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बुधवार, 16 अक्तूबर 2013

आज फेसबुक की दीवार - ब्लॉग बुलेटिन पर छः सौ पचास

आप लोग भी सोचते होंगे कि ई आदमी हमेसा गायब रहता है अऊर जैसहीं ई बुलेटिन ५० का नंबर पर पहुंचता है अचानक परकट हो जाता है. ऐसा आदमी को बुलेटिन में रखने का कउन फायदा है, जो बाकी टाइम त लापता रहता है बस ५० का पहाडा पढकर चला आता है. त सुनिए भाई लोग, ई बिहारी से पीछा छोड़ाना एतना आसान नहीं है. चचा ग़ालिब फरमा गए हैं कि
                 
 " न था कुछ तो खुदा था, कुछ न होता तो खुदा होता,
                  मिटाया मुझको होने ने, न होता मैं तो क्या होता..."

त भाई लोग अऊर बहिन जी असल में हम बुलेटिन के फाउंडर मेंबर में से हैं, एही से बाबू सिवम मिसिर हमको ढो रहे हैं. ऊ का कहते हैं कि बात साँप अऊर छुछुन्दर वाला है न ई बिहारी को छोडते बनता है न धरते.

त चलिए हमहूँ अपना जलवा देखाने में कब पीछे रहते हैं. असल में इधर लिखना एकदम खतम हो गया है. मगर पढाई चालू है. फेसबुक पर तनी-मनी जो समय मिलता है, ऊ बिता लेते हैं. मन बहाल जाता है अऊर लोग को एकीन होते रहता है कि हम ज़िंदा हैं.

काल्हे फेसबुक पर हमरे एगो दोस्त सवाल उठाये कि ऊ फिलिम “एक रुका हुआ फैसला” देखे अऊर बहुत परभावित हुए (ई सिनेमवे अइसा है कि बाँध लेता है). 

बाद में अंगरेजी सिनेमा “12 Angry Men” देखे, ऊ हो बहुत परभावित किया. हिन्दी वाला सिनेमा अंगरेजी वाला का एकदम सेम टू सेम है. 

बाकी हिन्दी सिनेमा के क्रेडिट में अंगरेजी सिनेमा का कोनो जिकिर नहीं है. बात सहिये था. कम से कम बासु चटर्जी साहब को ई लिखना तो चाहिए था.

अब देखिये अभी हाल में एगो सिनेमा आया था “लूटेरा” (इस्पेलिंग मिस्टेक नहीं है – पोस्टर पर अइसहीं लिखल है). 
 
ऊ सिनेमा में ढेर सारा बाउंडरी बनाने के बाद ओ. हेनरी के कहानी का क्लाइमेक्स देखाया. अऊर क्रेडिट में लिखा कि “द लास्ट लीफ” पर आधारित. 

बहुत सा सिनेमा साहित् के ऊपर बना, बाकी कोनो लेखक खुस नहीं, अऊर कोनो दरसक भी खुस नहीं. असल दुनो अलग-अलग माध्यम है. जहाँ सिनेमा में डाइरेक्टर अऊर लेखक अपना बात कहना चाहता है ओहाँ ओरिजिनल उपन्यासकार कुछ अऊर कहना चाहता है. पुराना सिनेमा “चित्रलेखा” देखने के बाद एही निरासा हुआ था, “गाइड” के बाद आर. के. नारायण भी बहुत बमक गए थे. 

हमरे लिए सबसे परभावित करने वाला अऊर कभी नहीं भूलने वाला सिनेमा है “जूनून”. स्याम बेनेगल का डायरेक्ट किया ससी कपूर के प्रोडक्सन का सिनेमा. ओरिजिनल कहानी रस्किन बौंड का “flight of the Pigeons”. मगर अभी उपन्यास पढने पर देखे कि बहुत फरक है. उपन्यास पढ़ने में एगो ऐतिहासिक दस्तावेज मालूम पडता है, लेकिन सिनेमा त कमाल है.

बात चला था क्रेडिट देने से. त ब्लॉग जगत अऊर फेसबुक, दुनो पर रोज एही हंगामा लगा रहता है कि लोग किसी का कबिता/इस्टैटस चोरा कर छाप देता है अऊर बेचारे असली लिखने वाला को कोनो क्रेडिट नहीं मिलता है.

हम त लिखकर भुला जाते हैं कब का लिखे थे. फुर्सत कहाँ है, हमसे बढ़िया लिखने वाला लोगबाग है इहाँ, त हम काहे परेसान होयें. ऊ का कहते है:

" किस किस की फ़िक्र कीजिये किस किस को रोइए,
                     आराम बड़ी चीज़ है मुँह ढँक के सोइए..."


