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रविवार, 9 जुलाई 2017

मेरी रूहानी यात्रा ... ब्लॉग से फेसबुक शैलजा पाठक




रूहानी यात्रा जगह जगह विश्राम लेती रही, उसीमें अचानक एक दोराहा दिखा 

कई ब्लॉग सूने , कई चलायमान लेकिन लिंक दोराहे पर  ... 

राह बदलने की कितनी आलोचना करें ! अब है, तो है 
और दोराहा यानी फेसबुक सुबह से रात तक चलता है, नशा कहो या रास्ता 
सब यहाँ मिल जाते हैं, जो ब्लॉग पर हैं वे भी, जो यहीं हैं वे भी - मित्रता करो, और पढ़ते जाओ 

कुछ नगीने यहाँ से उठाती हूँ, क्या पता आप मित्र न हों, तो मित्र हो जाएँ 


शैलजा पाठक 
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तुम जादूगरनी थी क्या


एक छोटे बच्चे की हथेली में 
तेल से अम्मा एक गोल बनाती
कहती इ लो लड्डू 
भैया दूसरी हथेली बढ़ा देता 
अब दूसरी में पेडा
भैया देर तक मुस्कराता घर के 
आँगन में भागता 
मीठा हो जाता 
गप गप खा जाता लड्डू पेडा
खुशियों के आँगन में ममता की बड़ी घनी छाँव होती है 
जहाँ बाबा की पुरानी बड़ी कुर्सी पर 
अम्मा भैया को बैठा देती ये कहकर 
अब लो तुम राजा
भैया झूम जाता
बताशे में पानी डाल कर 
तुम ही खिला सकती थी थी गोलगप्पा 
जादूगरनी ..तुम ही थी
सूना आँगन हवा में हिलती कुर्सी 
खाली हथेलियों का खारापन
हमारी दोनों मुठ्ठी तुम्हारे सामने है 
तुमने बारी बारी से दोनों को चूमा ये कहकर 
एक में हंसी एक में ख़ुशी 
हमने अपनी आँखें ढँक लीं है 
तुम नदी सी समा रही हो हथेलियों में 
बस एक बार दे दो ना वही लड्डू पेडा
हमे पता है तुम नही टालोगी....बच्चों को भोत याद आ रही हो तुम 😞


हमरा मुलुक गोहरा रहा हमें .... रुको आए .....

सालाना परीक्षा ख़तम होने का यही महिना हुआ करता .हम गाँव जाने की तैयारी में लगे होते अपने कुछ शहरी ताम झाम के साथ ..जैसे धूप वाला चश्मा ..बड़ी वाली हैट .रंगीन पेंसिल कागज़ ..और अम्मा का चाय का थर्मस ..रात की पसिंजर ट्रेन ..रात में हम चार भाई बहनों की पुड़ी अचार पुड़ी भुजिया खाने की होड़ लगी होती..तो कभी चम्पक और नंदन की कानी गिलहरी नामक कहानी का मुक्त कंठ पाठ ..
हम तो अपना हाफ फुल टिकट का पुराया किराया वसूलते .वो भागते पेड़ो की गिनती ..चाँद का गाडी से भी तेज रफ़्तार में पीछा करना ..पुल से गाडी की आवाज ..रामनगर का रेत वाला घाट ..हम उस अँधेरे में ही इंगित करते ..आखिर बनारस को तो बंद आँख से भी जी सकते थे हम..
फिर आती ऊपर के बर्थ की बारी उसपर तो मानो हमारा by birth कब्ज़ा हो ..कभी चादर बिछाते लटकाते लटकते हवा वाली तकिया के लिए खीचतान करते हम ठीक ४ बजे मऊ नाथ भंजन पहुच जाते ..ओघियाये समय में काला चश्मा लगाते कभी थर्मस कंधे पर टांगते ..अपने को खड़ी हिंदी में जरा अलग दिखाने की कोशिश करते..
हम अपने साथ अपने सीखे अग्रेजी शब्दों को भी ले चलते जैसे stand up,sit down,bad.good.आदि जिसमे शब्दों को जल्द से जल्द इस्तेमाल करने की कोशिश में हम किसी भी मटमैले बूढ़े आदमी औरत को देखते bad बोलते ..सुनने वाले चचेरे भाई बहन बड़ी बेचारगी से हमे देखते ..
पर कुछ घंटे में ही हमारी अग्रेजी किसी इतर की शीशी में बंद हो जाती .रात सारे भाई बहन कई चौकी जोड़कर एक साथ सोते ..फिर वहां की कहानियां चादर के निचे फुसफुसाते शुरू हो जाती ..हु हु करती बसवारी .पकड़ी के पेड़ की चुड़ैल ..कुआँ से आती अघोरी बाबा की आवाज ..हम उस मिटटी में भीगने लगते..चाची के बार बार बबुनी कहने की मिठास ..छोटकी दादी का बालों में तेल लगाना ..चक्की पिसती औरते एक गीत गाती जिसमे विदेश गए पति को देखने की मिन्नतें होती ..वो बात ना समझ आई हो भले ..पर उनके उदास चेहरे हमारी आँखों से कभी ना बिसरे..चाचा के साथ बैलगाड़ी से खेत जाना ..चाचा आरा हिले पटना हिले बलिया हिले ला ..के गाने से अपनी गाँव की भौजी को छेड़ते और मुस्कराते ...
दो दिन में हम उनके प्यार के रंग में रंग जाते ..वहां से पूरा आकाश दिखता ..झक तारों के निचे हम सोते हुए सपनों की बातें करते ..एक दुसरे से ऐसे चिपक के रहते की जैसे कभी अलग ना थे ...बाबा को रात सोते समय ..नन्हा मुन्ना राही हूँ देश का सिपाही हूँ .. ये गाना सुनाते ..बाबा ख़ुशी से गदगद हो मुझे अपने पास खीचते अपने गमछी से मेरा हाथ मुँह पोछते और कहते..खूब होनहार बाड़े ते ..पढाई में फस्ट आवे के बा ना तोरा ?
हाँ बाबा जिंदगी आप सबसे बहुत दूर ले आई हमे .फस्ट भी आया किये ..गाँव का पेड़ कट गया है ..बाबा नही रहे ..पगडण्डी पर दौड़ लगाता बचपन किसी धुंध में डूब गया है ..
आसमान पे कितने तारे किसने देखा ?हाँ हमने देखा था ..समय नया खेल खेला रहा है बाबा ..अब ओल्हा पाती से डालियां टूटने पर दर्द हो ऐसे लोग नही ..अब तो खड़े पेड़ कट रहे .काला चश्मा लगाकर हम शहरी हो गए बाबा ..पर कैद आँखों में लहलहाती है सत्ती के खेत वाला गेहूं का धान ..बाजरे की बाली ..
आम की कोयल बोलती है बाबा तब शहर का ट्रेफिक जाम हो जाता है ..

5 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

यात्रा जारी रहे । बहुत सुन्दर।

कविता रावत ने कहा…

जिस प्रकार यात्रा में विविधता से रोचकता और उत्सुकता बनी रहती है, उसी प्रकार रूहानी यात्रा में देखने को मिलता है
बहुत अच्छी प्रस्तुति

ताऊ रामपुरिया ने कहा…

बहुत ही रोचक, शुभकामनाएं.
रामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

सदा ने कहा…

Waaah lajwab lekhan .......

Sudha Devrani ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रुहानी यात्रा....

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