आगे प्रधान मंत्री कौन होंगे, चर्चा है
कि नरेंद्र मोदी प्रमुख दावेदार हैं। इस में सोशल मीडिया की माने तो कोई शक भी
नहीं, लेकिन इस बात को लेकर गुजरात की जनता एवं भाजपा हैरत है कि अगर नरेंद्र मोदी
को पीएम बना दिया तो गुजरात का मुख्यमंत्री किसे बनाएंगे। चिंतन जरूरी है, क्यूंकि
सचिन तेंदुलकर की रिपलेस्टमेंट किसी ऐरे गैरे से थोड़ी न होने वाली है। चलो छोड़ो
राजनीतिक गलियारों की बातें, हम करते हैं अपने ब्लॉग जगत की बातें, यहां पर हमारे
साथियों ने रखी हैं, कुछ बेहतरीन बातें।
पिछली
कड़ियाँ- 1.‘बुनना’ है
जीवन.2.उम्र
की इमारत.3.‘समय’ की
पहचान. 4. दफ़ा
हो जाओ हि
न्दी की अभिव्यक्ति क्षमता बढ़ाने में विदेशज शब्दों के साथ-साथ युग्मपद और मुहावरे
भी है शामिल हैं । *रफ़ा-दफ़ा* ऐसा ही युग्मपद है जिसका बोलचाल की भाषा
में मुहावरेदार प्रयोग होता है । “रफ़ा-दफ़ा करना” यानी
किसी मामले को निपटाना, किसी
झगड़े को सुलझाना, विवादित
स्थिति को टालना, दूर
करना । * रफ़ा-दफ़ा*
में नज़र आ रहे दोनो शब्द अरबी के हैं । यहाँ ‘दफ़ा’ का अर्थ ढकेलने, दूर
करने से है । इसकी विस्तृत अर्थवत्ता के बारे में पिछली कड़ी में बात
की जा चुकी है । रफा ( रफ़ा ) का मूल अरबी उच्चारण.... more »
लगता
है कि माइक्रोसॉफ़्ट अपने नए ताजातरीन विंडोज 8 ऑपरेटिंग सिस्टम को
हर किसी
के गले में एक तरह से मुफ़्त में ठूंसना चाहता है ताकि चहुँ ओर विंडोज का ही
साम्राज्य बना रहे. और इसीलिए विंडोज 8 के संस्करण बेहद
सस्ते में बेचे जा रहे
हैं. यदि
आपके कंप्यूटर विक्रेता ने आपके कंप्यूटर में पायरेटेड विंडोज एक्सपी, विंडोज
7 या
ऐसा ही कोई अन्य संस्करण डाला हुआ है और आपको गाहे बगाहे इसके जेनुइन
नहीं होने की चेतावनी मिलती रहती है और इसके अपग्रेड इत्यादि की सुविधा नहीं
मिलती है तो आप सिर्फ 699 रुपए
(14.99 डॉलर) खर्च
कर अपने विंडोज को जेनुइन
बनाने की सुविधा पा सकते हैं. खा... more »
नीरज
गोस्वामी at नीरज - 1
day ago
आज
के युग में ये बात बहुत आम हो गयी है के लोग अपनी असलियत छुपा कर जो वो नहीं
हैं उसे दिखाने की कोशिश करते हैं और ऐसे मौकों पर मुझे साहिर साहब द्वारा
फिल्म इज्ज़त के लिए लिखा और रफ़ी साहब द्वारा गाया एक गाना " क्या मिलिए
ऐसे लोगों से जिनकी फितरत छुपी रहे, नकली चेहरा सामने आये
असली सूरत छिपी
रहे " याद आता है. लेकिन साहब अपवाद कहाँ नहीं होते, जब
कोई ताल ठोक कर जैसा
वो है वैसा ही अपने बारे में बताते हुए कहता है की: इक तअल्लुक है वुजू
से भी सुबू से भी मुझे मैं किसी शौक़ को पर्दे में नहीं रखता
हूँ तो
यकीन मानिये दिल बाग़ बाग़ हो जाता है. वुजू और सुबू से अपनी दोस्ती को सरे आम
मानने वाले ... more »
देखता
हूँ अन्याय और
सहता हूँ जुल्म गूंगा
नहीं हूँ फिर
भी चुप रहता हूँ, हर
तरफ कोहराम है चौराहे
पर बिक रहा ईमान है अंधा नहीं हूँ फिर भी आँखें बंद
रखता हूँ, दर्द
से चीख रहे हैं परिंदे, पर्वत, पेड़-पौधे सुन
रहा हूँ चित्कार फिर
भी बहरा बना रहता हूँ। नफरत के सौदागर कत्ल करने पर आमाद
हैं इंसानियत
का फिर
भी अनजान बना रहता हूँ, लुट
रही है आबरू किसी की तो बिक रहे हैं जिस्म कहीं कहने
को इंसान हूँ फिर
भी तमाशबीन बना रहता हूँ, कब
तक चुप रहूँ कब
तक सहूँ पशुओं
की तरह जीता रहूँ या
अब इंसान बनूँ।
जसपाल
भट्टी को कॉमेडी किंग भी कहा जाता रहा है और वे भारतीय टेलीविजन और सिने जगत
का एक जाना-पहचाना नाम रहे हैं। भट्टी को आम-आदमी को दिन-प्रतिदिन होने वाली
परेशानियों को हल्के-फुल्के अंदाज में पेश करने के लिए जाना जाता रहेगा। उनका
जन्म 3 मार्च
1955 को
अमृतसर, पंजाब
में हुआ था। उनकी पत्नी, सविता
भट्टी हमेशा
उनके कार्यों में उनका सहयोग करती थी। दूरदर्शन पर प्रसारित उनके सबसे लोकप्रिय
शो – फ्लॉप