 त चलिए, फॉर अ चेंज, नज़र डालते हैं आज के कुछ चुनिन्दा फेसबुक स्टैटस पर:


अब तो साला फेसबुक भी प्रिडिक्टिव हो गया है। पहले ही अंदाजा लग जाता है कि आज टाईमलाईनों पर क्या नजारे होंगे। कौन किस किस्म की बधाई चेंपेगा और कौन बकरा कटन्नी पर मुंह बिचकायेगा। किसका शाकाहार भाव आज जागृत होगा और किसका पर्यावरण प्रेम कुश्ती लड़ेगा। कौन विमर्श के नाम साहित्यिक लीद करेगा और कौन कम्बख्त रक्तिम कविताएं रचेगा। कौन बकलोल रोनी सूरत बनाये स्टेटसेस ठेलेगा और कौन घर में दाल-भात खाने के बावजूद फेसबुक पर मुर्ग मुसल्लम की तस्वीरें चेंपेगा

इटज् भौकाल एरा डूड 
Top of Form

Ravindra Sharma
यही बूढ़े दरख्तों के दिलों में आस बाकी है /
सुना है सांझ होते ही परिंदे लौट आते हैं / ( रवि ऋषि )

Preeta Vyas
खुदा जब इंसान बनाने के लिए मिटटी गूंथता है तो मुहब्बत के पानियों के छीटे से ही गूंथता है.......जब वो अकल लिखता है तो उसमे अपने और पराये दर्द का फर्क नहीं लिखता...........मिटटी के रंगों के फर्क हम देखने बैठ जाते हैं ......... अपने दर्द और पराये दर्द में फर्क हम करने लग जाते हैं ........

Padm Singh
वर्षा के आधिक्य ने मुख्य मार्ग के किनारे वृहद् प्रातः निपटान अभयारण्य विकसित कर दिया है .... लता वल्लरियों से बने सघन कुंजों के बीच शंकानिवारण में लीन ध्यानावस्थित बोतलधारी दिगंबर जब एकान्तिक निपटान संतोष को प्राप्त को प्राप्त होते हैं तो मार्ग पर विचरते श्वान भृतक गंधित वायु से अनायास लाभान्वित हो उठते हैं । ....

अनूप शुक्ल
कभी -कभी मन बिना कारण खुश होता है। तो कभी बिना कारण उदास भी हो जाता है।बिना कारण के। बस ऐसे ही। मजे की बात ये उदासी भी प्यारी लगती है। अपनी सी। 

कईसा है ई इस्टेटस? लाइक करने लायक है? चिरकुट सा है? शायराना है? या कुछ और ???? बताइये वर्ना कोई और बता के निकल लेगा? 


Rashmi Prabha
ख़ामोशी और शब्दों का रिश्ता अनुमान का होता है - कभी सही,कभी गलत !
 
Shalini Khanna
आज सुबहने अपना वही पुराना लिबास पहना है 
सदियों पुराना तन पे ,सूरज की किरणों का गहना है
पता है उसे अपनी पहचान ,इसी मे ही रहना है
अब न प्रकृति के किसी भी कोप को सहना है...
 
बेचैन आत्मा
त्योहार-1
दशहरा, बकरीद या दिवाली खास आदमीधन से, ‘आम आदमीमन से मनाते हैं। पूँजी के द्वारा अर्जित किये हुए उस पैसे को धनकहते हैं जिसमें निरंतर वृद्धि होती रहती है। परिवार के सदस्यों की उस इच्छा को मनकहते हैं जिसकी पूर्ति लिए आम आदमी को कर्ज़ लेना पड़ता है। यही कारण है कि ये त्योहार खासके लिए खुशी, ‘आमके लिए दुःख के कारण बनते हैं। गणित की भाषा में दोनो में एक शब्द कॉमन है-आदमी। हारता यही है, जीतता यही है। मरता यही है, मारता यही है। कलयुग में यही भक्तहै, यही भगवानहै।

 
·         सुबह सुबह वाक करते हुए सुना, FM पर 'जोहरा ज़बीं 'का अर्थ पूछा जा रहा था और सही उत्तर बहुत ही चलताऊ हिंदी में बताया गया ,'चमकदार माथा ' पर यहाँ FB पर दोस्तों ने परिष्कृत रूप से समझाया... धन्यवाद सबका . अब एक जिज्ञासा और...FM वालों ने बताया कि 'साहिर लुधियानवी 'ने इस शब्द का पहली बार प्रयोग किया .अब उनके अधकचरे ज्ञान पर भरोसा नहीं है और उर्दू साहित्य का मुझे भी ज्यादा ज्ञान नहीं . तो क्या हिंदी और अंग्रेजी में 'प्रियतमा ' के लिए जैसे कई शब्द प्रचलित हैं .क्या उर्दू में भी अक्सर प्रेमिका या प्रिया के लिए 'जोहरा ज़बीं ' शब्द प्रयुक्त होता है ?-- सलिल वर्मा ,Ismat Zaidi Shefa , Rajesh Utsahi , Ali Syed
 
