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सोमवार, 14 अक्टूबर 2013

जीवन हर पल बदल रहा है

आदरणीय ब्लॉगर मित्रगण - सादर नमस्कार 












प्रस्तुत है आपके समक्ष एक नई रचना | कोशिश है कि शायद इसके ज़रिये मैं अपने विचारों को सभी के साथ साँझा कर पाने में सफल रहूँगा | आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतज़ार रहेगा |

जब मैं छोटा बच्चा था, दुनिया बड़ी सी लगती थी 

घर से विद्यालय के रास्ते में, कई दुकाने सजती थीं 
लल्लू छोले भठूरे की दूकान, चाट का ठेला, बर्फ का गोला 
मूंग दाल के लड्डू का खोमचा, हलवाई के रसीले पकवान 
और भी ना जाने क्या क्या था, जीवन के यह रस ज्यादा था 
आज वहां पर बड़ी दुकाने हैं, बड़े बड़े पार्लर और शोरूम हैं 
भीड़ तो बहुत दिखाई देती है, फिर भी सब कुछ कितना सूना है 
लगता है जीवन सिमट रहा है, जीवन हर पल बदल रहा है 

जब मैं छोटा बच्चा था, शामें लम्बी होती थीं मेरी 
हर शाम साथ गुज़रती थीं, मुझसे ही बातें करती सी 
छत पर घंटो पतंगे उड़ाता था, गलियों में दौड़ लगाता था 
शाम तलक थक कर चूर होकर, मैं घर को वापस आता था 
माँ की गोदी में सर रखकर, बस अनजाने ही सो जाता था 
अब सब मस्ती वो लुप्त हुई, जीवन में शामें भी सुप्त हुई 
अब दिन तो ढल जाता है, पर सीधे रात को पाता है 
लगता है वक़्त सिमट रहा है, जीवन हर पल बदल रहा है 

जब मैं छोटा बच्चा था, तब खेल बहुत हुआ करते थे 
पापा के डर से हम, पड़ोसी की छत पर कूदा करते थे 
लंगड़ी टांग, इस्टापू, छुपान छुपाई, पोषम पा, 
टिप्पी टिप्पी टैप, पकड़म पकड़ाई, उंच नींच का पपड़ा 
कितने ही ढेरों खेल थे जब, मिलकर साथ में खेलें थे सब 
सब मिलकर केक काटते थे, आपस में प्यार बांटते थे 
तब सब साथ में चलते थे, गले प्यार से मिलते थे 
अब इन्टरनेट का दौर है जी, मल्टीप्लेक्स का जोर है जी 
फुर्सत किसी को मिलती नहीं, आदत किसी की पड़ती नहीं 
लगता है ज़िन्दगी भाग रही है, जीवन हर पल बदल रहा है 

जब मैं छोटा बच्चा था, तब दोस्त बहुत से मेरे थे 
तब दोस्ती गहरी होती थी, साथ में सब मिल खेलते थे 
मिल बैठ के बाँट के खाते थे, सब मटर यूँही भुनाते थे 
जब हँसना रोना साथ में था, कम्बल में सोना साथ में था 
इश्क विश्क की बातें साँझा थीं, हीर की और राँझा की 
अब भी कई दोस्त हैं मेरे, पर दोस्ती न जाने कहाँ गई 
ट्रैफिक सिग्नल पर मिलते हैं, या फसबुक पर खिलते हैं 
हाई-हेल्लो बस कर के ये, अपने अपने रास्ते चलते हैं 
होली, दिवाली, जन्मदिन, नव वर्ष के मेसेज आ जाते हैं 
लगता है रिश्ते बदल रहे हैं, जीवन हर पल बदल रहा है 

अब शायद मैं बड़ा हो गया हूँ, जीवन को खूब समझता हूँ 
जीवन का शायद सबसे बड़ा सच यही है 'निर्जन'
जो अक्सर शमशान घाट के बाहर लिखा होता है 
"मंजिल तो यही थी, बस ज़िन्दगी गुज़र गई यहाँ आते आते"
ज़िन्दगी के लम्हे बहुत छोटे हैं, कल का कुछ पता नहीं 
आने वाला कल सिर्फ एक सपना है, जो पल पास है वही अपना है 
उमीदों से भर कर जीवन को, जीने का प्रयास अब करना है 
जीवन को जीवन सा जीना है, नहीं काट काट कर मरना है 
लगता है जीवन संभल रहा है, जीवन हर पल बदल रहा है 

आज की कड़ियाँ 

अब मैं भी बेगुनाह हूँ रिश्तों के सामने...........सचिन अग्रवाल - यशोदा अग्रवाल

मैं तय करती हूं कि तुम मेरे सार्त्र बनने के लायक नहीं - मनीषा का बयान - अशोक पाण्डेय

रावण जिंदा रह गया! - अरुण साथी

ज्वार भाटा - चेतन रामकिशन देव

नेताजी का गुण गाता जा प्यारे - गोपाल तिवारी

वही गुलाब का फूल - प्रीती बाजपेयी

समन्दर - केतन

पानी वाला घर - धीरेन्द्र अस्थाना

शिनाख्त शेष है ! - संध्या आर्य

सीधे सरल शब्दों में, मैंने दिल की बात कही है - सुषमा

जहां चित्‍त भय से शून्‍य हो - मीता


अब इजाज़त | आज के लिए बस यहीं तक | फिर मुलाक़ात होगी | आभार
जय श्री राम | हर हर महादेव शंभू | जय बजरंगबली महाराज 

8 टिप्पणियाँ:

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन तुषार बाबू ... आभार !

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

सुंदर रचना सुंदर सूत्र :)
वैसे कुछ ऐसा नहीं लगता क्या ?
बदले अपने आप किसे गिला है
जीवन अब खुद कहां बदल रहा है ?

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

छोटे से बड़े होने के बीच शेष रह गया स्मृतियों का एक महासिन्धु

मेरा अव्यक्त --राम किशोर उपाध्याय ने कहा…

अतीत विस्मृत नहीं होता हैं ,ज्यूँ ज्यूँ हम बड़े होते हैं यह दस्तक देने लगता हैं, अच्छा लिखा हैं भाई ....

संध्या आर्य ने कहा…

तहे दिल से शुक्रिया और आभार आपका ! सुंदर प्रस्तुति !

lori ने कहा…

waah!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

sundar smriti.......

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

बहुत बढ़िया...बधाई...

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