्‍हें व्‍यक्‍ति‍ के रूप में मैंने कभी पसंद नहीं कि‍य पर हां , उनके संपादकीय मैंने कई साल पढ़े. पढ़े इसलि‍ए कि‍ उनमें बहुत कुछ नया होता था ना कि‍ सुनी-सुनाई बातें. श्रद्धांजलि.

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11 टिप्पणियाँ:

HARSHVARDHAN ने कहा…

राजेंद्र यादव जी का जाना एक युग के अंत समान है। हम सब उन्हें कभी भूल नहीं पाएँगे, ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे।।

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

मतैक्‍य या मतवि‍भेद , पर हिंदी लेखन के लि‍ए नि‍:संदेह क्षति‍. समय स्‍वीकार करने का है.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

विनम्र श्रद्धांजलि !

खोरेन्द्र ने कहा…

विनम्र श्रद्धांजलि !

राजीव कुमार झा ने कहा…

विनम्र श्रद्धांजलि.

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

श्रद्धांजलि

Asha Joglekar ने कहा…

श्रध्दांजली।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

राजेन्द्र यादव जी का जाना सच में एक युग का अंत है ... आज के हिंदी साहित्य के स्तंभ को मेरी विनम्र श्रधांजलि ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

रोचक सूत्र, श्रद्धांजलि..

शिवनाथ कुमार ने कहा…

विनम्र श्रद्धांजलि !

गिरिजा कुलश्रेष्ठ ने कहा…

सारा आकाश,एक इंच मुस्कान, शह और मात (उपन्यास ) लंच-टाइम (कहानी) और होना-सोना एक खूबसूरत दुश्मन के साथ (एक चर्चित आलेख) ...कुल मिला कर इतना ही पढ पाई मैं श्री यादव को । इनमें मुझे सारा-आकाश ने सर्वाधिक प्रभावित किया । मेरी बडी इच्छा थी कि कम से कम एक कहानी हंस में आए । एक दो भेजी भीं पर बात नही बनी । फिर उनकी टिप्पणियों , आलेखों व हंस में कुछ कहानियों के स्तर से उनके बारे में मेरी राय कुछ असन्तोष भरी होगई । मेरा मानना है कि कम से कम एक युग-निर्माता रचनाकार और सम्पादक को समाज व साहित्य के प्रति बहुत जिम्मेदार व जागरूक होना चाहिये । हालांकि इतने बडे लेखक के प्रति मेरा असन्तोष कोई मायने नही रखता ।
जो भी हो श्री यादव के साथ हिन्दी साहित्य के एक युग का अन्त हुआ है । सारा आकाश के उस अनूठे रचनाकार को मेरा नमन ।

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