अऊर अंत में सबको अपने मोह के कुर्बानी का तेहवार बकरीद का बहुत बहुत मुबारकबाद. 
और साथे-साथ ब्लॉग बुलेटिन के सभी सदस्य के तरफ से आज के ६५० वाँ बुलेटिन के मारफत 
भाई देव कुमार झा के पहलौठी के सुपुत्र के पहिलौठ जन्मदिन पर बचवा को ढेर सारा आसीरबाद !!

16 टिप्पणियाँ:

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

ब्लॉग बुलेटिन में फेसबुक चर्चा फाउल है पर मस्त है। अजय जी कहेंगे ई त हमरा काम है सलिल जी यहाँ भी !

आपका पिक्चर प्रेम देखकर आनंद आता है। खूब देख लेते हैं। कहाँ से करते हैं मनमाफिक डाउनलोड? जो चाहते हैं वही देख लेते हैं!

मुकेश कुमार सिन्हा ने कहा…

:) Devendra sir ne sahi kaha :)

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

:-) दादा बड़ा इंतज़ार रहता है इस पचास के पहाड़े की अगली सीढ़ी का.....मन प्रसन्न हो जाता है !!! काश शिवम् आपको और भी ज्यादा बुलेटिन डालने के लिए पटा पाते :-)

सादर
अनु

PD ने कहा…

गजबे है आज का बुलेटिन त

राजेश उत्‍साही ने कहा…

ऊ का है कि आजकल अपन को भी ससुरे ब्‍लाग की ही जादा याद आवत रही...इ फेसबुक सौतन सारा समय चिपकी ही रहत है...कछु करनो पड़ेगो जाके लाने...

अजय कुमार झा ने कहा…

का बात करते हैं दादा ई पेसल ओकेजन पे तो आपका आना बनता ही है , फ़ेसबुकिया धुकधुकिया एक्सपरेस खूब चलाए हैं आप धडाधड से

Maheshwari kaneri ने कहा…

बहुत बढिया..

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान ने कहा…

loktantra par charchaye hona chahiye

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

@देवेन्द्र पाण्डेय जी! दरअसल मुझे लैपटॉप पर फिल्म देखने में मज़ा नहीं आता.. यहाँ आकर एक बड़ी अच्छी बात यह हुई कि एक डीवीडी की दुकान वाला मिल गया है मुझे. बस उसे लिस्ट देनी पडती है और इंतज़ार करना होता है उसके फोन का.. अच्छी फिल्मों की डीवीडी का बहुत अच्छा संकलन हो गया है इन दिनों!!

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

लाजवाब !

Tamasha-E-Zindagi ने कहा…

बहुत खूब बुलेटिन सजाये भैया ... लाजवाब ... जय हो

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लीजिये, फेसबुक भी ब्लॉग का डोमेन बन गया।

राजीव कुमार झा ने कहा…

लाजबाब प्रस्तुति .

Shah Nawaz ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति रही यह भी!!! फेसबुक माइक्रो ब्लॉग का माध्यम है, इसलिए उसकी चर्चा करना भी सही है।

शिवम् मिश्रा ने कहा…

"असल में हम बुलेटिन के फाउंडर मेंबर में से हैं, एही से बाबू सिवम मिसिर हमको ढो रहे हैं. ऊ का कहते हैं कि बात साँप अऊर छुछुन्दर वाला है न ई बिहारी को छोडते बनता है न धरते."

@सलिल दादा ... काहे हमरा कंबल परेड करवा देते है जी ... :)

वैसे गज़ब का बुलेटिन लगाए दादा चचा गालिब से शुरू किए और भतीजे आदि के जन्मदिन की ख़बर पर फूल स्टॉप लगाए ... जय हो ... :)

सभी पाठकों तहे दिल से ६५० वीं पोस्ट की मुबारकबाद ... आप सब के स्नेह के बिना यह सफर शायद ही कभी हो पता !

मनोज भारती ने कहा…

सलिल जी !!! आपको पढ़ना किसी दस्तावेज़ से कम नहीं होता । बेहतरीन पोस्ट

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