तुमने तो कथा लिख दी प्रभु सबके हिस्से
अभिनय में कोई श्रेष्ठ,कोई अनाड़ी
और उतार दिया रंगमंच पर
…. कुछ संवाद याद रहे,कुछ भूल गए
शरीर और दिल-दिमाग के मध्य बड़ी परेशानी है
पर पर्दा गिरने से पहले
कुछ न कुछ तो करते ही जाना है !
नींद में भी बहती है सपनों की गहरी लम्बी नदी
नदी में तैरता मन
मन का प्रलाप
गहरी नींद का आनंद नहीं बन पाता
और थके नयन
'उबारो' का अनहद नाद करते हैं ….
नीलिमा शर्मा की अभिव्यक्ति =
एक चिट्ठी माँ के नाम
माँ$$$$ तुम कैसी हो ? मैं जानती हूँ कि तुम हम सबको बहुत याद करती हो ...पर क्या करूँ आज मैं माँ हूँ तो अपने घर की सारी जिम्मेदारियां निभाते निभाते मैं जब थकने लगती हूँ तो तुम्हारा चेहरा मेरे सामने आ जाता है कि कैसे तुम आज भी बिना थके कम करती हो .....तुम कहा करती थी ना कम प्यारे होंदे ने चाम नही .................हाँ सारे तो खुरी सारही चंगी ..................तो बस .आज मैं तुमको जी रही हूँ अपने अंदर .......जब बच्चे कभी मुझे नहीं सुनते . हसबैंड बिज़ी रहते हैं तो मुझे तुम्हारा चेहरा याद आता है कि कैसे तुमने अपना वक़्त गुज़ारा होगा जब हम सब बहनें अपने घर में आ गयी और भाई अपने घरों में व्यस्त ............क्या तुमको मन का कोना सूना नहीं लगा .................????????? आज जब तुम्हारी आँखों को देखती हूँ तो पता चलता है कि कितना अकेलापन .सूनापन है तुम्हारे अंदर .......भीड़ में अकेली मेरी माँ ..............आज अकेली पर फिर भी चारों ओर लोगों की भीड़ ...मैं जानती हूँ आज तुम आखिरी सीढ़ी पर हो अपनी ज़िन्दगी की ......और मैं तुमको जाकर कुछ कह भी नहीं पा रही ...........मैंने तुमको हमेशा सताया ....दुःख दिया ........ मैंने वो सब कभी नहीं किया जो तुमने चाहा .आज भी माँ बनकर अपने हिसाब से ही जीना चाहा ...... शायद ये मेरा विद्रोह होगा कि आपने अपनी मर्ज़ी से लाइफ नहीं जी .तो हम तो जियें ................. आज मैं माँ बन गयी हूँ और तुमको जब बच्चे की तरह कहती हूँ कि ऐसा मत किया करो .तब तो कह डालती हूँ लेकिन बाद में अकेले सोचती हूँ कि मेरे बच्चे भी कल मुझे ऐसे ही कहेंगे ............ मैं आज तक आपसे मन की बात नहीं कह पाई .......कि मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ , तुमको खोने की कल्पना से भी डरती हूँ ..... कल जब सुना कि तुम ठीक नहीं हो ??????? तो तुमको फ़ोन किया पर तुमने कितने कांफिडेंस से बात की कि मैं ठीक हूँ ........ वाह !! माँ .................बेटी परेशान ना हो .सो तुम अपना गम बताना भी भूल गयी .सच हम सब बहनें एक साथ तुम्हारे पास कुछ दिन बिताना चाहती हैं लेकिन असंभव है ये सब .......... सबके अपने घर अपनी जिम्मेदारियां ........फिर ............क्या करें .बेटियाँ इतनी परायी क्यूँ हो जाती हैं ....... कि अंतिम पड़ाव पर माँ के पास भी नहीं जा पाती ............मैं बहुत कमज़ोर हो गयी हूँ तुम्हारी बीमारी की बात सुनकर ..............मेरा मन बहुत उदास हो गया है .......प्लीज़ मत जाओ मेरे मन के कोने को सूना करके .........................
और कुछ लिंक्स यूँ हीं
8 टिप्पणियाँ:
शब्द नही हैं मेरे पास ............. कैसे आपका शुक्रिया अदा करू मैं रश्मि जी .मैंने तो यू ही आपको मेल किया था माँ से अपने मन में किया संवाद .........
माँ सिर्फ लफ्ज़ नही भाव हैं जिसे हर नारी जीती हैं अपने भीतर .........
शुक्रिया
बहुत ही अच्छे और प्यारे लिंक्स दिये है आज आपने आभार...हर एक माँ को मेरा शत शत नमन!!!
मन भर भर आया हर link को पढ़ कर...
आभार आपका दी
सादर
अनु
भावभरे सूत्र
बहुत ही उम्दा सूत्र !
यह बुलेटिन माँ के नाम। पहली चिठ्टी पढ कर ही अपनी माँ याद आ गई। देखती हूँ और भी सूत्र।
"माँ"
:(
:)
मैं चुप रहूँगा ........
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