शो में उनकी पत्नी सविता भट्टी ने अभिनय करने के साथ ही उसका प्रोडक्शन भी
किया। भट्टी
ने पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग में स्नातक की डिग्री
ली लेकिन उनका मन इंजीनियिंग में नहीं ... more »
यह
संसार एक मेला है , यहाँ
जो भी आता है अपना समय बिता कर चला जाता है आने - जाने का यह क्रम आदि
काल से चला आ रहा है . पूरी कायनात को जब हम देखते हैं तो यह ही महसूस होता है
कि इस जहां में कुछ भी नित्य नहीं है , शाश्वत नहीं है . अगर
कहीं कुछ
शाश्वत है तो उसे हम ईश्वर की संज्ञा से अभिहित करते हैं . जो नित्य
रहने वाला है , तीनो
कालों में जो एक जैसा है , जिस
पर किसी का भी प्रभाव
नहीं होता , जिसकी
सत्ता जड़ और चेतन दोनों में समायी है , जो सदा एक रस रहने
वाला है , ऐसी
ना जाने कितनी उपमाएं इस शाश्वत सत्ता के साथ जोड़ी जाती हैं और यह क्रम अनवरत
रूप से इस संसार में चला रहता है . विश्व का कोई भ... more »
*कानजीलाल वर्सेस कजरीवाल
? O.M.G..!* प्यारे
दोस्तों, आपने फिल्म
`ऑ..ह माय गॉड` देखी है? इस फिल्म
में भगवान
की सत्ता
को ललकारने
वाले `कानजी लालजी मेहता` नामक एक
आम आदमी का किरदार
(श्री परेश रावलजी)
आपको याद है? हाँ, तब तो फिर, ये कानजीलाल
के सारे संवाद
भी याद होंगे..!
पता नहीं क्यों, मुझे आम आदमी (MENGO PEOPLE ) कजरीवाल के
मन की पीड़ा और ये
कानजीलाल के मन की पीड़ा, एक जैसी लग रही है, आईए देख
ही लेते हैं..! (नोट-
यह व्यंग
आलेख सिर्फ मनोरंजन
के उद्देश्य से लिखा गया है, किसी व्यक्ति-धर्म-पक्ष-परिवार-समाज
से इसका कोई लेनादे... more »
राबर
बाबू को बचाने के लिये सफेद और करचोरी भाऊ को बचाने के लिये काली टोपी वालो
की गैंग सामने आ रही है.बहुत अच्छी बात है मगर राबर बाबू और करचोरी भाऊ ने
ऎसा किया क्या है जो देश की नं वन और नं टू गैंग उन्हे बचाने के लिये जी जान
से जुट गई है?ऎसा
क्या किया है कि लोग पीछे ही पड गये हैं बेचारे भोले भाले राबर और करचोरी
भाऊ के?अब
अगर किसी ने उन्हे उधार दे भी दिया या धंधा खडा करने के लिये मदद कर
भी दी तो इसमे उनका क्या दोष?सज़ा देना ही है तो उनको दो ना
भाई जिन्होने मदद के नाम पर लाखो करोडो रूपये देकर भोले भाले शरीफ लोगों को बिगाडा.उनको
तो कोई कुछ कह नही रहा है बस पीछे पड गये दोनो के?अब ऎसे मे र... more »
Puja Upadhyay at लहरें - 5
days ago
इंस्टैंट
नूडल्स के जमाने में भी कुछ खतों के जवाब अपने आने की मुहर छपवाते साल
गुज़ार देते हैं. एक ठिठुरता हुआ पन्ना मेरे सामने पड़ा था जिसमें चिनारों की
खुशबू आती थी. जिसमें खुशनुमा रातों के सन्नाटे थे और सन्नाटे को तोड़ती रातों
की शिकायतें थीं. ख़त
कहता था मुझसे...दुनिया बिलकुल नहीं बदली है. चाहे बंगलौर की बेनूर दोपहरें
हों कि दिल्ली के धूप वाले दिन या कि कश्मीर में बहता दरिया...चिट्ठियों का
मौसम सदाबहार है...रंगों में डूबा...खुशबुओं में थिरकता...कि आज भी
खतों में लिखने वाले का चेहरा उभरता है...कि वो चेहरा उसकी फेसबुक प्रोफाइल से
मैच नहीं करता...कि खतों में रूह का चेहरा होता है. कि... more »
*श्रीमती गिरिजा
कुलश्रेष्ठ* का परिचय उनकी कवितायें, लघुकथायें, संस्मरण, उपन्यास और
कहानियाँ हैं. उनकी रचनायें चाहे जिस भी विधा में हों, अपनी
एक अलग ही पहचान
रखती हैं. उनकी समस्त रचनाओं में सामाजिक सरोकार को इतनी कोमलता से दर्शाया
गया है कि वे कहीं से भी चीखती-चिल्लाती हुई ध्यानाकर्षण की मांग नहीं करतीं.
बल्कि पाठक के हृदय को आन्दोलित करती हैं. उनकी रचनाओं में सम्वेदनाओं का
पुट इतना संतुलित होता है कि बस आपके मन को छूता है, सहलाता है और धीरे से आपके
मस्तिष्क को चिंतन के लिये व्यथित करता है, विवश नहीं. इनसे
भी परे गिरिजा जी का एक और साहित्य-संसार है. जहाँ वे कहानियों, कविताओं और
चित्... more »