कितनी सही बात है - कहानियाँ बनती हैं,लिखी जाती हैं,अनलिखी भी होती हैं …. पर कई बार अनलिखी कहानियाँ भी हम पढ़ लेते हैं,और कई बार लिखी कहानियों से,आस-पास उभरती कहानियों से कोसों दूर होते हैं - अन्यमनस्क प्रश्नवाचक दृष्टि लिए … टहलते रहते हैं निरर्थक … किसी अर्थ की तलाश में ….
अर्थ तो किसी युग में नहीं मिला - जो मिला, जिसे हम ज्ञान या निर्वाण कहते हैं - वो है मृत्यु ! जब तक ज़िन्दगी है - अटकलें हैं
क्या ज़रूरी है,क्या गैरज़रूरी - कौन तय करेगा,कौन मानेगा ! कुछ भी कहने-सुनने के पीछे सामयिक स्थिति काम करती है - जो समय,स्थान से बंधी होती है
कुछ लिंक्स - जो कुछ अर्थ दे जाएँ =
अनामदास का चिट्ठा: अर्थ की तलाश व्यर्थ की तलाश
वाग्वैभव: अर्थ की तलाश में
आधा आदमी... | सभ्यता के चौराहे पर.. आधुनिकता के ...
मेरे मन की: अनलिखी ईबारत
उम्मीद है सबको पढ़ते हुए कुछ न कुछ मिल जायेगा, पर पढना होगा कुशल तैराक की तरह
7 टिप्पणियाँ:
तैरना नहीं आता हो तो ?
कोई बात नहीं डूबा भी जा सकता है :)
बहुत सुंदर संकलन !
आदरणीया रश्मि प्रभा जी सादर नमस्कार , सभी लिंक्स बहुत अच्छे हैं आपका आभार ।
संदर लिंक्स |डॉ अजय
अर्थभरे सूत्र
बेहतरीन बुलेटिन..........
सभी लिंक्स बढ़िया..वैसे तो इतनी पुरानी रचनाएं पढने में नहीं आतीं....
आभार आपका दी
अनु
अर्थपूर्ण बुलेटिन ... आभार दीदी !
लिंकस देने के पूर्व लिखी गयी बेहतरीन प्रस्तावना...!
शब्द शब्द सागर!
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