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गुरुवार, 27 जुलाई 2017

न्यू यॉर्कर बिहारी के मन की बात

सनातन धर्म और संस्कृति में सबसे खुशहाल विरासत और इतिहास वाला बिहार देश के सबसे बीमारू राज्यों में से है और इसका जिम्मेदार बिहार और बिहारी खुद है। जब दुनिया आगे बढ़कर जातिवादी चंगुल से निकलकर वैश्विक पटल पर आने की बात कर रही थी विज्ञान और प्रौद्योगिकी के बारे में सोच रही थी, जातिवाद के चंगुल में फंसा बिहार लालू राज आने पर खुशी में लीन था। बिहार ने खुद ही इस अपराधी प्रवत्ति वाली राजनीतिक विचारधारा को वोट देकर इतना बड़ा और विशाल बनाया है कि आज वह सत्ता की गलियों में बैठकर आसानी से सबको ठेंगा दिखाकर अपराध और अपहरण उद्योग को चला सकता है। ऐसा सब एक दिन में नहीं हुआ है.... सत्तर सालों से बिहार ने ही तो यह सब बोया है तो आज इतनी बिलबिलाहट क्यों?

बहरहाल नीतीश कुमार की बात की जाए तो अंतरआत्मा की आवाज पर नीतीश बाबू एनडीए में चले गए हैं और चार साल पहले इसी अंतरात्मा की आवाज पर एनडीए से चले गए थे? इन चार सालों के पहले भी बिहार के अलावा बाकी देश को पता था कि लालू चोर उचक्कों और भ्रष्ट राजनीतिज्ञों में शीर्ष पर हैं लेकिन तब थाली के बैंगन श्री नीतीश बाबू ने भाजपा छोड़ लालू का दामन थामा। आज फिर से विक्टिम कार्ड खेल कर भ्रष्टाचार की बात करके भाजपा का हाथ पकड़ लिए? इन चार सालों के पहले भी लालू भ्रष्ट थे आज भी हैं तो यह अंतरआत्मा वाला ड्रामा दिखाकर नीतीश कुमार साबित क्या करना चाहते हैं?

बिहार भाजपा का एक नासूर हैं सुशील मोदी, इस आदमी के रहते बिहार में भाजपा अपने बलबूते आ नहीं सकती और हाल फिलहाल में और कोई चेहरा है भी नहीं.... सो लालू + नीतीश के अवसरवादी गठजोड़ से भाजपा + नीतीश के इस अवसरवादी गठजोड़ में एक ही फर्क है और वह है मोदी का बढ़ता हुआ कद। मोदी आज इतने विशाल हो गए हैं कि उनके बराबर का कोई भी नेता और विकल्प है ही नहीं। चार साल पहले नीतीश खुद को मोदी के बराबर मानते थे और चार सालों में उन्हे यह समझ आ गया कि अपने राजनैतिक अस्तित्व को बनाए रखने के लिए मोदी की शरण में जाना ही एकमेव विकल्प है।

और हाँ जो कोई भी नीतीश के इस दांव को भ्रष्टाचार और अंतरआत्मा की आवाज़ से जोड़ रहा है उसे क्लोरमिंट खाकर दिमाग की बत्ती जला लेनी चाहिए क्योंकि राजनीति में अंतरआत्मा जैसा कुछ नहीं होता है यह सब जनता को मूर्ख बनाने के तरीके हैं और कुछ नहीं।

ये तो हुई मुझे जैसे न्यू यॉर्कर बिहारी के मन की बात ... अब चलते है आज की बुलेटिन की ओर ...

9 टिप्पणियाँ:

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

उसकी बात तो करनी नहीं है उसके तीन बन्दरों को देखें और बन्द कर लें जो जो बन्द किया जा सकता है जय हो तंत्र की लोगों के । सुन्दर बुलेटिन ।

yashoda Agrawal ने कहा…

शुभ प्रभात
आवाज आनी चाहिए
अन्तरआत्मा की हो
या फिर
अन्दर आत्मा की
सुशील भाई की प्रतिक्रिया से सहमत
उत्तम रचनाएँ
आभार
सादर

Kirtish Bhatt ने कहा…

बेहतरीन.....आभार

कविता रावत ने कहा…

राजनीति में अंतरआत्मा जैसा कुछ नहीं होता है यह सब जनता को मूर्ख बनाने के तरीके हैं और कुछ नहीं।
सही कहा आपने फिर भी जनता बार-बार मूर्खता कर बैठती है, शायद दूजा कोई नज़र आता ही नहीं?
बहुत अच्छी विचार प्रस्तुति-सह बुलेटिन प्रस्तुति हेतु धन्यवाद

Rishabh Shukla ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुती,
आशा है बिहार को गलती समझ में आ गयी होगी|

shashi purwar ने कहा…

behatarin buletin abhar

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बढ़िया बुलेटिन देव बाबू ... आभार आपका |

गगन शर्मा, कुछ अलग सा ने कहा…

वहाँ का अधिकाँश रहवासी अभी भी पुराने जमींदारी युग में ही जी रहा है। उसकी मानसिकता, सोच, जाति-प्रेम और कुछ-कुछ हीन भावना ने उसे कूप मंडूक सा बना दिया है ! वह अपने मालिक, अपने नेता की उन्नति को देख कर ही निहाल हो जाता है, अपनी जाति के मनई को उच्च पद पर आसीन देख, उसकी शान-शौकत देख कर ही वह गर्वान्वित हो जाता है ! उसे यह सबअपनी ही उपलब्धि लगती है, और "चतुर-सुजान" इसका फायदा उठाते चले आ रहे है !!!

शारदा अरोरा ने कहा…

bulletine me shamil karne ka bahut bahut shukriya

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